Delhi-NCR में किडनी रैकेट का बड़ा खुलासा, कई बड़े अस्पतालों के नाम शामिल

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ महीनो में दिल्ली-एनसीआर के दो बहुचर्चित अस्पतालों के सिस्टम में खामियों का फायदा उठाया जा रहा था। इन अस्पतालों ने सिस्टम में खामियों का फायदा उठा कर किडनी प्रत्यारोपण के नाम पर ब्लैक मार्केटिंग की है। इसमें पुलिस ने 10 आरोपियों के सिंडिकेट और एक सर्जन को गिरफ्तार किया था।
Kidney Transplant Syndicate

किडनी ट्रांसप्लांट के नाम पर ब्लैक मार्केटिंग

Kidney Transplant Syndicate: दिल्ली-एनसीआर में किडनी रैकेट को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। जिसका खुलासा Indian Express में छपी एक इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ महीनो में दिल्ली-एनसीआर के दो बहुचर्चित अस्पतालों के सिस्टम में खामियों का फायदा उठाया जा रहा था। इन अस्पतालों ने सिस्टम में खामियों का फायदा उठा कर किडनी ट्रांसप्लांट के नाम पर ब्लैक मार्केटिंग की है। इसमें पुलिस ने 10 आरोपियों के सिंडिकेट और एक सर्जन को गिरफ्तार किया था।

रिपोर्ट के अनुसार सर्जन डॉ विजया राजकुमारी ने पिछले तीन सालों में नोएडा के अपोलो और यथार्थ अस्पताल में 20 से 25 बांग्लादेशी रोगियों के किडनी ट्रांसप्लांट किया था। पुलिस ने 1 जुलाई को सर्जन को गिरफ्तार किया था। लेकिन अब वह जमानत पर बाहर हैं। उन्होंने कोर्ट में सभी आरोपों से इनकार किया है। इस बीच पुलिस ने 2018 से 2024 तक नोएडा के अपोलो और यथार्थ अस्पताल में बांग्लादेशी रोगियों पर किए गए 125 से 130 किडनी ट्रांसप्लांट का डिटेल मांगा है।

पुलिस के द्वारा की गई गिरफ्तारी में दो बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हैं. भारत के मेडिकल टूरिज्म में काम करने वाला एक ट्रांसलेटर भी इसमें शामिल है। दिल्ली पुलिस ने इस किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अप्रैल में ही विदेशियों के लिए किए गए ऑर्गन ट्रांसप्लांट से संबंधित एक चेतावनी जारी की थी। इसके बाद ही दिल्ली पुलिस एक्टिव हुई और इस मामले की जांच में जुट गई।

इसके बाद इसी साल 17 जून को इस मामले को लेकर एक शिकायत दर्ज हुई थी. उसके बाद दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट तैयार की. दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 अगस्त को डॉ राजकुमारी को जमानत दे दी थी. पुलिस के मुताबिक डॉ राजकुमारी मुख्य रूप से इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल से जुड़ी हुई थीं. इस मामले में अन्य आरोपियों को भी जमानत मिली हुई है.

इस मामले में दिल्ली की अदालत ने 12 सितंबर को धोखाधड़ी, अपराधिक साजिश सहित कई धाराओं के साथ मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत चार्जशीट पर संज्ञान लिया था. देश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट को काफी सख्ती से लिया जाता है. इसमें केवल करीबी ब्लड रिलेशन वाले लोगों को ही अंगदान करने की अनुमति होती है. जिसमें माता-पिता, भाई बहन, बच्चे, दादी-दादा, पोते पोतिया और पति पत्नी ही शामिल हैं. इसके अलावा अन्य रिश्तेदार विशेष परिस्थितियों में ही दान कर सकते हैं.

वहीं विदेशी नागरिकों को अंगदान कराने के लिए फॉर्म 21 जमा करना होता है. यह एक तरीके से संबंधित व्यक्ति के दूतावास से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) होता है. इसमें व्यक्ति यह साबित करता है कि अंगदान प्यार से प्रेरित है, ना कि पैसे और जबरदस्ती से.

किडनी रैकेट दिल्ली से ढाका तक फैले हुए हैं. पुलिस के अनुसार हर एक ट्रांसप्लांट के लिए फॉर्म 21 को सुरक्षित बनाया गया. सिंडिकेट ने कथित तौर पर नकली पारिवारिक पृष्ठभूमि और गलत दस्तावेजों का उपयोग किया. जिसका इस्तेमाल सिंडिकेट डोनर और रिसीवर के बीच संबंध दिखाने के लिए करता था. पुलिस ने यह भी बताया है कि फार्म 21 का ऐसा दुरुपयोग भारत में पहली बार हुआ है।

क्या हैं आरोप

रिपोर्ट के अनुसार, डॉ राजकुमारी ने 1 जनवरी 2018 से 31 मार्च 2023 के बीच नोएडा के अपोलो अस्पताल में कुल 66 किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जरी की। जिसमें बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल थे. वहीं डॉ राजकुमारी ने 7 अगस्त 2022 से लेकर 13 मई 2024 के बीच नोएडा के यथार्थ हॉस्पिटल में विदेशियों पर 78 ऐसे ही ऑपरेशन किए हैं. इनमें 61 बांग्लादेशी मरीज शामिल थे।

नॉएडा के अपोलो अस्पताल में साल 2019 से मई 2024 के बीच बांग्लादेशी मरीजों के लिए 90 फॉर्म 21 वेरिफिकेशन की समीक्षा की। केवल एक में करीबी रिश्तेदार पति या पत्नी शामिल थे। बाकियों में दूर के रिस्तेदार बनाए गए थे। यही हाल यथार्थ अस्पताल में दिखा। रिकॉर्ड में करीब 14 अलग अलग प्रकार की पारिवारिक वंशावली दिखाई गई।

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पुलिस की जांच में क्या आया ?

पुलिस के अनुसार इनमें से अधिकांश मामलों में बांग्लादेश के गरीब व्यक्तियों को 4 से 5 लाख रुपये में किडनी दान करने का लालच दिया जाता है. इधर सिंडिकेट रिसीवर से लगभग 25 लाख रुपये वसूलता है। गिरफ्तार बांग्लादेशियों ने पुलिस को बताया कि प्रत्येक ट्रांसप्लांट के लिए उन्हें लगभग 8 लाख रुपये मिलते थे।

पुलिस ने इस मामले में बांग्लादेश हाई कमीशन के एक ट्रांसलेटर को गिरफ्तार किया है. जिसका नाम रसेल है। उसके लैपटॉप पर एक टेंपलेट के माध्यम से दस्तावेजों में हेरफेर किया गया। उनके पास से एक प्लास्टिक बॉक्स, विभिन्न अधिकारियों की 20 मुहरें, डिजिटल हस्ताक्षर, बैंक खाते की जानकारी, पुलिस वेरीफिकेशन रिपोर्ट, राष्ट्रीय आईडी की कॉपियां, राजू डायग्नोस्टिक एंड लैबोरेट्री की मेडिकल रिपोर्ट, 991 वर्ड फाइलों वाली एक पेन ड्राइव भी पुलिस ने जब्त की गई है। पुलिस के अनुसार इन सभी का इस्तेमाल नकली फैमिली वंशावली बनाने करते थे. मरीजों की फाइलों को तेजी से निपटाने के लिए हर एक मामले के लिए 20,000 रुपये की रिश्वत ली थी.

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