Supreme Court: इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को “असंवैधानिक” घोषित करने के कुछ सप्ताह बाद, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसले पर रोक लगा दी है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा था कि राज्य के प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त नियमित स्कूलों और हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त स्कूलों में मदरसा छात्रों को तुरंत शामिल किया जाए.
कोर्ट ने जारी किया नोटिस
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस भी जारी किया है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में कुल 16,513 मान्यता प्राप्त और 8,449 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं. जिनमें लगभग 25 लाख छात्र हैं. उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा था कि मदरसा अधिनियम “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 की धारा 22 का भी उल्लंघन है.”
मदरसों का पाठ्यक्रम का अध्ययन करने के बाद, अदालत ने कहा कि छात्रों को अगली कक्षा में आगे बढ़ने के लिए इस्लाम और उसके सिद्धांतों का अध्ययन करना आवश्यक है और आधुनिक विषयों को या तो वैकल्पिक के रूप में शामिल किया जाता है या पेश किया जाता है, और उनके पास केवल एक वैकल्पिक विषय का अध्ययन करने का विकल्प होता है.
30 जून तक देने होगा जवाब
कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि यह निर्देश प्रथम दृष्टया उचित नहीं है. राज्य सरकार समेत सभी पक्षों को 30 जून 2024 या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करना होगा. याचिका जून 2024 के दूसरे सप्ताह में अंतिम निपटान के लिए सूचीबद्ध की जाएगी. इससे पहले वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि छात्रों की संख्या करीब 17 लाख है. हाई कोर्ट ने पहले यथास्थिति बरकरार रखी. लेकिन बाद में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया.
हाई कोर्ट ने जो वजह बताई वो बेहद अजीब है. यूपी सरकार के आदेश पर विज्ञान, हिंदी और गणित समेत सभी विषयों की पढ़ाई हो रही है. इसके बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. यह है 120 साल पुरानी संहिता (1908 की मूल संहिता) की स्थिति। 1987 के नियम अभी भी लागू हैं.