जब अवध में मुहर्रम के दिन नवाब ने खेली होली; तब वाजिद अली शाह के समय दिखी थी गंगा-जमुनी तहजीब

अवध अपनी गंगा-जमुना तहजीब के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. नवाबों के समय से ही यहां सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में खुशी के साथ शामिल होते हैं. एक ऐसा ही वाकिया अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के समय का है. जब नवाब साहब मुहर्रम के दिन खुद होली के जश्न में शामिल हुए थे.
Nawab Wajid Ali Shah celebrated Holi on the day of Muharram.

जब नवाब वाजिद अली शाह ने मोहर्रम के दिन मनाई होली.

Holi in Awadh: ‘अमां मियां मुस्कराइए, आप लखनऊ में हैं’. यह कहावत तो आपने सुनी होगी. लखनऊ अपने नवाबी रंगढंग के लिए जाना जाता है. यहां सभी धर्मों को मानने वाले लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते हैं. कुछ इसी तरह की गंगा-जमुना तहजीब अवध के आखिरी नवाब रहे वाजिद अली शाह के समय देखने को मिली थी. जब नवाब ने खुद मुहर्रम का दिन होने के बावजूद होली मनाई थी.

विस्तार से जानिए क्या हुआ था नवाब के समय

यह बात अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के शासन काल ( 1847 से 1856 तक ) की है. तब संयोग से होली और मुहर्रम एक ही दिन पड़ गए. चूंकि दोनों त्योहार अलग-अलग मिजाज के हैं. जहां एक ओर हिंदू हर्षोल्लास और खुशी के साथ त्योहार मनाते हैं, तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समाज मुहर्रम में मातम मनाता है. उस वक्त लखनऊ अवध की राजधानी हुआ करता था. ऐसे में लखनऊ के हिंदुओं ने मुस्लिम भाइयों के जज्बातों की कद्र करते हुए रंगों का यह त्योहार ना मनाने का फैसला किया. हालांकि नवाब की तरफ से हिंदुओं पर होली मनाने की कोई भी पाबंदी नहीं थी.

जब नवाब वाजिद अली शाह ने शहर में कहीं भी होली का जश्न नहीं देखा तो, उन्होंने पूछा कि मुहर्रम के मातम के बाद भी होली क्यों नहीं मनाई जा रही. इसके बाद नवाब साहब को पूरी बात बताई गई.

मुसलमानों का फर्ज है हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें

जैसे ही नवाब वाजिद अली शाह को हिंदुओं की दरियादिली की बात पता चली, उन्होंने फौरन कहा, ‘हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया, इसलिए अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें.’ नवाब साहब ने ऐलान करवाया कि आज पूरे धूमधाम के साथ होली मनाई जाएगी. इसके साथ ही नवाब भी इस होली के जश्न में शामिल हुए.’

नवाब वाजिद अली शाह के जमाने से ही हिंदू- मुसलमान दोनों ही एक दूसरे के त्योहारों का केवल सम्मान ही नहीं करते थे, बल्कि खुशी के साथ एक-दूसरे के त्योहारों में शरीक भी होते थे.

गंगा-जमुनी तहजीब का घर है अवध

अवध गंगा-जमुना तहजीब की बहुत बड़ी विरासत है. यह भारत की बहुसंस्कृति का नेतृत्व करता है. हालांकि लखनऊ की नफासत को जानना है तो उसके लिए आपको खुद लखनऊ जाकर देखना होगा. खासतौर से यहां की मेहमान नवाजी और तहजीब के आप कायल हो जाएंगे. तभी तो लखनऊ के बारे में आदिल रशीद नाम के शायर ने लिखा है-

‘वो प्यार वो खुलूस वो मेहमान नवाजियां
लौटे जो लखनऊ से तो आंखें बरस पड़ीं’

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