अमेरिका की नजर, फसाद की जड़…क्या सेंट मार्टिन द्वीप ने छीनी शेख हसीना की ‘कुर्सी’?
Saint Martin Island: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने और देश छोड़ने से पहले शेख हसीना राष्ट्र को संबोधित करना चाहती थीं, लेकिन सेना ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी.अब अवामी लीग की नेत्री और पूर्व प्रधानमंत्री ने अमेरिका के खिलाफ चौंकाने वाला आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने उन्हें सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई है.
शेख हसीना ने दावा किया कि अगर उन्होंने ‘सेंट मार्टिन द्वीप’ को अमेरिका को सौंप दिया होता, तो उनकी सरकार बच जाती. लेकिन सवाल यह है कि अपने खिलाफ अपने ही देश में विरोध प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना ने ‘सेंट मार्टिन द्वीप’ का मुद्दा क्यों उठाया है? क्या बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे अमेरिकी चाल है? क्या सच में अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप हासिल करना चाहता है? आइये सबकुछ विस्तार से बताते हैं…
कहां है सेंट मार्टिन द्वीप?
सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी भाग में है. यह म्यांमार के पास बांग्लादेश के सबसे दक्षिणी भाग में है. इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और यहां लगभग 3,700 लोग रहते हैं. यहां के लोग मुख्य रूप से मछली पकड़ने, चावल की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई में लगे हुए हैं, जिसे सुखाकर म्यांमार को निर्यात किया जाता है.
इस द्वीप का जिक्र हाल के सालों में कई बार हुआ है. कुछ साल पहले आरोप लगाया गया था कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने चुनाव जीतने में मदद के बदले में सैन्य अड्डा बनाने के लिए इसे अमेरिका को बेचने की योजना बनाई थी. हालांकि, इन दावों को अमेरिकी विदेश विभाग ने खारिज कर दिया.
अरब व्यापारियों ने बसाया
इस द्वीप को बंगाली में ‘नारिकेल जिंजीरा’ यानी नारियल द्वीप के नाम से भी जाना जाता है. यहां नारियल के पेड़ों की कोई कमी नहीं है. अतीत में यह द्वीप कभी टेकनाफ प्रायद्वीप का विस्तार था, लेकिन प्रायद्वीप के एक हिस्से के जलमग्न होने के कारण बाद में अलग हो गया. इस द्वीप का इतिहास बहुत समृद्ध है. अठारहवीं शताब्दी में इसे पहली बार अरब व्यापारियों ने बसाया था. उस समय इसका नाम ‘जज़ीरा’ रखा गया था. 1900 में एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण दल ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश भारत के हिस्से के रूप में शामिल किया और इसका नाम सेंट मार्टिन नामक एक ईसाई पुजारी के नाम पर रख दिया. हालांकि, ऐसी रिपोर्ट हैं कि इस द्वीप का नाम चटगांव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मार्टिन के नाम पर रखा गया है.
1937 में म्यांमार के अलग होने के बाद भी यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना रहा. 1947 के भारत- पाकिस्तान बंटवारे तक यह ऐसा ही रहा. इसके बाद यह पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया. बाद में 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद यह द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा बन गया. दावा ये भी किया जाता है पाकिस्तान के एक सैन्य तानाशाह ने इसे अमेरिका को पट्टे पर दे दिया था. लेकिन पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग होने के बाद यह पट्टा खत्म कर दिया गया. हालांकि, इस बात की आज तक पुष्टि नहीं हो पाई है. साल 1974 में बांग्लादेश और म्यांमार ने एक समझौता किया. समझौते के मुताबिक, यह द्वीप बांग्लादेशी क्षेत्र का हिस्सा होगा.
म्यांमार के साथ समुद्री सीमा का मुद्दा
सेंट मार्टिन द्वीप को बांग्लादेशी क्षेत्र के रूप में मान्यता देने वाले 1974 के समझौते के बावजूद द्वीप की समुद्री सीमा के परिसीमन को लेकर विवाद जारी रहा है. बांग्लादेशी मछुआरे अक्सर अपनी नावों का उपयोग द्वीप पर करते हैं.
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बांग्लादेश में रोहिंग्याओं का आगमन
म्यांमार में गई हिंसक सैन्य कार्रवाई के बाद 2017 में सात लाख से अधिक रोहिंग्या पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश भाग गए. उनमें से हज़ारों लोग कॉक्स बाज़ार में कुटुपलोंग शरणार्थी शिविर में डेरा डाले हुए हैं. यह दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है. कॉक्स बाज़ार सेंट मार्टिन द्वीप के बहुत नज़दीक स्थित है. ऐसी रिपोर्टें हैं कि म्यांमार द्वारा प्रतिबंधित संगठन अराकान आर्मी के सदस्य द्वीप पर दावा करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि बांग्लादेश ने बार-बार इससे इनकार किया है. पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार की सेना और अराकान आर्मी के बीच गोलीबारी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं. इसके बाद से बांग्लादेशी नौसेना को सेंट मार्टिन द्वीप के आसपास युद्धपोत तैनात कर दिया है.
अमेरिका की रुचि क्यों?
सेंट मार्टिन द्वीप 1971 में देश के अस्तित्व में आने के बाद से बांग्लादेश की राजनीति पर हावी रहा है. बंगाल की खाड़ी से इसकी निकटता और म्यांमार के साथ समुद्री सीमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमेरिका और चीन की रुचि को बढ़ाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी इस द्वीप पर कैंप करना चाहता है और यहां से चीन के मंसूबों पर पानी फेरना चाहता है. हाल के सालों में चीन की ताकत बहुत बढ़ी है.
वहीं, मुश्किल यह है कि बांग्लादेश के चीन के साथ भी अच्छे संबंध हैं. बांग्लादेश को कर्ज देने वालों में चीन सबसे आगे है. ऐसे में शेख हसीना सरकार बंगाल की खाड़ी को महाशक्तियों के बीच मुकाबले का मैदान नहीं बनने देना चाहती थीं. बंगाल की खाड़ी में किसी बाहरी देश का सैन्य अड्डा भारत के लिए भी सहज स्थिति नहीं होगी. हालांकि, अब जब बांग्लादेश की सत्ता से हसीना बेदखल हो गई हैं, तो उन्होंने इस मुद्दे को एक बार फिर से उठाया है.