क्या लालू और ममता के बहकावे में आ गए राहुल गांधी? महाकुंभ से परहेज कांग्रेस को पड़ सकता है भारी!
राहुल गांधी
Maha Kumbh 2025: राहुल गांधी के महाकुंभ जाने की बात जब सामने आई, तो ये खबर बहुत जोर-शोर से उठी. उनके साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी और भांजा रेहान वाड्रा भी प्रयागराज जाने वाले थे. इसके बाद यह तय माना जा रहा था कि राहुल गांधी संगम में डुबकी लगाने जाएंगे. 19-20 फरवरी को यह यात्रा तय थी. लेकिन अचानक राहुल गांधी ने रायबरेली का दौरा किया और महाकुंभ की यात्रा को टाल दिया. सवाल यह है कि ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने महाकुंभ की यात्रा से दूर रहना ही उचित समझा? क्या राहुल गांधी ममता बनर्जी और लालू यादव के बहकावे में आ गए? आइये सबकुछ विस्तार से बताते हैं.
इन दिनों राजनीति में राहुल गांधी एक अलग ही तेवर दिखा रहे हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उनका एक अलग ही रूप सामने आया था, जो लोकसभा चुनाव से बहुत अलग था. लोकसभा चुनाव में उन्होंने विपक्षी नेताओं को सीधे चुनौती दी, लेकिन महाकुंभ के मामले में ऐसा कुछ नहीं दिखा. इसके बजाय, उन्होंने राजनीति से जुड़े अन्य मुद्दों पर ध्यान दिया, जैसे कि मायावती की आलोचना. पहले वे और अखिलेश यादव महाकुंभ पर सवाल उठा रहे थे, लेकिन जैसे ही अखिलेश यादव संगम में डुबकी लगाने गए, राहुल गांधी ने अचानक इस यात्रा से दूरी बना ली.
ममता और लालू का दबाव
महाकुंभ पर राहुल गांधी की चुप्पी के पीछे एक बड़ा कारण विपक्षी नेताओं का दबाव हो सकता है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने महाकुंभ को ‘फालतू’ करार दिया था, जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे ‘मृत्यु कंभ’ तक कह दिया. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी इस बार ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की नीति पर आगे नहीं बढ़ पाए, जो उन्होंने पहले अपनाई थी. इस दबाव के कारण, राहुल गांधी ने महाकुंभ से दूरी बनाने का फैसला किया.
कांग्रेस के अंदर उलझन
राहुल गांधी का महाकुंभ से दूर रहने के पीछे एक और कारण भी जुड़ा हो सकता है. दरअसल, अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के समय कांग्रेस के अंदर काफी उलझन थी. ममता बनर्जी ने बहिष्कार का ऐलान किया, और राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर दी. यह यात्रा उनके लिए एक चुनौती बन गई, क्योंकि ममता और अन्य विपक्षी नेताओं के रुख को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को एक साथ रखना मुश्किल हो रहा था. राहुल गांधी को यह समझ में आ गया कि इस समय धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर कोई कठोर रुख अपनाना पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं होगा.
राहुल गांधी की सबसे बड़ी चुनौती हैं ममता!
राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती ममता बनर्जी हैं. ममता बनर्जी ने साफ-साफ कह दिया है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगी और विधानसभा चुनाव अकेले चुनाव लड़ेंगी. यह भी स्पष्ट है कि ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करना चाहती हैं, जिससे राहुल गांधी से अनौपचारिक नेतृत्व छीनने की कोशिश की जा रही है. राहुल गांधी जानते हैं कि ममता बनर्जी को नजरअंदाज करना आसान नहीं है, क्योंकि ममता की अपनी राजनीतिक ताकत है, और उन्होंने पहले भी कांग्रेस से अलग अपनी राह चुनी थी. ममता का यह रुख राहुल गांधी के लिए एक राजनीतिक संकट है, क्योंकि एक ओर तो उन्हें अपने अस्तित्व को साबित करना है, दूसरी ओर गठबंधन की राजनीति भी करनी है.
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राहुल गांधी का फोकस
राहुल गांधी के लिए अगला बड़ा लक्ष्य आगामी विधानसभा चुनाव हैं. बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव की तारीखें नजदीक हैं. बिहार में इस साल के अंत में और पश्चिम बंगाल में अगले साल. इन चुनावों के मद्देनजर, राहुल गांधी अब अपनी पार्टी की चुनावी रणनीति पर जोर दे रहे हैं. इस समय वह विपक्षी नेताओं के साथ गठबंधन और व्यक्तिगत राजनीति की दिशा में सोच रहे हैं. ममता बनर्जी और लालू यादव का रुख इस समय कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है, और राहुल गांधी यह समझते हैं कि उन्हें इन दबावों का सामना करने के लिए रणनीतिक रूप से अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी.
दिल्ली चुनाव में सीधे विपक्ष से टकरा गए थे राहुल गांधी
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं से सीधे टकराव किया था. इस चुनाव में ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया था. हालांकि, केजरीवाल चुनाव हार गए, और कांग्रेस भी खाता नहीं खोल पाई. लेकिन राहुल गांधी ने केजरीवाल को हराने में ही अपनी जीत देखी. अब यह देखा जा रहा है कि राहुल गांधी अब अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं.
राहुल गांधी का महाकुंभ से अचानक पीछे हटना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक कदम था. ममता बनर्जी, लालू यादव और अन्य विपक्षी नेताओं के दबाव को देखते हुए, राहुल गांधी ने इस बार महाकुंभ से दूरी बनाना बेहतर समझा. तो, क्या यह एक सही रणनीति थी? क्या राहुल गांधी का यह कदम भविष्य में कांग्रेस को लाभ पहुंचाएगा? ये सवाल अभी के लिए अनसुलझे हैं, लेकिन राजनीतिक दांव-पेचों के इस खेल में हर कदम सोच-समझकर उठाया जाता है.
बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी पर साधा निशाना
खैर इस बीच बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है. एमपी के मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता विश्वास सारंग ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी हिंदू नहीं हैं. सारंग ने कहा कि गांधी परिवार से कोई भी महाकुंभ नहीं गया. मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि 45 दिनों में 66 करोड़ सनातनियों ने महाकुंभ में डुबकी लगाई है. लेकिन राहुल गांधी और नेहरू परिवार नहीं पहुंचा. विश्वास सारंग ने कहा कि राहुल गांधी और नेहरू परिवार हिंदू धर्म का पालन नहीं करते हैं. सारंग ने कहा कि राहुल गांधी कोट के ऊपर जनेऊ पहनकर खुद को हिंदू जरूर कहते हैं. लेकिन हिंदू धर्म का पालन नहीं करते हैं.
वहीं, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा, “कुछ राजनेता खुद को हिंदू मानते हैं और हिंदू वोट चाहते हैं. फिर भी राहुल गांधी ने महाकुंभ को छोड़ने का फैसला शायद इसलिए लिया, क्योंकि उन्होंने इसे पीएम नरेंद्र मोदी या सीएम योगी आदित्यनाथ का कुंभ माना, न कि हिंदुओं का. महाकुंभ में न जाने के लिए उद्धव ठाकरे सच्चे हिंदू या बाला साहेब के उत्तराधिकारी नहीं हैं. आने वाले चुनावों में जनता इन दोनों को कड़ा सबक सिखाएगी और उनकी राजनीति धराशायी हो जाएगी.”
इनकी कथनी और करनी में फर्क- शिंदे
इस बीच महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने महाकुंभ नहीं जाने पर राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा है. एकनाथ शिंदे ने कहा कि ये लोग खुद को हिंदूवादी कहते हैं लेकिन कुंभ नहाने नहीं गए. इनकी कथनी और करनी में फर्क है. 65 करोड़ से ज्यादा लोगों ने महाकुंभ में डुबकी लगाई है लेकिन ये लोग नहीं गए. इससे पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी राहुल और उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा कि राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे भटके हुए लोग हैं. ठाकरे अब सावरकर के विरोधियों के साथ चल रहे हैं.