बताइये भला! घर की खेती समझ लिए हैं ये तो…
-नितिन भांडेकर
Chhattisgarh: बीते शाम से ही हमारे दामाद बाबू के होंठों में गजब की मुस्कुराहट देखने को मिल रही थी. हमने भी पूछ ही लिया इन मंद-मंद मुस्कुराहटों के पीछे का राज क्या है? फिर क्या था…दामाद बाबू ने अपनी तन्नक आवाज में मुलाजिमों को लगी जमकर फटकार का पूरा किस्सा ही सुना डाला. न्याय के देवता ने शुक्ला जी को फटकार लगाते हुए यहां तक कह डाला कि घर खेती समझते हो, जिसे चाहे दोगे, जिसे चाहे नहीं दोगे?
गजब बेइज्जती है, भई … दामाद बाबू के वचन सुनकर तो आंखों से आंसू आ गए. खैर, चर्चाएं जोरों से हैं कि शुक्ला जी अब फिर से माननीय के निर्देशों का हवाला देकर अपनी मनमर्जी करने वाले हैं. वहीं गुप्तचरों से सूचना प्राप्त हो रही है कि शुक्ला जी के पलटनों में भारी निराशा देखी जा रही है. खासतौर पर इनोवाधारी के रिंग की तारें खुल कर बाहर आ गयी हैं. जब से माननीय के निर्देश की जानकारी मिली है तब से जुगाड़ू राम टाइप के लोग फिर से जुगाड़ लगाने, हाथों में देर शाम से ही पैग पर पैग का दौर शुरू कर दिए हैं. गजब का चिंतन मंथन चल रहा है भई…
परिषद को निहारते इनोवाधारी अब अपने पूरे रिंग के साथ सदमे में है. वहीं काम को लेकर एडवांस दे देने पर अब खूब रोना राही पड़ी हुई है. सुना है कि भविष्य में एबोव का खेला होगा कि बिलो का खेला होगा, चिंतन का विषय है ये तो वक्त ही बता पायेगा, लेकिन सत्य की जीत के लिए विश्वकर्माओं ने जो अथक प्रयास करके निर्देश जारी करवाया है उसकी चर्चा नगर में जोरों से है. ऐसा लगता है मानो नगर के रसूखदारों में भूचाल सी आ गयी है, जो अपनी गलतियों को गली गली राग अलापते हुए रायते की तरह खुद ही फैला रहे हैं.
सियासत के जानकार अब गली चौराहों पर पान चबाते हुए इस मामले पर एक से बढ़कर एक ज्ञान पेल रहे हैं. उधर व्याप्त चर्चाओं के माहौल से निविदा धारियों की सांस फूलने लग गयी है .आगे क्या होगा? कैसे होगा? हमारा क्या होगा ? वैसे आधे से ज्यादा चम्मचों के चेहरे तो देखने लायक हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी ने पानी में भिगो के चमड़े के जूते से गाल पर रसीद कर दिया हो.
खैर हमारी तो सलाह है शुक्ला जी, कुछ तो शरम करो अपनी उम्र के इस पड़ाव का…जहां कुछ ही महीने सरकारी सेवा के बचे हैं. इस समय तो अच्छे कर्म कर लेते. मगर सत्ता के बदलते ही पलटू राम की तरह आप ऐसे पलट गए हो कि गिरगिट भी आपको देखकर शरमा जाए. सही गलत का भी ज्ञान भूल गए. हद है महराज जी. वहीं अभियंता तो बेखौफ हो गए हैं….शौक से रखिये अपने तेवर पर मुलाजिमों…अपने काबू