TS सिंहदेव ने झीरम हत्याकांड को बताया राजनीतिक साजिश, बोले- NIA ने मुझसे बयान ही नहीं लिया
छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव
CG News: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले की आज 12वीं बरसी है. 25 मई 2013 को हुए इस जघन्य हत्याकांड में कांग्रेस नेताओं समेत 30 से अधिक लोगों की नक्सलियों ने जान ली थी. लेकिन 12 साल बीत जाने के बाद भी घटना की जांच पूरी नहीं हो सकी है. वहीं आज बरसी के मौके पर अंबिकापुर के कांग्रेस कार्यालय में शहीद कांग्रेस नेताओं को श्रद्धांजलि दी गई. जहां पूर्व डिप्टी सीएम TS सिंहदेव ने बड़ा बयान दिया है.
मैं यात्रा का प्रभारी था, पर NIA ने नहीं लिया मेरा बयान
झीरम हत्याकांड की बरसी पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में पूर्व डिप्टी सीएम TS सिंहदेव भी मौजूद थे. जहां उन्होंने बड़ा बयान देते हुए कहा कि NIA ने इस घटना की जांच की लेकिन मुझसे बयान तक नहीं लिया गया जबकि परिवर्तन यात्रा का मैं प्रभारी था. उन्होंने कहा कि ज़ब कांग्रेस सरकार बनी तब हमने NIA से जांच रिपोर्ट मांगी लेकिन नहीं दिया गया. घटना के बाद तब के मुख्यमंत्री डा रमन सिंह से हमने सीबीआई जांच की मांग की लेकिन सीबीआई जांच नहीं कराया गया.
ये नक्सली वारदात नहीं, राजनीतिक साजिश थी
सिंहदेव ने कहा कि 2013 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस न जीते, ऐसा सोचने वाले इस हत्याकांड के पीछे थे. झिरम घाटी की वारदात नक्सली घटना नहीं थी, इस घटना का उद्देश्य कांग्रेस नेताओं की हत्या करना था. नन्दकुमार पटेल की हत्या की साजिश थी. इस घटना में महेंद्र कर्मा टारगेट नहीं थे.
सिंहदेव ने कहा कि ज़ब घटना हुई उस दिन वहां सुरक्षा क्यों नहीं थी, जबकि घटना से दो दिन पहले कड़ी सुरक्षा थी, जगह जगह अर्ध सैनिक बल के जवान तैनात थे. सिंहदेव ने यह भी सवाल उठाया कि, NIA को जांच के लिए जो बिंदु राज्य सरकार ने सौंपा उसमे सुरक्षा वाला बिंदु ही नहीं था.
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12 साल पहले हुए झीरम कांड
बता दें कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में नरसंहार हुआ था. जहां नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं को टार्गेट किया था. झीरम घाटी में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व खत्म हो गया था. जिसमें तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, दिनेश पटेल, बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल जैसे नेता शहीद हो गए थे.
आज भी अनसुलझे हैं झीरम का रहस्य
झीरम के रहस्य आज भी अनसुलझे हैं. पीड़ितों के सवालों के जवाब 12 साल बाद भी नहीं मिल सके. ऐसे में भले सियासी चेहरे आरोप प्रत्यारोप और वार पलटवार की राजनीति में उलझे हों. झीरम के पीड़ितों के चेहरों पर आज भी पीड़ा साफ झलकती है. लेकिन हर बीतते साल के साथ ही झीरम के अनसुलझे रहस्यों और सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद भी कम होती जाती है. पीड़ितों के पास रह तो बस दर्दनाक यादें रह जाती है.