MP News: 250 साल से ये परिवार बना रहा होल्कर राजवंश के लिये गणेश मूर्ति, पूजा-पाठ के साथ निर्मित की जाती है प्रतिमा

MP News: गणेश चतुर्थी वाले दिन सुबह 10 बजे इनकी प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी रजवाड़ा में और यहाँ से ढोल धमाके पालकी के साथ भगवान गणेश की मूर्ति को ले जया जाएगा.
Khargonkar family has been manufacturing Ganesh idol for Holkar dynasty for last 250 years.

खरगोंकर परिवार पिछले 250 साल से होल्कर राजवंश के लिये गणेश मूर्ति का निर्माण कर रहा है.

MP News: इंदौर शहर में गणेश चतुर्थी को लेकर पूरे विधि-विधान और पूजा-पाठ के साथ गणेश मूर्तियां निर्मित की जाती हैं. इसी को लेकर आज विस्तार न्यूज़ एक ऐसे परिवार के पास पहुँचा जेल जो पिछले 250 साल से होल्कर राजवंश के लिये गणेश मूर्ति का निर्माण कर रहा है जो कि रजवाड़ा में स्थापित की जाती है. सात पीढ़ियो से लगातार खरगोंकर परिवार इस परंपरा को निभा रहा है. सिर्फ़ होल्कर राजवंश नहीं बल्कि इंदौर के ज़मींदार परिवार बड़ा रावला के लिये भी गणेश मूर्ति बनाई जाती है. जब हमने इस बारे में श्याम खरगोंकर से बात की तो उन्होंने बताया कि खरगोंकर परिवार को विरासत में मिली हुई ये एक कला है और आज भी हमने इसे मेंटेन किया हुआ है. हमारे ऊपर गणेश जी की कृपा है जो उन्होंने इतने साल तक हमारी कला को रखा हुआ है. हम लोग जॉब भी करते है और अपनी इस परंपरा को भी निभा रहे है. हमारी आने वाली पीढ़ी भी ये परंपरा क़ायम रखेगी जो एक आनंद की बात है कि गणेश जी हमसे भरपूर सेवा करा ले रहे है.

सारी गणेश मूर्ति पर अलग अलग तरह के मुकुट

अहिल्यामाता दरबार में होल्करी पगड़ी पहनने का रिवाज था. उस समय 250 साल पहले जब हमने गणेश मूर्ति बनाना शुरू किया था तो होल्कर परिवार का कहना था कि राज घराने के लिये मूर्ति बन रही है तो पगड़ी भी राजघराने जैसी होनी चाहिए एक दम राजसी जैसी. उस आधार पर रजवाड़ा की मुख्य मूर्ति जो अहिल्याबाई होलकर की है उस पर होल्कर परिवार की पगड़ी बनायी गई है.

7 सितंबर को सुबह प्राण प्रतिष्ठा

गणेश चतुर्थी वाले दिन सुबह 10 बजे इनकी प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी रजवाड़ा में और यहाँ से ढोल धमाके पालकी के साथ भगवान गणेश की मूर्ति को ले जया जाएगा. विधि विधान से पूजा पाठ कराने के बाद वहाँ स्थापना की जायेगी.

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पर्यावरण हितैषी गणेश मूर्ति

हमारी मूर्ति पर्यावरण हितैषी है जो किसी को नुकसान नहीं पहुँचाती. खदान में से जो मिट्टी निकलती है जिसे कुम्हार लोग भी इस्तेमाल करते है वो मिट्टी हम इस्तेमाल करते है उस मिट्टी को हम प्रोसेस करते है क्योंंकि मिट्टी में कंकड़ पत्थर बहुत होते है तो हाथ से बना नहीं सकते उसे तो उसे छानने के बाद लिक्विफ़ाई करके जो छानने के बाद पानी ज़मीन में चला जाता है और पल्प ऊपर रह जाता है तो उस पल्प को इकट्ठा करने के बाद उसमे कपास, कागज़ और सफ़ेद पाउडर मिलाया जाता है और कूट कर मुलायम किया जाता है फिर उससे मूर्ति बनाया जाता है. मूर्ति तो इको फ्रेंडली है ही साथ में कलर्स भी इको फ्रेंडली (eco friendly) होते है. सब कुछ eco friendly होता है कोई भी अपने घर में विसर्जन कर सकता है.

हर साल 150 मूर्तियाँ हम बनाते है. हम ज़्यादा मूर्ति नहीं बनाते क्यूकी ये हमारा बिज़नेस नहीं परंपरा है. हम बाज़ार में नहीं बेचते मूर्तियाँ. अगर कोई बच्चा भी सीखना चाहता है तो हम सिखाते है. ये हमारा शौक़ है सबको फ्री में ट्रेनिंग भी देना.

कुछ मूर्तियाँ जो POP और अलग अलग केमिकल से बनायी जाती है वो पर्यावरण के लिए तो सेफ है ही नहीं. साथ में ऐसी मूर्तियाँ पूजन के लिए भी श्रेष्ठ नहीं होती. कुछ लोग बस आगे से मूर्ति बना देते है और पीछे का जो पोर्शन है वो ख़ाली छोड़ देते है. मूर्ति बनाने का सही तरीक़ा है कि चारों तरफ़ से मूर्ति पूरी होनी चाहिए.

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