Sanchar Saathi पर सियासत: विपक्ष के Pegasus वाले आरोप के बाद सिंधिया बोले- डिलीट कर सकते हैं ऐप, ये जासूसी का उपकरण नहीं

Sanchar Saathi: देशभर में मोबाइल सुरक्षा से जुड़ा सरकारी ऐप ‘संचार साथी’ राजनीतिक बहस के केंद्र में है. दूरसंचार मंत्रालय के हालिया फैसले में सभी नए स्मार्टफोनों पर इस ऐप को प्री-इंस्टॉल करने का निर्देश दिया गया.
Sanchar Saathi

दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया

Sanchar Saathi: देशभर में मोबाइल सुरक्षा से जुड़ा सरकारी ऐप ‘संचार साथी’ राजनीतिक बहस के केंद्र में है. दूरसंचार मंत्रालय के हालिया फैसले में सभी नए स्मार्टफोनों पर इस ऐप को प्री-इंस्टॉल करने का निर्देश दिया गया, जिसके बाद विपक्ष ने इसे “सरकारी जासूसी का नया हथियार” बताते हुए तीखा विरोध शुरू कर दिया. कांग्रेस के नेताओं ने तो इसकी तुलना इज़राइली जासूसी बग पेगासस (Pegasus) से कर डाली. विपक्ष का आरोप है कि सरकार साइबर टूलकिट के ज़रिए नागरिकों की ज़िंदगी को कंट्रोल करना चाहती है. लोकंत्र का हवाला देते हुए विपक्ष ने सरकार के इस कदम को घातक बताया. विपक्ष के इस शोर-शराबे के बीच दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्टीकरण ने माहौल को थोड़ा नरम और सरकार के पक्ष को सामने रखा. सिंधिया ने कहा कि संचार साथी ऐप का Pegasus जैसे किसी निगरानी टूल से कोई संबंध नहीं है, और विपक्ष केवल दुष्प्रचार में लगा है। सिंधिया ने साफ़ तौर पर कहा कि यदि किसी कोई यह ऐप पसंद नहीं है तो वह इसे डीलीट कर सकता है. ग़ौरतलब है कि इसके पहले यह भी चर्चा थी कि कंपनियों को इस ऐप को इस तरह इंस्टॉल करने को कहा गया था, जिससे यह कभी डिलीट न हो.

क्या है संचार साथी ऐप?

दूरसंचार विभाग द्वारा विकसित संचार साथी (Sanchar Saathi) ऐप का उद्देश्य उपभोक्ताओं को मोबाइल-सुरक्षा संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराना है. उदाहरण के लिए जैसे खोए या चोरी हुए फोन को ब्लॉक करना, IMEI की वैधता जांचना, फर्जी सिम पहचानना और धोखाधड़ी वाले कॉल-मैसेज की रिपोर्टिंग. सरकार का दावा है कि यह एक “कंज्यूमर सेफ्टी टूल” है, जिसका किसी प्रकार की निगरानी या गुप्त डेटा संग्रह से कोई लेना-देना नहीं. ऐप पहले भी वैकल्पिक रूप से उपलब्ध था, लेकिन नए फैसले के बाद इसे सभी नए फोनों में अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने का निर्देश जारी हुआ है. यही निर्णय विवाद की असली वजह बना. क्योंकि, “अनिवार्य रूप से इंस्टॉल”- इस लाइन ने कोहराम मचा दिया. फ़िलहाल, सिंधिया की सफ़ाई के बाद विरोध में थोड़ी नरमी देखी जा रही है. लेकिन, कुछ नेता अभी भी इस पर लिखित रूप में आश्वासन चाह रहे हैं.

विपक्ष क्यों उठा रहा Pegasus का मुद्दा?

विपक्षी दल इस आदेश को नागरिक स्वतंत्रता और गोपनीयता पर “अप्रत्यक्ष हमला” बता रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार इस ऐप को जनता के हर फोन में “डिफ़ॉल्ट एंट्री पॉइंट” की तरह इस्तेमाल कर सकती है, जिसके बाद किसी भी प्रकार की डिजिटल निगरानी का रास्ता खुल जाता है.

कई विपक्षी नेताओं ने इसे Pegasus कांड की याद दिलाते हुए कहा कि ऐप सरकार के लिए नागरिकों के फोन में झांकने का नया औज़ार बन सकता है. उनका तर्क यह है कि कोई ऐसा ऐप जो अनिवार्य रूप से फोन में मौजूद होगा, वह बैकग्राउंड में किस प्रकार की परमिशन या सिस्टम-लेवल एक्सेस रखता है—यह आम उपभोक्ता समझ भी नहीं पाएगा और न ही नियंत्रित कर पाएगा. कुछ नेताओं ने संचार साथी को “पेगासस प्लस मॉडल” बताते हुए कहा कि सरकार सुरक्षा के नाम पर एक और सर्विलांस इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रही है, जिसका दुरुपयोग राजनीतिक निगरानी के तौर पर हो सकता है.

सिंधिया की सफाई: फर्जी बयानबाजी, ऐप जासूसी का उपकरण नहीं

इस बढ़ते राजनीतिक विवाद पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को विस्तार से टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि विपक्ष बेवजह भ्रम फैला रहा है और संचार साथी की कार्यप्रणाली को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहा है. सिंधिया ने साफ कहा, “यह ऐप पूरी तरह उपभोक्ता सुरक्षा के लिए है, किसी भी प्रकार से जासूसी या कॉल-ट्रैकिंग से इसका कोई संबंध नहीं. अगर कोई नागरिक ऐप नहीं चाहता है, तो वह इसे डिलीट कर सकता है. इसे बाध्यकारी या अनिवार्य उपयोग के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है.”

मंत्री के अनुसार, ऐप के जरिए अब तक लाखों फर्जी मोबाइल कनेक्शन की पहचान की जा चुकी है और हजारों चोरी हुए फोन वापस मिल चुके हैं. उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष तकनीकी तथ्यों के बजाय राजनीतिक आरोपों में उलझा हुआ है.

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असल विवाद: सुरक्षा बनाम निजता

संचार साथी ऐप का मौजूदा विवाद असल में दो प्रश्नों पर केंद्रित है—

1. क्या सरकार उपभोक्ता सुरक्षा को मजबूत कर रही है?

2. या फिर तकनीकी अनिवार्यता के बहाने निगरानी का नया मार्ग तैयार हो रहा है?

सरकार का कहना है कि डिजिटल फ्रॉड, साइबर क्राइम और मोबाइल चोरी जैसी बढ़ती घटनाओं के चलते ऐसा ऐप जरूरी है. वहीं विपक्ष का तर्क है कि इस तरह की अनिवार्य सिस्टम-लेवल इंस्टॉलेशन से पारदर्शिता और गोपनीयता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. खासकर तब जब देश पहले ही पेगासस जैसे विवाद देख चुका है. बहरहाल, इस मुद्दे पर राजनीतिक टकराव सिर्फ एक ऐप को लेकर नहीं है, बल्कि डिजिटल युग में सुरक्षा बनाम निजता की बड़ी बहस का हिस्सा भी है.

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