Ambikapur: रेलवे स्टेशन में प्लेटफार्म बनाने करोड़ों का टेंडर जारी, लेकिन अब तक शुरू नहीं हुआ काम, प्रबंधन की लापवाही आई सामने
Ambikapur: अंबिकापुर में कहने के लिए रेलवे स्टेशन है लेकिन यहां से यात्री ट्रेनों का संचालन मांग के अनुरूप नहीं हो रहा है. अंबिकापुर से दिल्ली के लिए सप्ताह में दो दिन ट्रेन चलाने की मांग की जा रही है. इसके अलावा स्थानीय लोग और रेल संघर्ष समिति के द्वारा नई ट्रेनों के संचालन की मांग है. पहले से चल रही ट्रेनों के रूट का दायरा बढ़ाने की भी मांग है, बावजूद रेलवे प्रबंधन ध्यान नहीं दे रहा है. दूसरी तरफ यहां करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य स्वीकृत होने के बावजूद काम शुरू नहीं हो पा रहा है और सरगुजा रेलवे कनेक्टिविटी होने के बावजूद कई सुविधाओं से अभी भी कोसों दूर है.
अंबिकापुर रेलवे स्टेशन में प्लेटफार्म बनाने करोड़ों का टेंडर जारी
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर में रेलवे स्टेशन का निर्माण हुए 17 साल से अधिक का वक्त गुजर गया है, लेकिन अब तक रेल सुविधा यहां विकसित नहीं हो पा रही है। यहां रेलवे स्टेशन में अतिरिक्त प्लेटफॉर्म निर्माण टेंडर जारी करने के बाद भी अब तक निर्माण शुरू नहीं हो पाया है. रेलवे स्टेशन में डिजिटल डिस्पले बोर्ड तक नहीं है. इसकी वजह से हर रोज हजारों यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. प्लेटफार्म की कमी के कारण ट्रेन, स्टेशन से कई किलोमीटर दूर पहले खड़ी हो जाती है और ट्रेनों को भी घंटो इंतजार करना पड़ रहा है. यहां भी यात्रियों को परेशान होना पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद रेलवे प्रबंधन द्वारा लापरवाह बना हुआ है.
लेकिन अब तक शुरू नहीं हुआ काम
अमृत भारत स्टेशन स्कीम के तहत भी अंबिकापुर रेलवे स्टेशन में करोड़ों रुपए खर्च किए गए, रेलवे स्टेशन को आकर्षक बनाया गया, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाएं ही नहीं हैं. स्थानीय लोग कई बार रेलवे के अधिकारियों से मुलाकात कर मूलभूत सुविधाएं विकसित करने की मांग भी कर चुके हैं. रेल विस्तार के लिए आंदोलन भी हो चुका है, लेकिन रेलवे के अधिकारी और स्थानीय जनप्रतिनिधि इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. अंबिकापुर रेलवे स्टेशन से यात्री ट्रेनों का संचालन भी मांग के अनुरूप नहीं है.
रेललाइन के किनारे खड़े इन अधूरे सपनों की गवाही देते हैं कि अंबिकापुर आज भी उस जुड़े हुए भारत से दूर है, जिसकी बातें विकास की मीटिंगों में खूब होती हैं. सवाल साफ है, जब पूरा सरगुजा आगे बढ़ना चाहता है, तो रेलवे सुविधाओं का पहिया आखिर क्यों थम गया है? उम्मीद बस इतनी कि ये आवाज फाइलों के जंगल में नहीं दबेगी और अगली बार जब हम यहां लौटें, तो इस ठहरी हुई पटरियों पर विकास की रफ्तार सच में दौड़ती नजर आए.