समुद्र का मीठा पानी क्यों हुआ खारा? जानिए माता पार्वती के श्राप की रहस्यमयी कहानी!

माता पार्वती की तपस्या ने न केवल उनके रूप को निखारा, बल्कि उनके दिव्य तेज में भी वृद्धि की. जैसे-जैसे वे तपस्या में लीन होती गईं, उनके रूप और सौंदर्य में एक अद्भुत तेज और आकर्षण आ गया. यही तेज समुद्र देवता की दृष्टि से बच नहीं पाया.
प्रतीकात्मक तस्वीर

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Mythology Story: समुद्र का पानी खारा क्यों है? यह सवाल अक्सर हमारे मन में उठता है, खासकर जब हम समुद्र के किनारे पर पहुंचते हैं और उसका पानी पिने के लिए कोशिश करते हैं तो यह नुकसानदायक साबित होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदू धर्मग्रंथों में समुद्र के खारे पानी का कारण क्या बताया गया है? पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र का पानी खारा होने की वजह माता पार्वती का एक श्राप है. आइये आज यही रोचक कथा जानते हैं.

देवी सती का पुनर्जन्म

किसी भी धार्मिक कथा की शुरुआत अक्सर एक महान यात्रा या तपस्या से होती है. समुद्र के पानी के खारे होने की कहानी भी इसी तरह की एक गहरी और दिलचस्प कथा पर आधारित है. यह कथा शिव पुराण में वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि देवी सती का पुनर्जन्म हुआ था. देवी सती ने अगला जन्म पर्वतराज हिमालय की बेटी के रूप में लिया था, जिनका नाम पार्वती रखा गया. पार्वती न केवल रूप और सौंदर्य में अपूर्व थीं, बल्कि वे बुद्धिमान और निर्भीक भी थीं.

पार्वती ने की शिव के लिए तपस्या

जब पार्वती बड़ी हुईं, तो उन्होंने भगवान शिव को अपने जीवन साथी के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करना शुरू किया. माता पार्वती की तपस्या इतनी कठिन थी कि वे खाने-पीने से भी परहेज करने लगीं. पहले उन्होंने अन्न का त्याग किया और केवल फलाहार पर रहीं, फिर फल भी त्याग दिए और अंत में पत्तियां खानी शुरू कर दीं. यानी की पर्ण. इस वजह से उनका नाम ‘अपर्णा’ पड़ा.

माता पार्वती की तपस्या ने न केवल उनके रूप को निखारा, बल्कि उनके दिव्य तेज में भी वृद्धि की. जैसे-जैसे वे तपस्या में लीन होती गईं, उनके रूप और सौंदर्य में एक अद्भुत तेज और आकर्षण आ गया. यही तेज समुद्र देवता की दृष्टि से बच नहीं पाया.

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देवी पार्वती से विवाह करना चाहते थे समुद्र देवता

समुद्र देवता ने एक दिन देखा कि देवी पार्वती की तपस्या से रूप और तेज अब अनंत हो चुका है. वह उनका रूप देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और अपनी इच्छा प्रकट की. उन्होंने कहा, “हे देवी, मैं समुद्र हूं और आपके रूप के दर्शन से मेरी आत्मा तरंगित हो उठी है. मैं आपसे विवाह करना चाहता हूं.”

माता पार्वती ने बहुत विनम्रता से उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा, “हे समुद्र! मैं भगवान शिव से प्रेम करती हूं और उन्हें ही अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार चुकी हूं.”

जब समुद्र ने शिव को भला- बुरा कहा

समुद्र को बहुत दुख पहुंचा. उन्होंने अपनी तारीफ करते हुए कहा, “मैं समुद्र हूं, मैं अपनी मीठी जल से मनुष्यों की प्यास बुझाता हूं, मैं लाखों जीवों का पालन करता हूं और मेरे पास अनगिनत मोती और रत्न हैं. शिव के पास ऐसा क्या है?”

समुद्र ने अपनी बातें करते-करते भगवान शिव के बारे में कई अपशब्द कह डाले. वह कहने लगा, “हे देवी, वह तो जंगलों और श्मशान में रहने वाला है, उसके पास क्या है? वह धूनी रमाता है और भस्म लपेटता है.”

पार्वती को आया गुस्सा

यह अपमान माता पार्वती से सहन नहीं हुआ. उनका गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने समुद्र को श्राप दिया, “तुमने मेरे पति के बारे में ऐसे अपशब्द कहे हैं, जो सहन नहीं किए जा सकते. अब से तुम्हारा पानी खारा होगा, और कोई भी उसे नहीं पी सकेगा.”

श्राप का प्रभाव

माता पार्वती के श्राप के बाद समुद्र का पानी खारा हो गया. इसका असर तत्काल हुआ और तब से लेकर आज तक समुद्र का पानी खारा ही रहता है. इस श्राप के कारण समुद्र का पानी किसी के लिए भी प्यास बुझाने के लिए उपयोगी नहीं रह गया. इस कथा का धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से यह संदेश है कि किसी भी परिस्थिति में भगवान शिव का अपमान करने का परिणाम नकारात्मक ही होता है.

समुद्र के खारे पानी के पीछे की यह पौराणिक कथा हमें यह सिखाती है कि अहंकार और आत्ममुग्धता कभी अच्छे परिणाम नहीं लाती. चाहे हम समुद्र देवता की तरह कितने ही महान क्यों न हों, भगवान शिव की महिमा का अपमान करने का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है. माता पार्वती के श्राप के कारण समुद्र का पानी खारा हो गया, और आज तक वह पानी किसी की प्यास बुझाने के काम नहीं आता.

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