भारत की ‘आत्मनिर्भरता’ से दुनिया बेचैन, खेती और डेरी उद्योग अमेरिका की आंख की किरकिरी!

प्रधानमंत्री मोदी ने साफ-साफ लफ्जों में ऐलान कर दिया कि वे भारत की कृषि और इससे जुड़े व्यापार की तिलांजलि नहीं देने देंगे. अगर गौर करेंगे तो यह विवाद न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और उभरती भू-राजनीतिक गतिशीलता के बीच एक गहरा संबंध है.
PM Modi and Donald Trump.

PM मोदी और डोनाल्ड ट्रंप.

Self reliant India: आज के दौर में खाद्य सुरक्षा केवल पोषण का मसला नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति (Geo-Politics) का एक महत्वपूर्ण आयाम बन चुका है. भारत और अमेरिका के बीच हालिया कृषि व्यापार विवाद इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि खाद्य संसाधन अब रणनीतिक शक्ति का प्रतीक हैं. हालांकि, अमेरिका रूसी तेल के आयात का बहाना बनाकर भारत को टारगेट कर रहा है, लेकिन सच्चाई सभी को मालूम है कि दबाव भारत के कृषि क्षेत्र पर है. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने साफ-साफ लफ्जों में ऐलान कर दिया कि वे भारत की कृषि और इससे जुड़े व्यापार की तिलांजलि नहीं देने देंगे. अगर गौर करेंगे तो यह विवाद न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और उभरती भू-राजनीतिक गतिशीलता के बीच एक गहरा संबंध है. आप हमारे इस लेख के साथ आगे जुड़े रहिए, आप आसानी से समझ जाएंगे कि अमेरिका की ट्रंप सरकार भारत पर टैरिफ के बहाने अघोषित रूप से इतने सारे सैंक्शन क्यों लगा रही है.

भारत-अमेरिका कृषि विवाद का मूल

भारत और अमेरिका के बीच तनाव का मूल कारण रूस से तेल आयात नहीं, बल्कि कृषि नीतियां हैं. इसके साथ ही पशुपालन यानी डेरी उद्योग भी एक बड़ी वजह है. क्योंकि, भारत अपने छोटे किसान और व्यापारियों का हित देखता है, जबकि अमेरिका की मांग है कि भारत इस सेक्टर को वैश्विक बाजार के लिए खोल दे. बीते कई दशकों में भारत ने अपनी खाद्य आत्मनिर्भरता को मजबूत करने के लिए सब्सिडी, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और निर्यात नियंत्रण जैसे उपाय अपनाए हैं. ये नीतियां अमेरिका को पसंद नहीं आईं, जो भारत पर अपने कृषि बाजार को और खोलने का दबाव डाल रहा है. अमेरिका का दावा है कि भारत की नीतियां वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन करती हैं और अमेरिकी किसानों को नुकसान पहुंचाती हैं. दूसरी ओर भारत का कहना है कि उसकी नीतियां 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं.

अमेरिका की शर्तों को न मानने का भारत के पास उचित तर्क भी है. क्योंकि, अमेरिका में जहां आम किसान की जोत दो सौ एकड़ से ढाई सौ एकड़ के बीच होती है, वहीं आम भारतीय किसान की जोत डेढ़ से दो एकड़ है. इसके अलावा इन्हीं छोटे-छोटे जोत पर भारत की 60 फीसदी से अधिक आबादी निर्भर भी करती है. ऐसे में अगर वैश्विक बाज़ार में इस सेक्टर को खोलता है, तो सीधे कृषि क्षेत्र से जुड़ी तक़रीबन 60 फीसदी आबादी प्रभावित हो जाएगी. क्योंकि, अमेरिका और दूसरे देशों की फॉर्मिंग कंपनियों के मुक़ाबले हमारे किसान और यहाँ की मंडियां बाज़ार में टिक नहीं पाएँगी. ऐसे में एक ही रास्ता है कि जितना हो सके कृषि और डेरी बाजार को प्रोटेक्ट करके रखा जाए.

कुल मिलाकर गौर किया जाए तो यह विवाद केवल व्यापार नीतियों तक सीमित नहीं है. यह एक बड़े भू-राजनीति को फिर से संतुलित करने का हिस्सा है, जहां भारत जैसे उभरते देश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत कर रहे हैं। आज की तारीख में भारत धान, गेहूं और अन्य फसलों के जरिए अपनी आत्मनिर्भरता को कायम रखे हुए हैं. साथ ही वैश्विक बाज़ार में भी अपना दबदबा कायम रखे हुए है.

खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन का संकट

जलवायु परिवर्तन ने खाद्य उत्पादन को और अनिश्चित बना दिया है. सूखा, बाढ़, और असामान्य मौसमी पैटर्न ने फसल उत्पादन को प्रभावित किया है, जिससे खाद्य संसाधन अधिक मूल्यवान और रणनीतिक हो गए हैं. आज की तारीख़ में भारत का मजबूत कृषि आधार ह और यह दुनिया भर में फ़ूड सप्लाई चेन में अहम भूमिका निभा रहा है। भारत का गेहूं और चावल निर्यात, विशेष रूप से अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों में इसकी बढ़ती ताकत को दर्शाता है.

अक्सर देखने को मिला है कि जब देश अपनी खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, तो वैश्विक कृषि व्यापार में अस्थिरता बढ़ती है. उदाहरण के लिए, यदि भारत जैसे देश निर्यात पर प्रतिबंध लगाते हैं तो आयात पर निर्भर देशों में खाद्य संकट गहरा सकता है. यह स्थिति अन्य देशों को भी आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करती है, जिससे वैश्विक व्यापार प्रणाली में बिखराव का डर सताने लगता है.

भू-राजनीति में कृषि की नई भूमिका

भारत-अमेरिका का ताजा विवाद एक बड़े वर्ल्ड पावर के संतुलन का हिस्सा माना जा रहा है. भारत एक बड़ा उपभोक्ता देश ही नहीं, बल्कि सामरिक रूप से ताकतवर मुल्क भी है. कहा जाता है कि जब आप ताकतवर होते हैं, तो आपका कोई दोस्त नहीं होता. या तो पार्टनर होते हैं, या कॉम्पटीटर. अमेरिका एक ताकतवर मुल्क है. उसने बीते दो दशकों में चीन को महाशक्ति बनते देखा है और आज की तारीख में चीन उसकी बराबरी पर खड़ा है. ऐसे में तीसरे देश के रूप में अमेरिका भारत को भी चुनौती के रूप में ही देखेगा. पहले भी वह कई बार भारत के कंधे पर बंदूक रखकर चीन को तबाह करने की योजना बना चुका है. लेकिन, भारत की राजनीतिक समझ वैश्विक मंचों पर स्वायत्त रही है. लिहाज़ा, भारत ने हर फैसला अपने हानि और लाभ के नज़रिए से लेता रहा है. भारत दुनिया भर में एक कृषि महाशक्ति के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है. रूस के साथ उर्वरक व्यापार, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में नेतृत्व और अफ्रीकी देशों के साथ कृषि सहयोग जैसे कदम भारत की पश्चिमी-प्रधान संस्थानों से स्वतंत्रता की खोज को दर्शाते हैं.

कृषि: नया रणनीतिक हथियार

कृषि अब केवल आर्थिक गतिविधि नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार बन चुकी है. जैसे ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में देश अपनी स्वायत्तता को मजबूत करते हैं, वैसे ही खाद्य आत्मनिर्भरता भी राष्ट्रीय शक्ति का प्रतीक बन गई है. भारत की नीतियां इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे एक देश अपनी खाद्य सुरक्षा को रणनीतिक स्वायत्तता के लिए उपयोग कर सकता है.

अमेरिका जैसे पारंपरिक शक्तियों के लिए यह एक चुनौती है. बाजार पहुंच, सहायता और गठबंधन जैसे पुराने उपकरण अब उतने प्रभावी नहीं रहे. भारत जैसे देश, जो अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा कर सकते हैं और वैश्विक बाजारों को प्रभावित कर सकते हैं, अब बाहरी दबावों के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं.

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भविष्य की संभावनाएं

जैसे-जैसे वैश्विक खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी, कृषि नीतियों पर विवाद और गहराएंगे. भारत-अमेरिका विवाद शायद इस नए युग का पहला उदाहरण है, जहां खाद्य शक्ति वैश्विक संबंधों को नया आकार दे रही है. खाद्य संसाधन अब ऊर्जा और प्रौद्योगिकी की तरह रणनीतिक संपत्ति बन गए हैं, जिन्हें नियंत्रित करने के लिए देश प्रतिस्पर्धा करेंगे.

भारत-अमेरिका कृषि विवाद इस बात का संकेत है कि 21वीं सदी में खाद्य सुरक्षा और कृषि शक्ति वैश्विक भू-राजनीति के केंद्र में होंगे. जलवायु परिवर्तन, बढ़ती खाद्य असुरक्षा और बदलते शक्ति संतुलन के इस दौर में भारत जैसे देश अपनी कृषि क्षमताओं के दम पर न सिर्फ अपनी स्वायत्तता को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को भी नए सिरे से गढ़ते भी रहे हैं.

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