MP News: पाकिस्तान, बांग्लादेश तक मशहूर रहा रीवा का पान हो रहा विलुप्त! भुखमरी की कगार में खेती करने वाले किसान

MP News: पहले परंपरागत पान की खेती से जुड़ा चौरसिया समाज के लगभग 10 से 15 हजार परिवार पान की खेती किया करते थे लेकिन मौसम की मार और अब पान का सही मूल्य न मिल पाने के कारण धीरे-धीरे पान उगाना बंद कर दिया.
Betel leaf has been cultivated in Rewa.

रीवा में पान की खेती की जाती रही है.

MP News: रीवा के पान का पत्ता जिसकी शान कभी भारत ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसके कसीदे पढ़े जाते थे. रीवा के महसाओ और भीटी गांव मिट्टी की खुशबू में पैदा होने वाला पान अतीत की कगार पर खड़ा है, रीवा के गुढ़ तहसील में लगभग 6 गांव के परिवार की जीविका का माध्यम कभी पान हुआ करता था जो अब विलुप्त होता जा रहा है. आलम यह है कि पान की खेती का रकबा समय के साथ सिमटता गया किसान बेकरी का शिकार होकर रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने लगा. पान और इसकी खेती करने वालों की हालत अब ठीक नहीं है यही वजह है कि पान की खेती से जुड़े चौरसिया समाज अब परंपरागत पेशा छोड़कर मजदूरी करने को विवश हो गया है. क्योंकि पान की खेती में अब खर्च ज्यादा और फायदा कम हो गया है.

कभी लगती थी पान की मंडी, अब स्थानीय लोग ही खरीदने को तैयार नहींं

बता दें कि, एक समय पान की यहां मंडिया लगती थी तो 15 से 20 लाख रुपए का कारोबार एक दिन में हो जाता था. लेकिन अब स्थानीय लोग ही पान खरीदने को तैयार नहीं है जो पान प्रदेश और देश के बाहर जाया करता था वहां के बाजार में अब बाहर यानी कि कोलकाता और नागपुर आदि से पान आने लगा है. जाहिर सी बात है की हालत न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश तक अपनी धाक रखने वाला रीवा के कुछ गांवों का बंगला पान का अब वजूद खत्म होने की कगार में है विडंबना की बात है कि पान की खेती को बचाए रखना शासन प्रशासन से कोई राहत में नहीं मिलती हुई दिख रही.

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पलायन करने को मजबूर ग्रामीण

दरअसल, पहले परंपरागत पान की खेती से जुड़ा चौरसिया समाज के लगभग 10 से 15 हजार परिवार पान की खेती किया करते थे लेकिन मौसम की मार और अब पान का सही मूल्य न मिल पाने के कारण धीरे-धीरे पान उगाना बंद कर दिया. इसके अलावा गुटखा उत्पादन में भी पान की खेती को भारी चोट पहुंचाई स्थानीय और बाहरी बाजार का बंगला पान की पकड़ कमजोर हो गई. फल स्वरुप परंपरागत खेती से जुड़े सभी परिवार अब पलायन कर मजदूरी करने के लिए और गार्ड की नौकरी करने को मजबूर है. अभी क्षेत्र में पान की खेती करने वाले किसानों को उंगलियों में भी गिना जा सकता है जबकि पहले इनकी संख्या हजारों में थी. अब मुश्किल से 8 से 10 परिवार ही हैं जो पान की खेती करते हैं चौरसिया समाज की नई पीढ़ी भी पान की खेती में बिल्कुल रुचि नहीं दिखाती रही. कभी रीवा के पान की अलग-अलग वैरायटी अपनी अलग पहचान रखती थी जिसमें बंगला, जैसवारी,कटक,बंगली पान प्रसिद्ध हुआ करते थे.

ट्रेन की बोगियों में पाकिस्तान जाया करता था पान

चौरसिया समाज के लोग बताते हैं की एक समय था जब  20 25 साल पहले महसाव, पनौता रामपुर सहित इन गांव में 50 एकड़ से अधिक छेत्र में पान के बरेज लगे होते थे जिसे निकलने वाले पत्ते किसान मंडी में सुबह 5:00 से लेकर पहुंच जाते थे मंडी में रीवा शहर और बाहर के व्यापारी किसान पान खरीद कर बस और गाड़ियों से सुबह 8:00 बजे लेकर लौटते थे इस दौर में ट्रक और ट्रेन की बोगियों में भरकर पान पाकिस्तान जाया करता था कहते हैं कि गर्मी के दिनों में पान के बरेज के पास से निकलने से ठंडक मिलती थी लोग बताते हैं की गर्मी के दिनों में एक पान खाने के बाद शरीर में गर्मी कम हो जाती थी और ठंडक शरीर को भी मिलती थी लेकिन अब इस मिट्टी में उस तरह का उत्पादन भी नहीं हो पा रहा जिसे स्थिति यह है कि इन गांवों के सैकड़ो परिवारों ने पान की खेती छोड़ दी.

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