कांग्रेस के आरोपों के बावजूद BJP ने दलित राजनीति में मारी बाजी, जम्मू की सभी SC सीटें जीतीं, हरियाणा में भी मचाई धूम
Dalit Politics: आरक्षण का मुद्दा भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और इस पर सियासी दलों की बयानबाजी अक्सर सुर्खियों में रहती है. कांग्रेस पार्टी ने कई बार भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह आरक्षण को खत्म करने की साजिश रच रही है. 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी कांग्रेस ने यही मुद्दा उठाया था, जिसके चलते भाजपा को कुछ सीटों का नुकसान हुआ और वह पूर्ण बहुमत हासिल करने में असफल रही. लेकिन इस हार के बाद भाजपा और मोदी सरकार ने आरक्षण के प्रति अपनी नीति स्पष्ट कर दी, ताकि दलित और पिछड़े वर्गों में कोई भ्रम न रहे.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों के बाद अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों में आरक्षण को लेकर शंका उत्पन्न हुई थी. इस मुद्दे पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए, मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि आरक्षण से संबंधित कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. सरकार ने यह भी कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के संविधान में ‘मलाईदार तबके’ के लिए कोई प्रावधान नहीं है. यह कदम उन अफवाहों पर सीधा प्रहार था जो आरक्षण के मुद्दे पर दलितों में भय पैदा कर रही थीं.
लेटरल एंट्री विवाद और मोदी सरकार
इसी साल अगस्त में एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिये अधिकारियों की भर्ती की योजना पेश की. विपक्ष ने इस पर आरोप लगाया कि यह कदम दलितों और पिछड़े वर्गों के आरक्षण को खत्म करने की साजिश है. इस आरोप पर भाजपा ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. प्रधानमंत्री मोदी ने लेटरल एंट्री का विज्ञापन रद्द करने का आदेश दिया और साफ कर दिया कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए इस नीति की समीक्षा की जाएगी. इस स्पष्टीकरण के बाद यह मामला शांत हुआ, और दलित समाज को आश्वासन मिल गया कि आरक्षण के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.
राहुल गांधी के बयान पर बवाल
इस बीच, विपक्ष के नेता राहुल गांधी का एक बयान भाजपा के लिए राजनीतिक अवसर बन गया. एक विदेश दौरे के दौरान राहुल गांधी ने आरक्षण पर एक सवाल का जवाब देते हुए कुछ ऐसा कहा, जिससे यह संदेश गया कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करना चाहती है. भाजपा ने इस बयान का खूब फायदा उठाया, और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी हर रैली में कांग्रेस पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जब तक मोदी प्रधानमंत्री हैं, आरक्षण के साथ कोई समझौता नहीं होगा. इस बयान को भाजपा ने जमकर भुनाया, जिससे कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान हुआ. जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने इसका लाभ उठाया.
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चुनावी नतीजों में आरक्षण का असर
अगर हम जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनावी नतीजों का विश्लेषण करें, तो साफ है कि भाजपा को दलित समुदाय का समर्थन मिला. जम्मू में भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि हरियाणा में 17 में से आठ सीटें भाजपा के खाते में आईं. यह भाजपा के दलित समुदाय में मजबूत पकड़ का संकेत है. 2019 के चुनावों में भाजपा ने हरियाणा में पांच आरक्षित सीटें जीती थीं, जबकि इस बार उसने आठ सीटों पर जीत हासिल की.
हरियाणा में कांग्रेस की रणनीति की असफलता
हरियाणा में कांग्रेस को दलित समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ा. कांग्रेस ने भूपिंदर सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया, जबकि दलित नेता कुमारी शैलजा को नजरअंदाज किया गया. हुड्डा के पिछले कार्यकाल में जाटों के प्रभुत्व और दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं, खासकर मिर्चपुर कांड, अभी भी लोगों के जहन में ताजा थीं. भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया और कांग्रेस पर दलित नेताओं को हाशिये पर रखने का आरोप लगाया.
भाजपा की ‘समावेशी विकास’ की नीति
मोदी सरकार ने 2014 से ही ‘समावेशी विकास’ पर जोर दिया है. इसके चलते दलित और पिछड़े वर्गों में भाजपा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बना है. कांग्रेस द्वारा ‘आरक्षण पर खतरे’ की जो कहानी गढ़ी गई थी, वह अब असर खो चुकी है. भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि उसके रहते कोई आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता, और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा दिए गए अधिकारों की रक्षा की जाएगी.
कुल मिलाकर, भाजपा ने आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा फैलाए गए भ्रम को दूर करने में सफलता पाई है. मोदी सरकार के ठोस कदमों ने दलित और पिछड़े वर्गों में यह विश्वास कायम किया है कि आरक्षण सुरक्षित है. यह राजनीतिक खेल भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ है, और उसने इस मुद्दे पर अपना प्रभाव बरकरार रखा है.