‘Malegaon blast case में सरकार को जाना चाहिए SC’, NIA कोर्ट के फैसले पर आरिफ मसूद का बयान

मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला आने के बाद सियासत तेज हो गई है. कांग्रेस से राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा है कि ये फैसला है, इंसाफ नहीं है.
Arif Masood(File Photo)

आरिफ मसूद(File Photo)

Arif Masood On Malegaon blast: मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA की कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने BJP पूर्व की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है. वहीं कोर्ट के फैसले के साथ ही सियासी बयानबाजी तेज हो गई है. भोपाल से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा है कि NIA कोर्ट फैसले के खिलाफ सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए. जिस तरह अहमदाबाद मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी, उसी तरह मालेगांव ब्लास्ट में भी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए.

इमरान प्रतापगढ़ी बोले- ये फैसला है, इंसाफ नहीं

वहीं मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसले को लेकर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, ‘ ये फैसला आश्चर्यजनक है. ये फैसला है, इंसाफ नहीं है. जो लोग इस जघन्य आतंकवादी घटना में मारी गईं, उनकी रूहें तड़प रही हैं. मौजूदा सरकार ने NIA की पैरवी को कमजोर किया है. मुझे उम्मीद है कि NIA बिना किसी सरकारी दबाव के बड़ी अदालत में जाएगी और दोषियों को सजा दिलवाएगी, तभी शायद मारे गए लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी.’

‘ना हिंदू आतंकवाद होता है, ना इस्लामिक आतंकवाद होता है’

मालेगांव बम विस्फोट मामले में NIA कोर्ट का फैसला आने के बाद दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद वाले बयान को लेकर कहा, ‘मैंने हिंदू आतंकवाद की बात कभी नहीं कही. ना हिंदू आतंकवाद होता है, ना इस्लामिक आतंकवाद होता है.हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई हर धर्म प्रेम और अहिंसा का रूप है. केवल कुछ लोग होते हैं जो कि धर्म को नफरत की तरह इस्तेमाल करते हैं. वही लोग आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं.’

सबूतों के अभाव में सभी को बरी किया

मालेगांव बम ब्लास्ट में बरी होने वालों में पूर्व BJP सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित (सेवानिवृत्त), मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), समीर कुलकर्णी, अजय राहिरकर, राकेश धवड़े और सुधाकर चतुर्वेदी शामिल हैं.

इन सभी आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम (UAPA), आर्म्स एक्ट और अन्य धाराओं के तहत आरोप थे. फैसला 31 जुलाई को सुनाया गया, जिसमें कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया.

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