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राजनीतिक भूचाल, सामाजिक ध्रुवीकरण और अपनों की बगावत, क्या सबसे जटिल होने वाला है महाराष्ट्र चुनाव?

Maharashtra Assembly Election 2024

अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस

Maharashtra Election: महाराष्ट्र में 20 नवंबर 2024 को विधानसभा चुनाव होने हैं, और राज्य की राजनीति में इस बार भारी उथल-पुथल मची हुई है. पिछले पांच वर्षों में राज्य की सियासत में कई बड़े बदलाव हुए हैं, जो इस चुनाव को खास और जटिल बना रहे हैं. राजनीतिक दलों के बीच गठबंधनों और टूट-फूट के कारण यह चुनाव पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है.

‘बंटेगे तो कटेंगे’ पर सियासत

चुनाव से पहले बीजेपी के “बंटेगे तो कटेंगे” नारा चर्चा का विषय बना है. यह नारा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिया था, लेकिन पार्टी के अंदर ही कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया है. खासकर, बीजेपी नेता पंकजा मुंडे और एनसीपी के अजित पवार ने इस नारे की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इससे राज्य में विभाजन की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा. इस विरोध को देखते हुए पीएम मोदी ने “एक हैं तो सेफ़ हैं” नारा दिया, और बीजेपी ने इसे अगले दिन प्रमुख अखबारों में प्रकाशित भी कराया. इस बदलाव से साफ होता है कि बीजेपी भी किसी भी मतदाता को खोना नहीं चाहती, क्योंकि यह चुनाव पार्टी के लिए बहुत अहम है.

महायुति vs महाविकास अघाड़ी का ‘युद्ध’

महाराष्ट्र का चुनाव 2024 इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि इसमें कई छोटे और बड़े गठबंधन मैदान में हैं. महायुति (बीजेपी, शिंदे शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी) और महाविकास अघाड़ी (उद्धव ठाकरे की शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी) के बीच कांटे की टक्कर है. पिछले कुछ वर्षों में सत्ता की लड़ाई ने राज्य में राजनीतिक दलों को काफी उलझन में डाल दिया है, जिससे चुनावी परिणामों का अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है.

पिछले पांच सालों में महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक

2019 के विधानसभा चुनावों के बाद, महाराष्ट्र में राजनीतिक संकटों की लंबी कहानी है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर महाविकास अघाड़ी के साथ सरकार बनाई, लेकिन फिर एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी और बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद एनसीपी में भी विभाजन हुआ, जब अजित पवार ने बीजेपी का साथ दिया. इन सब घटनाओं ने राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ लिया, और अब चुनाव के समय सभी पार्टियों को सावधानी से अपने कदम उठाने पड़ रहे हैं.

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सामाजिक ध्रुवीकरण और आरक्षण का मुद्दा

राज्य में इस चुनाव के दौरान सबसे अहम मुद्दा समाज में बढ़ते हुए जातिवाद और आरक्षण से जुड़ी राजनीति है. मराठा समुदाय, जो राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है, लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा है. इस समुदाय में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, खासकर मराठवाड़ा क्षेत्र में. इसके अलावा, आदिवासी और ओबीसी समुदायों के बीच भी आरक्षण को लेकर विवाद बढ़ चुका है. इस सामाजिक ध्रुवीकरण का चुनावी नतीजों पर गहरा असर पड़ेगा.

चुनाव में रेवड़ी पॉलिटिक्स

राजनीतिक दल अब अपनी-अपनी योजनाओं और वादों के साथ जनता को लुभाने में जुटे हैं. एकनाथ शिंदे सरकार ने “मुख्यमंत्री-मेरी लाडली बहन योजना” की शुरुआत की है, जिसके तहत महिलाओं को सीधे वित्तीय लाभ देने की योजना बनाई गई है. इस योजना से विपक्षी दलों को चुनौती मिल रही है, क्योंकि महाविकास अघाड़ी ने भी महिलाओं और बेरोजगार युवाओं के लिए अपने वादे किए हैं, जैसे कि महिलाएं हर महीने 3000 रुपये पाएं और युवाओं को रोजगार मिलने तक 4000 रुपये प्रतिमाह मिले.

प्याज, सोयाबीन और MSP

किसानों के मुद्दे पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है. प्याज की खेती और सोयाबीन की गिरती कीमतों से किसान नाराज हैं. कांग्रेस ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आई तो सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाकर 6000 रुपये प्रति क्विंटल कर देगी, जबकि महायुति ने किसानों के बिजली बिल माफ करने का वादा किया है. इस सबके बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि किसान किसे समर्थन देंगे.

महाराष्ट्र का यह चुनाव सच में बहुत जटिल और कांटे की टक्कर वाला हो सकता है. इस बार राज्य की राजनीति में सामाजिक और जातिवादी मुद्दों का गहरा प्रभाव होगा, और इसमें किसी भी पार्टी के लिए भविष्यवाणी करना आसान नहीं है. फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि चुनाव में कौन जीतेगा, लेकिन यह तय है कि यह चुनाव महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास का सबसे कठिन चुनाव बन सकता है.

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