1954 कुंभ की भगदड़ में 1000 लोगों की मौत; लाशों के ढेर को लगा दी आग, नेहरू भी थे मौजूद, एक फ़ोटो जर्नलिस्ट ने सरकार की नींद उड़ा डाली
महाकुंभ 1954
Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ, VVIPs कल्चर और भगदड़ से होने वाली मौतों का सिलसिला काफ़ी पुराना है. हज़ारों सालों की इस धार्मिक अनुष्ठान में करोड़ों की संख्या में लोग हिस्सा लेते रहे हैं. आज तो देश की आबादी सवा अरब से ज़्यादा है. एक वक़्त में जब पूरे देश की आबादी मात्र 40 करोड़ थी, तब कुंभ में ऐसी भगदड़ मची कि 1000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और 2000 से ज़्यादा लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए. यह घटना 1954 के कुंभ मेले की है. जिस दिन भगदड़ मची उस दिन भी ‘मौनी अमावस्या’ का शाही स्नान था. इस दौरान भी मौतों पर राजनीति जमकर हुई. केंद्र की तत्कालीन नेहरू सरकार और राज्य की पंत सरकार ने मारे गए लोगों को ‘भिखारी’ बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की. तत्कालीन यूपी सरकार ने प्रेस को सेंसर करने की जीतोड़ कोशिश की. लेकिन, तब ‘आनंद बाज़ार पत्रिका’ के पत्रकार एन.एन. मुखर्जी ( NN Mukherjee) ने जिगरा दिखाया और अपने कैमरे में खींची गई तस्वीरों से हड़कंप मचा दिया. कई किताबों और लेखों में यह दावा किया गया है कि उनकी रिपोर्टिंग से यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इतने ग़ुस्सा हुए कि उन्होंने मुखर्जी को ‘हरा$&%दा’ तक कह डाला.
1954 में, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे, तब प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित कुंभ मेले के दौरान 3 फरवरी को मौनी अमावस्या के अवसर पर एक भगदड़ मची थी. इस हादसे में लगभग 800 से 1000 लोगों की मृत्यु हुई थी, जबकि 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे. प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी उस समय मेले में उपस्थित थे. प्रत्यक्षदर्शी और उस वक़्त के अख़बारों में छपी ख़बरों के मुताबिक़ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की मूवमेंट के चलते इलाहाबाद और संगम स्थल के कई रास्ते सील कर दिए गए थे. इसके अलावा मेले में जैसे ही ख़बर मिली की पंडित नेहरू संगम में डुबकी लगाने वाले हैं, तब उन्हें देखने के लिए भीड़ एक तरफ़ उमड़ पड़ी और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के चलते भगदड़ ने डरावना रूप पकड़ लिया और लोग एक दूसरे के ऊपर गिरते दिखाई दिए.
नेहरू की मौजूदगी! आँखों देखी मौत का मंजर
पत्रकार एनएन मुखर्जी उस दौरान मेले में एक मचान पर कैमरे के साथ खड़े थे. उन्होंने भगदड़ की कुछ तस्वीरें अपने कैमरे में उतार लीं. हालाँकि, भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि वो ख़ुद भी नीचे गिर गए. लेकिन, जैसे-तैसे ख़ुद को बचाने में कामयाब रहे. मुखर्जी ने यही नहीं रुकने की ठानी, उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग का सिलसिला आगे भी जारी रखा. एनएन मुखर्जी ने साल 1989 में ‘छायाकृति’ नाम की पत्रिका में छपे अपने संस्मरण में इन बातों को विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि हादसे के समय वो संगम चौकी के पास एक टॉवर पर खड़े थे. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को उसी दिन संगम स्नान के लिए आना था. इसलिए सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी उनके आगमन की तैयारियों में व्यस्त थे. लेकिन सुबह 10.20 बजे जब दोनों कार से किला घाट की तरफ बढ़े, तो भीड़ बेकाबू हो गई.
भगदड़ का ऐसा मंजर तैयार हुआ कि कुछ ही पलों में हर तरफ़ लाशें थीं. मुखर्जी ख़ुद कई लाशों से चढ़कर आगे बाहर आए और तस्वीरें ली थीं. जब एनएन मुखर्जी दोपहर के करीब 1.30 बजे अपने दफ्तर पहुँचे तो तमाम साथी और संपादक की जान में जान आई. सभी ने मान लिया था कि भगदड़ में मुखर्जी की भी मौत हो चुकी थी. लेकिन, मुखर्जी ने अपने कैमरे में जो चीजें दिखाई… उससे पूरे दफ़्तर में हलचल तेज़ हो गई. उनके कैमरे में प्रशासन द्वारा आनन-फ़ानन में लाशों के ढेर को जलाने की तस्वीरें थीं. भगदड़ स्थल पर मृतकों के कीचड़ में सने बिखरे हुए जूते-चप्पल थे. इस रिपोर्ट ने पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया. कहा जाता है कि इस कवरेज से तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इतने झल्लाए कि उन्होंने मुखर्जी के लिए ‘हरा$&%दा’ शब्द का प्रयोग कर डाला.
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कांग्रेस ने बताया- कुछ भिखारियों की मौत
1954 के कुंभ में हुई भगदड़ के दौरान केंद्र और प्रदेश दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकारें थीं. इस रिपोर्ट के बाहर आने पर दूसरे राजनीतिक दलों ने केंद्र में पंडित नेहरू और यूपी में पंत की सरकार को निशाने पर ले लिया. इस भगदड़ के लिए पंडित नेहरू के कुंभ दौरे को ज़िम्मेदार ठहराया गया. हालाँकि, कांग्रेस की तरफ़ से आज तक दावा किया जाता है कि हादसे के वक़्त तत्कालीन पीएम नेहरू प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में थे ही नहीं. वैसे उस दौर के कई पत्रकारों ने यह स्वीकार किया था कि तमाम सरकार विरोधी रिपोर्ट को दबाने की कोशिश हुई थी. तत्कालीन सरकार ने मारे गए लोगों को ‘कुछ भिखारियों की मौत’ कहकर हर तरफ़ प्रचारित कराया. लेकिन, एनएन मुखर्जी की रिपोर्ट ने सारी पोल खोलकर रख दी थी. क्योंकि, तस्वीरों में जो मृतक महिलाएँ थीं उनके कपड़े और गहने यह बताने के लिए काफ़ी थे, कि वे कोई भिखारी नहीं थीं.
बंदिशें हज़ार, फिर भी खींच ली तस्वीरें
इस घटना में मारे गए लोगों के शव किसी को दिए नहीं गए, बल्कि ढेर लगाकर सामूहिक रूप से जला दिए गए. एनएन मुखर्जी ने बताया था कि वो जैसे-तैसे और पुलिस प्रशासन से बहाने बनाकर उन शवों के ढेर के पास पहुँचे थे. उन्होंने पुलिसकर्मी के पैर पकड़कर रोने की एक्टिंग की… और बताया कि उनकी दादी भगदड़ में मर गई हैं. उन्होंने वह अब आख़िरी बार देखना चाहते हैं. इसके बाद वह जलते हुए शवों के पास पहुँच गए. इस दौरान उन्होंने अपना एक कैमरा छाते के भीतर रखा था और लेंस के सामने छेद कर दिया था, ताकि तस्वीर साफ़-साफ आ जाए. जलती हुई लाशों के पास जाकर उन्होंने अपने कैमरे का बटन दबा दिया. तब यह टास्क बहुत पेचीदा था. क्योंकि, तब के कैमरे मैनुअल और भारी-भरकम होते थे. हालांकि, तस्वीरों के अगले दिन अख़बार में छपने के बाद पूरे प्रशासनिक अमले में सन्नाटा मार गया.
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कांग्रेस का इनकार, पंडित नेहरू का स्वीकार
कांग्रेस की तरफ़ से आज तक इस घटना को लेकर सफ़ाई दी जाती रही है कि 1954 कुंभ मेले में मची भगदड़ के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू प्रयागराज में नहीं थे. लेकिन, पंडित नेहरू एक अलग कैलिबर के नेता थे. उन्होंने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में ख़ुद सच्चाई बयान की और बताया कि भगदड़ के दौरान वह कुंभ मेले में ही थे. संसद की वेबसाइट पर 15 फरवरी, 1954 को राज्यसभा की कार्यवाही का ब्यौरा मौजूद है. आज की तारीख़ में यह मुश्किल नहीं है. आप भी सर्च करके पढ़ सकते हैं. उस दिन राज्यसभा में चर्चा का एक विषय था- ‘कुंभ मेला त्रासदी’. इस चर्चा में भाग लेने वाले कई सदस्यों ने पंडित नेहरू से अलग-अलग सवाल पूछे थे और उन्होंने भी ब़ड़ी साफ़गोई से हर सवाल का जवाब भी दिया था.
कुंभ में अपनी मौजूदगी पर सदन में पंडित नेहरू कहते हैं, “जहां तक मेरा सवाल है, मैं मौजूद था, उस स्थान पर नहीं जहां त्रासदी हुई थी, लेकिन उससे बहुत दूर भी नहीं. मैं उस मौके पर मेले में था और मैं नदी के दोनों ओर मौजूद विशाल जनसमूह को कभी नहीं भूल सकता, जिसमें लगभग 40 लाख लोग शामिल थे. मैंने अपने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा, चाहे वह कुंभ मेले में हो या देश में किसी अन्य समारोह में या कहीं और… यह बहुत दुख और त्रासदी की बात है कि इस विशाल जनसमूह में एक विशेष स्थान पर कुछ लोग शोक में डूब गए.”