Haryana Election: इन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों का रहा है दबदबा, कोई 5 तो कोई 6 बार लगातार जीता चुनाव

Haryana Election 2024: पिछले विधानसभा चुनाव में सात निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर सदन पहुंचे थे. इनमें से कई विधायकों ने समय-समय पर मौजूदा सरकार को बचाया है. पिछली बार के जीते कुछ निर्दलीय विधायकों को अब भाजपा और कांग्रेस से भी टिकट मिले हैं.
Haryana Assembly Election 2024

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024

Haryana Election 2024: हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल तैयार है. राज्य की कुल 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे और नई सरकार को चुनेंगे. राज्य में 6 सितंबर से चुनावी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. तमाम सीटों पर उम्मीदवार नामांकन दाखिल कर रहे हैं, जिमसें कई निर्दलीय भी शामिल हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव में सात निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर सदन पहुंचे थे. इनमें से कई विधायकों ने समय-समय पर मौजूदा सरकार को बचाया है. पिछली बार के जीते कुछ निर्दलीय विधायकों को अब भाजपा और कांग्रेस से भी टिकट मिले हैं. आइये जानते हैं कि हरियाणा की कितनी सीटें हैं, जहां निर्दलीयों का दबदबा रहा है? ऐसी सीटों पर कैसे मुकाबले हुए हैं?

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पुंडरी विधानसभा का हाल

कैथल जिले के पुंडरी विधानसभा से रणधीर सिंह गोलेन मौजूदा विधायक हैं, जो 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे. इस सीट पर लगातार छह बार से निर्दलीय ही जीत रहे हैं और कुल सात बार निर्दलीय जीते हैं. 1968 के विधानसभा चुनाव में पहली बार पुंडरी सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई थी. उस चुनाव में कांग्रेस के तारा सिंह के सामने निर्दलीय ईश्वर सिंह ने जीत हासिल की थी.

इसके बाद 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई. इस चुनाव में नरेंदर शर्मा ने कांग्रेस से उतरे ईश्वर सिंह को शिकस्त दी. ये वही ईश्वर सिंह थे जिन्होंने 1968 में निर्दलीय चुनाव जीता था, लेकिन बाद में कांग्रेस का हिस्सा बन गए थे. वहीं, साल 2000 में हुए चुनाव में मुख्य मुकाबला दो निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच था. इसमें एक निर्दलीय तेजवीर ने दूसरे निर्दलीय नरिंदर को मात दिया था.

जबकि, 2004 चुनाव में निर्दलीय दिनेश कौशिक ने इनेलो की तरफ से उतरे नरेंदर शर्मा ने को शिकस्त दी. अगले चुनाव में दिनेश कौशिक कांग्रेस का चेहरा बनकर उतरे, लेकिन उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी सुल्तान के हाथों हार झेलनी पड़ी.

बात करें 2014 की तो इस बार दिनेश कौशिक की जीत हुई. इस बार उन्होंने भाजपा की तरफ से उतरे रणधीर सिंह गोलेन को परास्त किया. कौशिक इससे पहले 2004 में भी निर्दलीय ही जीते थे. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इसमें भी एक निर्दलीय को सफलता मिली. रणधीर सिंह गोलेन ने कांग्रेस के सतबीर भाणा को 12824 मतों से शिकस्त दी थी.

नूंह में निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा

यह विधानसभा क्षेत्र नूंह जिले में पड़ता है. पहले ही चुनाव में नूंह सीट पर निर्दलीय को सफलता हासिल हुई. 1967 में हुए हरियाणा के पहले चुनाव में नूंह सीट पर आजाद उम्मीदवार रहीम खान ने कांग्रेस के के. अहमद को हराकर जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1972 में निर्दलीय ने सफलता दर्ज की और एक बार फिर चेहरा थे रहीम खान. इस चुनाव में रहीम ने कांग्रेस प्रत्याशी खुर हेद अहमद को हराया था

नूंह में 10 साल बाद फिर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. 1982 में रहीम खान ने कांग्रेस के चेहरे सरदार खान को हराया. 1989 के उपचुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार हसन मोहम्मद को जीत मिली. नूंह में अंतिम बार 2005 में निर्दलीय प्रत्याशी को सफलता हासिल हुई थी. इस चुनाव में आजाद उम्मीदवार हबीब-उर-रहमान ने आफताब अहमद को पटखनी दी थी. इस तरह से नूंह सीट पर एक उपचुनाव समेत कुल पांच बार स्वतंत्र उम्मीदवार को जीत मिली है.

नीलोखेड़ी में 5 बार जीते निर्दलीय उम्मीदवार

यह विधानसभा क्षेत्र करनाल जिले में पड़ता है. नीलोखेड़ी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. यहां के मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर भी पिछली बार आजाद प्रत्याशी के रूप में सदन पहुंचे थे. नीलोखेड़ी सीट पर अब तक पांच बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने झंडे गाड़े हैं. 1968 में पहली बार निर्दलीय चंदा सिंह को सफलता मिली थी. इस चुनाव में चंदा ने कांग्रेस की तरफ से उतरे राम स्वरूप गिरी को परास्त किया था. इसके 1982 में फिर आजाद प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे और वो थे चंदा सिंह. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार शिवराम को शिकस्त दी थी.

इसके बाद भी अगले दो विधानसभा चुनावों में भी निर्दलीय प्रत्याशी ने विजय हासिल की लेकिन चेहरा जय सिंह राणा थे. जय सिंह ने 1987 में लोक दल के देवी सिंह को तो 1991 में जनता पार्टी के ईश्वर सिंह को मात दिया.

1991 के बाद फिर 2019 में निर्दलीय चेहरे ने विधानसभा चुनाव जीता. नीलोखेड़ी एससी सीट पर धर्मपाल गोंदर ने भारतीय जनता पार्टी के भगवान दास को 2222 वोटों से हराया था. हालांकि, हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले निर्दलीय विधायक गोंदर ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. कांग्रेस ने धर्मपाल गोंदर को भाजपा के भगवान दास कबीरपंथी के सामने उम्मीदवार भी बनाया है.

क्या है हथीन सीट का रिकॉर्ड?

यह विधानसभा सीट पलवल जिले का हिस्सा है. हथीन सीट पर कुल चार बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत का परचम लहराया है. 1968 में पहली बार निर्दलीय हेम राज को सफलता मिली थी. इस चुनाव में हेम राज ने कांग्रेस की तरफ से उतरे देबी सिंह तेवतिया को परास्त किया था. इसके 1972 में फिर आजाद प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे और वो थे रामजी लाल. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर उतरे हेम राज को शिकस्त दी थी.

इसके बाद हथीन में 2005 में निर्दलीय प्रत्याशी को सफलता मिली थी. इस चुनाव में आजाद उम्मीदवार हर्ष कुमार ने कांग्रेस के जालेब खान को को पटखनी दी थी. हालांकि, अगले चुनाव में जालेब खान ने हर्ष कुमार को हराकर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया. लेकिन यह मुकाबला काफी दिलचस्प था क्योंकि 2005 में निर्दलीय जीते हर्ष कुमार ने पाला बदल लिया और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे. वहीं 2005 में हर्ष से हारने वाले कांग्रेस के जालेब खान 2009 में निर्दलीय उतरे और सफलता भी हासिल की.

पिछली बार जीते थे ये 7 निर्दलीय

2019 के हरियाणा में विधानभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को सबसे ज्यादा 40 सीटें मिली थीं. कांग्रेस 31 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी. विधानसभा चुनाव में जजपा 10 सीटें जीतने में सफल रही. इसके अलावा सात निर्दलीय, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) एक और हरियाणा लोकहित पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी. चुनाव जीतने वाले सात निर्दलीय में पुंडरी से रणधीर गोलेन, महम से बलराम कुंडू, रानियां से रणजीत सिंह, बादशाहपुर से राकेश दौलताबाद, दादरी से सोमवीर सांगवान और नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और पृथला से नयन पाल रावत शामिल थे.

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