पश्चिम बंगाल में दो दिन में दो BLO की आत्महत्या, SIR वर्कलोड पर बवाल, TMC ने चुनाव आयोग पर उठाए सवाल
SIR अपडेट की समय सीम बढ़ी
West Bengal: मतदाता सूची संशोधन अभियान यानी SIR को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. विवाद के केंद्र में संदिग्ध हालात में बीएलओ (BLO) के कथित आत्महत्याओं का मामला है. टीएमसी इस बहाने SIR को लेकर चुनाव आयोग को ही आरोपों के कटघरे में खड़ा किया है, जबकि भारी संख्या में वतन वापसी कर रहे बांग्लादेशियों की संख्या सीमा पर देख लोग, इस पर अलग नजरिए से शक भी जता रहे हैं. आत्महत्या का नया मामला नदिया जिले से आया है, जिसने एक बार फिर पश्चिम बंगाल की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया है.
BLO की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत
नदिया ज़िले में शनिवार को एक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है. 52 वर्षीय रिंकू तरफ़दार, जो पेशे से पार्ट-टाइम टीचर थीं, उनका शव उनके कृष्णानगर के चापड़ा स्थित घर में फंदे से लटका हुआ मिला. पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है.
रिंकू SIR के काम की वजह से तनाव झेल रही थीं
पुलिस के अनुसार, रिंकू तरफ़दार के परिवार ने बताया कि वह कई दिनों से भारी “मानसिक दबाव” में थीं और SIR के अतिरिक्त काम की वजह से तनाव झेल रही थीं. परिवार के सदस्यों ने पुलिस को बताया कि रिंकू शारीरिक रूप से भी कमजोर थीं, फिर भी उन्हें लगातार फील्ड ड्यूटी और दस्तावेज़ सत्यापन का काम करना पड़ रहा था. जांच अधिकारियों ने उनके कमरे से एक नोट बरामद किया है, जिसकी सामग्री को लेकर पुलिस फिलहाल कुछ भी कहने से बच रही है. मगर, इस घटना को लेकर राजनीति भी तेज़ हो चुकी है.
राज्य मंत्री उज्जल विश्वास ने मृतक के परिवार से मुलाकात की और सांत्वना जताई. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले ही SIR की कठोर और असंगठित प्रक्रिया के खिलाफ चुनाव आयोग को आगाह कर चुकी है.
CM ममता बनर्जी पहले ही जता चुकी थीं चिंता
इससे पहले गुरुवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर SIR प्रक्रिया को तुरंत रोकने की मांग की थी. उन्होंने इसे एक अनियोजित और दबावपूर्ण अभियान बताया था, जो सूबे में और भी जानें ले सकता है. ममता दीदी ने मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया पर भी कई गंभीर सवाल खड़ा किया है. उन्होंने आरोप लगाया था कि लगातार फील्ड वर्क और रिपोर्टिंग की जटिलताओं ने शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों और BLOs को अत्यधिक बोझ तले दबा दिया है.
TMC सांसद महुआ मोइत्रा का सीधा आरोप
नदिया की घटना के बाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने चुनाव आयोग को सीधे कठघरे में खड़ा किया है. पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह संदेश है ज्ञानेश कुमार के लिए. आप सीधे तौर पर रिंकू तरफ़दार की मौत के ज़िम्मेदार हैं. एक 52 वर्षीय पार्ट-टाइम टीचर, जिन्हें BLO की ड्यूटी दी गई थी, लगातार दबाव के कारण जान नहीं बचा सकीं.” आगे मोइत्रा ने कहा कि SIR प्रक्रिया में BLOs से अत्यधिक फील्ड वर्क, दस्तावेज़ सत्यापन और समय-सीमा के दबाव में काम करवाया जा रहा है, जिससे कई लोग मानसिक व शारीरिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
पहले भी एक BLO ने की आत्महत्या
नदिया की घटना से पहले बुधवार को जलपाईगुड़ी में भी एक BLO ने आत्महत्या कर ली थी. उनके परिवार ने भी असहनीय SIR कार्यभार को कारण बताया था. लगातार दो दिनों में दो BLO की मौत के बाद राज्य में सियासी बहस तेज़ हो गई है. विपक्ष ने भी इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की है.
चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ा
SIR प्रक्रिया नवंबर और दिसंबर में पूरे देश में चल रही है, लेकिन बंगाल सरकार ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई है. टीएमसी का कहना है कि राज्य में लोकसभा चुनाव से पहले BLOs पर अतिरिक्त दबाव डालकर मतदाता सूची में अनुचित फेरबदल की कोशिश हो रही है. हालांकि चुनाव आयोग की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. दो BLO की मौत के बाद राज्यभर में शिक्षक संगठनों और पंचायत स्तर के कर्मचारियों में भी नाराज़गी बढ़ी है. कई संगठनों ने अगले सप्ताह विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है.
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हकीमपुर बॉर्डर से करीब 1,500 की वापसी
पश्चिम बंगाल में SIR के लागू होने के बाद बांग्लादेशी नागरिकों के रिवर्स माइग्रेशन यानी वापस लौटने की खबरें सुर्खियों में हैं. सीमा सुरक्षा बल (BSF) के सूत्रों के मुताबिक, सिर्फ हकीमपुर (नॉर्थ 24 परगना) चेकपोस्ट के ज़रिए लगभग 1,500 बांग्लादेशी नागरिक पिछले 15 दिनों में अपने वतन लौट चुके हैं. डॉक्यूमेंट्स के सत्यापन का खौफ ऐसा है कि अकेले हकीमपुर चेकपोस्ट पर रोज़ाना 200–300 लोग बैगेज के साथ जमा हो रहे हैं और वापस लौट रहे हैं. इनका कहना है कि SIR ने उन्हें कानूनी जोखिम का डर दे दिया है और इसलिए वे बांग्लादेश लौटना चाहते हैं.
गौरतलब है कि पलायन करने वाले लोगों वर्षों तक बिना दस्तावेज़ों के पश्चिम बंगाल में रह रहे थे. कई लोग कोलकाता, न्यू टाउन, साल्ट लेक जैसे इलाकों में काम करते थे. इनमें से अधिकांश घरेलू कामकाज और मज़दूरी का काम किया करते थे.