Chhattisgarh: बंदरों की नसबंदी के नाम पर 60 लाख खर्च, फिर भी आतंक से लोग घर और खेती-बाड़ी छोड़ने को मजबूर

Chhattisgarh News: बंदरों की बढ़ती आबादी को कम करने के लिए प्रदेश मे पायलट प्रोजेक्ट के तहत रायगढ़ जिले में 6 साल पहले 60 लाख रुपए की लागत से बंदरों के लिए नसबंदी केंद्र बनाया गया था, सरकारी आंकड़े के मुताबिक अब तक केवल एक नर बंदर का नसबंदी हो सकी है.
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बंदरों का आतंक

Chhattisgarh News: बंदरों की बढ़ती आबादी को कम करने के लिए प्रदेश मे पायलट प्रोजेक्ट के तहत रायगढ़ जिले में 6 साल पहले 60 लाख रुपए की लागत से बंदरों के लिए नसबंदी केंद्र बनाया गया था, सरकारी आंकड़े के मुताबिक अब तक केवल एक नर बंदर का नसबंदी हो सकी है. समय के साथ अब नसबंदी केंद्र की बिल्डिंग खंडहर और उपयोग में लाने वाले उपकरण कबाड़ हो रहे है. आज रायगढ़ शहर के साथ साथ आसपास के दर्जनों गांव के लोग बंदरों उत्पात से परेशान है.

60 लाख रुपए की लागत से तैयार हुआ था मंकी स्टेरलाइजेशन सेंटर

रायगढ़ में कई गांव ऐसे हैं जहां हर साल बंदर किसानों को लाखों रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं, ऐसे में वन विभाग सबसे ज्यादा बंदरों से प्रभावित क्षेत्र में बंदरों की आबादी रोकने के लिए 2018 में मंकी स्टेरलाइजेशन सेंटर इंदिरा विहार में बनाया गया था जिसमें जिले के सबसे प्रभावित क्षेत्र बांगुरसिया विजयपुर राम झरना तमनार घरघोड़ा और खरसिया क्षेत्र में बढ़ती संख्या को रोकने के लिए वन विभाग इन बंदरों को लाकर नसबंदी का काम करने वाली थी, लेकिन 60 लाख रुपए की लागत से तैयार किए गए पायलट प्रोजेक्ट में अब तक केवल 1 नर बंदर की ही नसबंदी हो पाई है. जहां स्टेरलाइजेशन सेंटर बनाया गया है वहां गुपचुप बेचने आए व्यापारी ने बताया कि बंदर उत्पाद मचाते हैं गाड़ी समेत गुपचुप धकेल देते हैं जिससे काफी नुकसान होता है, साथ ही कई बार बांदर हादसे के शिकार हो जाते हैं जिसे देख काफी दुख लगता है, और कहा कि बंदरों की संख्या पर नियंत्रण होनी चाहिए.

बंदरों के आतंक से ऐसे परेशान हो रहे लोग

बंगुरसिया गांव के कृषक चतुरभुज गुप्ता ने बताया कि बंदरों के आतंक से खेती करना छोड़ दिए हैं. मैं गांव में दुकान खोल लिया हूँ कभी हम गांव से सब्जी रायगढ़ बेचने जाते थे. अब समय ऐसा है कि हम सब्जी खरीद कर खा रहे हैं. बंदर दुकान से भी सामान खींच कर ले जाते हैं, बंदरों का आतंक ऐसा है की वे डॉक्टर के पिता को भी काट चुके हैं.

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छप्पर की जगह लगवाना पड़ा सेट

ग्रामीण भोजराज निषाद ने बताया कि पहले खप्पर का घर हुआ करता था बंदर लाकर लगातार छत में कूदकर छप्पर को नुकसान कर रहे हैं बारिश की दिनों में समस्या होती है जिससे अल्वेस्टर सीट डालना पड़ा है. बंदरों की नसबंदी हो जिससे बंदरों की संख्या में नियंत्रण हो सके.

बंदरों के आतंक के चलते खेती करना छोड़ दिया

रायगढ़ शहर से लगे गांव के ग्रामीण बंदरों के आतंक इतना परेशान हो गया है कि वह अब खेती करना भी छोड़ दिए हैं. जहां पहले गांव से सब्जी बेचने रायगढ़ आया करते थे अब वह अपने खाने के लिए सब्जी रायगढ़ से गांव खरीद कर ले जा रहे हैं बंगुरसिया गांव के किसान खगेश्वर गुप्ता ने बताया कि पहले गांव में कितना सब्जी उत्पादन होता था कि हम लोग रायगढ़ बेचे जाते थे अब हम रायगढ़ से खरीद कर खा रहे हैं साथ ही बंदरों के आतंक बढ़ रही है बंदर लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं वन विभाग के अधिकारियों को जब इसकी जानकारी देते हैं, विभाग के अधिकारी करने को कहते हैं लेकिन हम बंदरों को क्यों मारे? बागवानी का काम रहे अमित गुप्ता ने बताया कि बंदर लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं. मुसम्बी फल तैयार हुआ है जिसे नहीं देखने से बंदर नुकसान पहुंचा रहे हैं सैकड़ो की संख्या में बंदर घर के बड़ी में पहुंच जा रहे हैं. यही वजह है कि रायगढ़ के कई इलाके इसके कारण त्रस्त हैं और वह अधिकारियों को अपनी समस्या बता रहे हैं लेकिन वन विभाग के अधिकारी फिलहाल मामले में ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दे पा रहे हैं इसलिए समस्या जस की तस है.

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