MP News: अमावस्या की रात दीपावली पर मां लक्ष्मी की विशेष आराधना होती है. जबलपुर में स्थित ऐसा मंदिर है जहां महालक्ष्मी साक्षात विराजमान हैं. इस मंदिर में स्थित माता की मूर्ति रूप बदलती है. दीपावली के दिन आज भी तंत्र साधना की जाती है.
1100 साल पहले कलचुरी राजाओं ने बनवाया था
वैसे तो पूरे हिंदुस्तान में महालक्ष्मी के बहुत सारे मंदिर हैं. संस्कारधानी जबलपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां केवल महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है. यह मंदिर इतिहास की गवाही देता है. जबलपुर के आधारताल तालाब के नजदीक बना यह भव्य मंदिर कलचुरी कालीन राजाओं द्वारा बनवाया गया था. करीब 11 सौ साल पुराने महालक्ष्मी के मंदिर का विशेष महत्व है क्योंकि इसका निर्माण अपने आप में अनोखा है. 5 गुंबद की रचना के आधार पर इस मंदिर को पचमठा माता मंदिर कहा जाता है.
यह वर्गाकार मंदिर अधिष्ठान पर निर्मित है यानी कि 8 स्तंभों पर यह पूरा मंदिर टिका हुआ है. कहा यह जाता है कि यह मंदिर अष्ट फलकों पर यानी कमल की आकृति पर बना हुआ है. गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा का पथ बना हुआ है. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसकी चारों दिशाओं में मुख्य द्वार बने हुए हैं. मंदिर के अंदर श्री यंत्र की आकृति स्पष्ट नजर आती है. इस मंदिर का निर्माण श्री यंत्र के आधार पर किया गया है. 12 राशियों को प्रदर्शित करते हुए स्तंभ बनाए गए हैं साथ ही नौ ग्रह भी विराजमान हैं.
औरंगजेब की सेना ने किया था हमला
महालक्ष्मी के इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है. जब हिंदुस्तान में मुगलों का राज था. तब औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर पर हमला भी किया था. खजाने की लालच में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर में जमकर तोड़फोड़ की और कई खूबसूरत प्रतिमाओं को खंडित कर दिया गया लेकिन फिर भी औरंगजेब की सेना को यहां से खाली हाथ ही लौटना पड़ा.
इस मंदिर में आज भी होती है तंत्र साधना
मान्यता तो यह भी है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर तंत्र साधना के लिए सबसे उचित स्थान है. इस मंदिर में अक्सर सिद्धियों को हासिल करने के लिए बहुत सारे लोग तंत्र साधनाएं करते हैं. शासन-प्रशासन की सख्ती की वजह से अब मंदिर के अंदर तो लोग तंत्र साधना नहीं कर पाते लेकिन आसपास स्थित जंगल में लोग तंत्र साधना करते नजर आ जाते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर अलौकिक शक्तियों से घिरा हुआ है. यहां सकारात्मक ऊर्जा बसती है. मंदिर के गर्भ गृह में जाते ही एक अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है.
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सूर्य की रोशनी से बदलता है प्रतिमा का रंग
महालक्ष्मी का मंदिर इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहां स्थित मां भगवती की प्रतिमा बाकी प्रतिमाओं से बेहद अलग है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां महालक्ष्मी स्वयं विराजमान हैं. महालक्ष्मी की प्रतिमा अलग-अलग स्वरूप में यहां नजर आती हैं. महालक्ष्मी की प्रतिमा पर सूर्य उदय के साथ ही सूर्य की पहली किरण सीधे प्रतिमा के चरणों पर आकर गिरती है और उसके साथ में प्रतिमा का रंग बदलता रहता है. कभी प्रतिमा का रंग पीला तो कभी सफेद तो कभी नीला नजर आता है.
महालक्ष्मी के मंदिर में वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है. शुक्रवार के दिन भक्तों के लिए विशेष दिन माना जाता है. शुक्रवार के दिन महालक्ष्मी की पूजा का भी दिन होता है इसलिए इस मंदिर में हर शुक्रवार हजारों की तादात में भक्त आकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं. दीप उत्सव में 5 दिनों तक मां भगवती का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं दीपावली के दिन मां भगवती की 24 घंटे पूजा होती है. पूरी रात मंदिर खुला होता है और हर पहर पर महालक्ष्मी की पूजन अर्चन किया जाता है. सुबह 4:00 बजे महालक्ष्मी का पंचगव्य से अभिषेक किया जाता है और फिर श्रृंगार भगवान कुबेर का भी इस मंदिर में पूजन किया जाता है.
पूरी होती है भक्तों की मनोकामना
इस मंदिर में आने वाले भक्तों का भी कहना है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर चमत्कारी मंदिर है. यहां आकर उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. वैसे तो हर शुक्रवार यहां पर मां भगवती की विशेष आराधना की जाती है लेकिन दीपावली की पूरी रात यहां भक्तों का तांता लगा रहता है क्योंकि महालक्ष्मी के मंदिर में दीप जलाने की परंपरा है.