Singrauli के इस गांव के चारों ओर बिजली उत्पादन घर, लेकिन 76 साल बाद भी बिजली नहीं
Singrauli News: कल्पना कीजिए कि आपके जिले में खदानों की भरमार हो, स्वाभाविक है कि वहां बड़े-बड़े उद्योगपति अपनी दुकान जमाए हुए होंगे, जिले में पैसा भी बहुत होगा क्योंकि खनन एक महंगी प्रक्रिया है. बावजूद इसके आप उस गांव में रहते हों जहां सांस लेना दूभर है, जहां आज़ादी के 76 वर्षों बाद भी गांव में अंधेरा पसरा हो.
ये सिर्फ कल्पना ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के सिंगरौली (Singrauli) जिले की हकीकत है।
मध्यप्रदेश की ऊर्जाधानी के नाम से मशहूर सिंगरौली जिला, जो कि एशिया का सबसे बड़ा पावर हब है. बावजूद इसके इसी पावरहब से मात्र 24 किलोमीटर दूर स्थित गोभा गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है. चूल्हे की आग से निकलती रोशनी में पढ़ने को मजबूर गांव के बच्चे आखिर अपनी किस्मत में कितना उजाला कर पाएंगे?
मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला देश-विदेश को रोशन करने के मामले में अव्वल है. यहाँ एशिया में सबसे ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ की बिजली से देश ही नहीं बल्कि विदेश भी प्रकाशमान होता है. लेकिन अफसोस कि जिम्मेदार लोग इसी सिंगरौली के गोभा गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाए. यही वजह है कि आज भी गाँव की आधी आबादी अंधेरे में लालटेन युग मे जीने को विवश है.
सिंगरौली जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित है गोभा गाँव. इस इलाके के आस पास 5 पॉवर प्लांट हैं, जहाँ बिजली बनती है और देश विदेश को रोशन करती है. लेकिन खुद इस इलाके के लोग बिजली के लिए मोहताज हैं. गोभा गाँव मे कई टोले ऐसे हैं जहां की आबादी करीब 1500 हैं. इस टोले में ज्यादातर आदिवासी समाज व मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं.
गाँव के निवासी छोटेलाल (50 वर्ष) ने बताया कि इस इलाके में आजादी के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहाँ के लोगों को बिजली नसीब नही हुई. चूल्हे की लकड़ी से आग जलाकर रात किसी तरह गुजार लेते हैं.
छोटेलाल बताते हैं, “नेता यहां सिर्फ पांच वर्ष में एक बार चुनाव के समय आते हैंं. उसके अलावा कोई अधिकारी कभी गाँव नहीं आया. कहने को तो ये गाँव गोभा ग्राम पंचायत का हिस्सा है, लेकिन किसी भी प्रधान ने यहां पर विकास कार्य कराने में रुचि नहीं ली.”
इसी गाँव की निवासी अनीता (35 वर्ष) ने बताया, “रात में खाना नही बनाते है, रात का दिन ढलते ही बना लेते हैं क्योंकि रात में यहाँ तो लालटेन या चिमनी भी नही जलती. आजकल राशन दुकान से सरकारी कैरोसिन तेल भी नही मिलता है, जिस वजह से रात का खाना दिन ढलते ही बना लेते हैं. कई पीढ़ियां रोशनी की राह देखत-देखते खत्म हो गईं पर बिजली नहीं आयी.”
वह आगे बताती हैं, “सरकारी योजना का लाभ आज तक नही मिला, न तो उज्ज्वला योजना के तहद गैस मिला और न ही आवास, घर के नाम पर सिर्फ यही मड़ैया है, लेकिन तब भी हमारा राशन कार्ड नहीं बन पाया है. मनरेगा के तहत काम मांगने गए थे पर काम नहीं मिला. हम किसी तरह मजदूरी करके घर का खर्च चला रहे हैं. जिस दिन काम न मिले उसे दिन बच्चे भूखे सोते हैं.”
अंधेरी रात व ठंड की ठिठुरन में सड़क के किनारे लकड़ी की आग की रोशनी से पढ़ाई कर रहा 5 साल का मासूम मिला, उसके साथ उसकी माँ और बहन थे. वह मासूम आग की रोशनी के सहारे पढ़ाई के दम पर अपनी किस्मत लिख रहा था, उसकी माँ ने बताया, “न तो आवास है , और न ही गाँव मे बिजली, केरोसिन भी नहीं है. इसी लकड़ी की आग से खाना बनता है और बच्चें इसी आग के सहारे रात में पढ़ाई करते हैं. हम लोगों को न मिट्टी का तेल मिलता है न राशन. किसी तरह झोपड़ी में हम लोग दिन भर मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहें है”.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
इस मामले में जिला पंचायत के सीईओ ने बताया कि जिन इलाकों में बिजली की समस्या है ,बिजली नहीं पहुँची है, वहाँ पर डीएमएफ मद से जल्द ही बिजली की सुविधा मुहैया कराई जायेगी. कोशिश है कि फरवरी माह में इलाके में बिजली पहुँच जाएगी.