तीन साल में Jagdeep Dhankhar के तीखे तेवर से सबका हुआ सामना, सरकार, विपक्ष से लेकर न्यायपालिका तक पर उठाए सवाल

Jagdeep Dhankhar: धनखड़ ने हमेशा अपनी राय स्पष्टता के साथ रखी, जिसके कारण वे कई विवादों में भी घिरे. उनके अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है.
Jagdeep Dhankhar

जगदीप धनखड़

Jagdeep Dhankhar: जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. उनके तीन साल के कार्यकाल में उनके तीखे तेवर और बेबाक बयानबाजी ने उन्हें लगातार सुर्खियों में रखा. चाहे सरकार हो या विपक्ष धनखड़ का न्यायपालिका के साथ भी टकराव हुआ है. धनखड़ ने हमेशा अपनी राय स्पष्टता के साथ रखी, जिसके कारण वे कई विवादों में भी घिरे. उनके अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. उनके कार्यकाल की समीक्षा अब चर्चा का विषय बन गई है.

उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

जगदीप धनखड़ ने 6 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर जीत हासिल की थी. उन्होंने 74.37% वोटों के साथ जीत दर्ज की, जो 1992 के बाद सबसे बड़ा जीत का अंतर था. उनके कार्यकाल की शुरुआत से ही उनकी सख्त और बेबाक शैली ने ध्यान खींचा. राज्यसभा के सभापति के रूप में, उन्होंने संसदीय कार्यवाही को दृढ़ता से संचालित किया, लेकिन विपक्ष ने उन पर पक्षपात का कई बार आरोप लगाया.

विपक्ष के साथ टकराव

धनखड़ का विपक्ष के साथ रिश्ता हमेशा तनावपूर्ण रहा. विपक्षी दलों, खासकर इंडिया गठबंधन, ने आरोप लगाया कि धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही में पक्षपात किया और बीजेपी सदस्यों को प्राथमिकता दी. जबकि विपक्ष की आवाज को दबाया. 2023 में, 146 विपक्षी सांसदों का निलंबन भारतीय संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व था, जिसके लिए धनखड़ की काफी आलोचना हुई थी. विपक्षी नेताओं ने उनके बयानों को लोकतंत्र पर आघात के रूप में देखा, खासकर जब उन्होंने संसद में बहिष्कार रणनीति पर टिप्पणी की थी.

सरकार और जांच एजेंसियों का समर्थन

धनखड़ ने अक्टूबर 2024 में CBI और ED के समर्थन में बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि इन एजेंसियों पर सवाल उठाना भारत के न्यायिक तंत्र को कमजोर करता है. इस बयान को विपक्ष ने जांच एजेंसियों की मनमानी कार्रवाई का समर्थन माना. आम आदमी पार्टी (AAP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसे सरकार के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक बताया.

न्यायपालिका पर टिप्पणियां

धनखड़ ने न्यायपालिका के कुछ फैसलों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने तमिलनाडु गवर्नर केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई और अनुच्छेद 142 की शक्तियों की तुलना परमाणु मिसाइल से कर दी थी. उनके इस बयान की तीखी आलोचना की गई थी. उनके बयानों को कुछ लोगों ने संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन माना, जबकि समर्थकों ने इसे उनकी निडरता का प्रतीक बताया.

स्वास्थ्य कारण या राजनीतिक महत्वाकांक्षा?

21 जुलाई को, धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, विपक्षी नेताओं ने इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए, क्योंकि यह संसद के मानसून सत्र के पहले दिन हुआ. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे चौंकाने वाला और अप्रत्याशित बताया. उन्होंने कहा कि वे उसी दिन धनखड़ के साथ थे और कोई स्वास्थ्य समस्या का संकेत नहीं था.

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इस्तीफे के बाद अटकलें

धनखड़ का इस्तीफा कार्यकाल पूरा न करने वाला तीसरा उपराष्ट्रपति बन गया, इससे पहले कृष्ण कांत और वी.वी. गिरी भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे. उनके इस्तीफे के बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या यह बीजेपी की नई रणनीति का हिस्सा है. कांग्रेस ने धनखड़ के स्वास्थ्य की कामना करते हुए उनसे निर्णय पर पुनर्विचार की अपील की है.

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