Holi 2025: बघेलखंड के ‘फगुआ’ में होती हैं राम और श्याम की कहानियां, होली के रंग से सराबोर होती है सुबह और शाम
होली के अवसर पर मध्य प्रदेश के बघेलखंड में गाया जाता है 'फगुआ'
Holi 2025: मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों की तरह बघेलखंड में भी होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है. यहां बच्चे, बूढ़े और सयानो को एक साथ जोड़कर रखता है ‘फगुआ’. गीत-संगीत, उमंग, रंग का मेल है. ‘फगुआ’ को केवल होली के समय ही गाया जाता है. जो धुरेड़ी मनाने वाले को उत्साह से भर देता है. हिंदू कैलेंडर के फागुन में फाग होता है और इसी के साथ ‘फगुआ’ गाया जाता है.
भगवान राम और श्याम की कहानियों का संगम है
‘फगुआ’ में भगवान कृष्ण और राम कैसे होली खेला करते थे. इसे गाकर सुनाया जाता है. विलंबित यानी देर तक ठहराव लेकर सुर भरे गीतों को शामिल किया जाता है. इसमें कृष्ण और राम की लीलाओं को सम्मिलित किया जाता है. देसी और विदेश इसके साथ-साथ स्थानीय वाद्ययंत्रों को भी शामिल किया जाता है. इनमें ढ़ोलक, हारमोनियम, झांझ, मंजीरा और नगड़िया पर बघेली बोली में जो सुर छेड़े जाते हैं, उससे पूरा माहौल होलीमय हो जाता है.
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लौंग, इलायची की तश्तरी और गुलाल का तिलक
गांव के चौक-चौराहे, घरों के बाहर बने दहलान और चबूतरों पर होली के समय ‘फगुआ’ का गायन सुनने मिलता है. क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग सभी मिल-जुलकर टोली में फगुआ गाते हैं. तेज और विलंबित स्वर में आकाश को गुंजायमान कर देते हैं. इसके साथ ही बच्चे, अपने से बड़ों को गुलाल देते हैं और बुजुर्ग उन्हें गुलाल का तिलक लगा देते हैं. ये सम्मान का अनोखा तरीका होता है. हमउम्र तश्तरी में रखे लौंग, इलायची और पान के बीड़े को देते हैं. ये भी फगुआ का एक भाग होता है. इसमें गुझिया, खुरमी, सलोनी की मिठास और नमकीनपन शामिल होता है.
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‘फगुआ’ के गीत गूंजते हैं और रंग-गुलाल उड़ता है
लोकगीतों से भरे होली के गीत वाद्ययंत्रों के साथ वातावरण में गूंजते रहते हैं. रंग-गुलाल आसमान में इस आशा के साथ फेंका जाता है कि पूरे आकाश को रंग-बिरंगा कर देगा. लेकिन ये लाल-पीला-हरा गुलाल लोगों को रंगीला बना देता है. सुबह से शुरू हुआ ‘फगुआ’ का गायन शाम तक चलता है और रात होने के साथ ढल जाता है. रंगों की बौछार इन्हें सुंदर से अतिसुंदर की ओर ले जाता है.