बहुत चर्चा है: कौन साहब खा गए पानी की टंकी का पैसा, नन बवाल का सियासी समीकरण, डिनर की पावर पॉलिटिक्स, अब तक कितने निकले फूल छाप कांग्रेसी
बहुत चर्चा है
Bahut Charcha Hai: दुर्ग की एक पानी टंकी ने पिछले दिनों देशभर में सुर्खियां बटोरी. जब उस पानी टंकी की चर्चा शुरू हुई तो पता चला कि ऐसी एक नहीं एक दर्जन से ज्यादा पानी टंकी हैं, जहां भुगतान तो हो गया है, लेकिन टंकी बनी नहीं हैं. सबसे ज्यादा गड़बड़ी दुर्ग जिले में है. उसके बाद राजनांदगांव और जांजगीर का नंबर आ रहा है. यहां के तत्कालीन कलेक्टरों ने मनमानी तरीके से भुगतान किया और अब जो वर्तमान कलेक्टर हैं, उनके गले की फांस बन गई है. एक जिले के बारे में बताया जा रहा है कि वहां के साहब ने ठेकेदार को भुगतान कराया और खुद ही रख लिया.
लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों ने जब फाइलें खांगली तो पता चला कि सिर्फ टंकी नहीं, अधूरी पाइपलाइन बिछाने वाले ठेकेदारों को भी भुगतान कर दिया गया. यह सिर्फ पिछली सरकार में नहीं इस सरकार में भी हुआ है. मंत्री को जैसे ही सरकार में हुए भुगतान की जानकारी मिली, उन्होंने सारी फाइनल तलब कर ली है. अब देखना है कि मंत्री जी भ्रष्ट ठेकेदार और अफसर के गठजोड़ पर क्या कार्रवाई करते हैं.
नन बवाल का सियासी समीकरण
दो नन की गिरफ्तारी के विरोध में देशभर से आवाज उठी. संसद में हंगामा हुआ केरल के सभी पार्टियों के नेता छत्तीसगढ़ दौड़ लगाने लगे. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के बाद अगर नन मामले में सबसे ज्यादा चर्चा किसी नेता की ही हुई तो वह केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे. केरल में चुनाव है और नन का मुद्दा जिस तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर छाया, उससे भाजपा की संभावनाएं प्रभावित होती नजर आई, इसलिए वहां के प्रदेश अध्यक्ष को छत्तीसगढ़ दौड़ लगानी पड़ी. सोशल मीडिया पर इसे लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया आई लेकिन भाजपा डैमेज कंट्रोल में माहिर है.
केरल भाजपा ने जहां अपने प्रदेश की जनता का मुद्दा बताकर अपने पक्ष में माहौल किया तो छत्तीसगढ़ भाजपा भी धर्मांतरण और मानव तस्करी का पत्ता फेंक कर खुद को सेफ किया. इन सबके बीच चर्चा है कि कांग्रेस के बड़े नेता ने इस मुद्दे को लपकने की कोशिश की. लेकिन उनके सलाहकारों ने बताया कि यह बाउंस बैक भी कर सकता है. बस्तर के नेताजी हैं. भाजपा पहले ही धर्मांतरण को लेकर उनको घेर चुकी है. ऐसे में नेताजी ने गेम चेंज किया और जो चल रहा था, उसी पर बयान देकर अपनी राजनीति की खानापूर्ति कर ली.
डिनर की पावर पॉलिटिक्स
पिछले दिनों सरकार और संगठन के लोग दिल्ली पहुंचे तो एक डिनर पार्टी हुई. आमतौर पर बड़े नेता दिल्ली जाते हैं, तो डिनर पार्टी सांसदों के साथ होता है. लेकिन इस बार की पार्टी इसलिए खास थी, क्योंकि केंद्रीय संगठन छत्तीसगढ़ के कुछ सांसदों से नाराज बताए जा रहा है. डिनर पार्टी कहां होगी, यह तय किया केंद्रीय संगठन ने. एजेंडा भी साफ था कि सरकार को गिराने वाले सांसदों को कंट्रोल किया जाए. सांसद और संगठन के नेताओं ने आपस में करीब 2 घंटे डिनर करते हुए यही चर्चा की की सरकार को बचाकर चलना है. सांसदों की चिट्ठी और मांग में कहीं से यह प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वह सरकार के खिलाफ हैं.
कुछ सांसद ऐसे हैं जो केंद्र और राज्य सरकार दोनों को आंखें दिखा रहे हैं. उनको यह संदेश दे दिया गया है कि तेवर ठंडे रखें. पार्टी लाइन पर चलें और केंद्र सरकार जो कर रही है, उसके साथ खड़े रहे. चर्चा में ऑपरेशन सिंदूर से लेकर छत्तीसगढ़ के तमाम मुद्दे छाए रहे. देखना है कि डिनर पॉलिटिक्स से जो संदेश निकला है, उस पर आने वाले समय में कितना अमल होता है. डिनर में एक नए नवेले सांसद की तारीफ हुई, जिन्होंने धर्मांतरण के मुद्दे पर जोरदार प्रदर्शन किया. संसद के अंदर और मीडिया से चर्चा में भी सांसद का परफॉर्मेंस अच्छा था. ऐसे में सत्ता और संगठन के लोग उनकी तारीफ करते नजर आए.
अब तक कितने निकले फूल छाप कांग्रेसी
कांग्रेस नेताओं को जिलों में बैठक करने का जिम्मा सौंपा गया तो कई जगह बवाल होता नजर आया. दुर्ग संभाग और बिलासपुर संभाग के नेताओं की मीटिंग में कई फूल छाप कांग्रेसियों की चर्चा रही. उनको पार्टी से निकालना और उनकी जगह नए नेताओं को मौका देने की बात सामने आई है. बेमेतरा में तो बीच मीटिंग में कांग्रेसी भिड़ गए और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे. इसकी रिपोर्ट प्रदेश संगठन को भेजी गई है. ब्लॉक कांग्रेस कमेटी और जिला कार्यकारिणी को लेकर दीपक बैज को 3 महीने का समय राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिया है.
प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही काफी गंभीर माहौल कांग्रेस के जिला कमेटी में बन गया है. करीब 12 जिलों के जिला अध्यक्ष पद से हटाए जा सकते हैं. अब तक जो रिपोर्ट सामने आई है, उसमें पर्यवेक्षकों ने सबसे पहले अटैक जिला अध्यक्षों पर ही किया है और पिछले चुनाव में हार के लिए उन लोगों को सीधे तौर पर जिम्मेदार मानते हुए हटाने की बात कही है. अगस्त का महीना कांग्रेस नेताओं के लिए काफी चुनौती पूर्ण होगा, क्योंकि सारे बदलाव इसी महीने में होने हैं.