आखिर शेख हसीना को क्यों छोड़ना पड़ा बांग्लादेश? जानें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी क्यों नहीं मान रहे प्रदर्शनकारी

ऐसा नहीं है कि शेख हसीना पहली बार हिंसा का सामना कर रही हों. उनका राजनीतिक जीवन, उनके देश की तरह हिंसा से ही शुरू हुआ. 15 अगस्त 1975 को तख्तापलट के दौरान सेना के अधिकारियों ने ही उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी थी.
SHEIKH HASINA

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Bangladesh Violence: शेख हसीना ने पीएम पद से इस्तीफा देने के बाद बांग्लादेश छोड़ दिया है. फिलहाल वह भारत में हैं. आरक्षण को लेकर भड़की हिंसा ने पड़ोसी मुल्क में अशांति पैदा कर दी है. पीएम आवास तक पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया है. हालांकि, सेना ने कमान संभाल ली है. प्रदर्शनकारी इस बात पर अड़ गए कि देशभर में जो भी हिंसा की घटना हुई है उसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाए.

लेकिन शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को आतंकी कहा और सख्त रुख अपनाया. वहीं प्रदर्शनकारियों ने हसीना सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेशी लोगों ने अपील की कि वे टैक्स न भरें. रविवार के दिन काम पर न जाएं.

इसके बाद हसीना सरकार ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस को रबर की गोली चलाने का आदेश दे दिया. जगह-जगह पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं. इस झड़प में 14 पुलिसकर्मी समेत 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इसके बाद प्रदर्शनकारी और भड़क गए. धीरे-धीरे हालात बद से बदतर होते चले गए. इस हिंसा की आंच पीएम आवास तक पहुंच गई. अंतत: शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा.

बांग्लादेश की माली हालत ठीक नहीं

बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति वैसे ही खराब थी, वहीं इस आंदोलन से इसे और झटका लगा है. वहां तेजी से बेरोजगारी बढ़ रही है. शेख हसीना लंबे समय से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज हैं. हाल ही में जब वो फिर से बांग्लादेश की पीएम बनीं, तो बेरोजगारों छात्रों में गुस्सा बढ़ गया. छात्र सड़क पर उतर आए और आंदोलन करने लगे. आर्थिक मामलों के जानकारों की मानें तो बांग्लादेश की माली हालात बहुत ही खराब है. पड़ोसी मुल्क के पास विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है. साल 2016 के बाद से देश पर कर्ज दोगुना हो गया है. शेख हसीना के विरोधियों ने इस स्थिति के लिए सरकार का कुप्रबंधन बताया है.

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कैसे शुरू हुई हिंसा?

कहानी 1971 से शुरू होती है. ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली. एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया. इसी आरक्षण के विरोध में इस वक्त बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं. यह विरोध जून महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था. हालांकि,मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए.

15 जुलाई को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई. इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए. अब तो यह हालात हैं कि 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है. बता दें कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण कोटे में 5 फीसदी की कमी की गई, लेकिन छात्र इसे पूरी तरह से खत्म करने पर अड़े हुए हैं. अब नौबत ऐसी आ गई कि प्रधानमंत्री हसीना को ही देश छोड़ना पड़ा.

पहली बार इस स्थिति में नहीं पहुंची हैं हसीना

ऐसा नहीं है कि शेख हसीना पहली बार हिंसा का सामना कर रही हों. उनका राजनीतिक जीवन, उनके देश की तरह हिंसा से ही शुरू हुआ. 15 अगस्त 1975 को तख्तापलट के दौरान सेना के अधिकारियों ने ही उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी थी. उस समय शेख बांग्लादेश के राष्ट्रपति थे. मुजीबुर्रहमान के लगभग पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी. हालांकि, शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं. शेख मुजीब की हत्या के बाद भी उनकी बेटी शेख हसीना अपनी बहन के साथ जर्मनी से दिल्ली आई थीं और कई साल तक रही थीं. 1981 में बांग्लादेश लौटकर शेख हसीना ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला था.

2009 से राष्ट्र की कमान संभाल रही थी हसीना

शेख हसीना का इस्तीफा और ढाका से भागना देश के उथल-पुथल भरे इतिहास में एक नया अध्याय है. हसीना ने जनवरी में विवादों से घिरे चुनाव में लगातार चौथी बार जीत हासिल की. मुख्य विपक्षी दलों ने मतदान का बहिष्कार किया था. चुनाव के दौरान हजारों विपक्षी सदस्यों को जेल में डाल दिया गया था. इसके बावजूद, चुनाव को लोकतांत्रिक रूप से आयोजित किया गया था. बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता के रूप में हसीना 2009 से मुस्लिम राष्ट्र की कमान संभाल रही हैं. अब कई लोग मानते हैं कि मौजूदा अशांति उनकी कथित नियंत्रण की भूख और सत्तावादी प्रवृत्ति का प्रत्यक्ष परिणाम है.

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