Vishnu Deo Route: छत्तीसगढ़ के आदिवासी पर्वतारोहियों ने रचा इतिहास, हिमाचल की बर्फीली चोटियों पर खोला ‘विष्णु देव रूट’
विष्णु देव रूट
Chhattisgarh Tribal Mountaineers: छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के पांच लड़कों ने इतिहास रच दिया है. आदिवासी पर्वतारोहियों ने हिमाचल प्रदेश के मनाली स्थित दूहंगन घाटी की 5,340 मीटर ऊंची जगतसुख पीक पर चढ़ाई करके छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर दिया है. पर्वत की इस चोटी पर सुई जैसी चुभती सर्द हवाएं चलती हैं. वहीं, कदम-कदम पर मौत का डर बना रहता. न फिक्स रोप और न ही कोई सपोर्ट स्टाफ लेकिन फिर भी इन पर्वतारोहियों ने कमाल कर दिखाया है.
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर अल्पाइन शैली में चढ़ाई करना अत्यंत कठिन होता है. इसे पूरा करने में आमतौर पर काफी समय लगता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी युवाओं ने बेस कैंप से महज 12 घंटे में चढ़ाई पूरी कर नया इतिहास रच दिया है.
जगतसुख पीक पर खोजा ‘विष्णु देव रूट’
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के पांच आदिवासी युवाओं ने ‘पहाड़ से हौसलों’ के दम पर जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोलने में कामयाबी हासिल की है. खास बात यह है कि इस नए मार्ग का नाम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नाम पर रखा गया है. ‘विष्णु देव रूट’ नाम मुख्यमंत्री की पहल के प्रति सम्मान के रूप में किया गया है. बता दें कि सीएम विष्णु देव साय की पहल पर जशपुर जिला प्रशासन ने सितंबर 2025 में पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से यह अभियान शुरू किया था.
कठिन प्रशिक्षण से हासिल किया मुकाम
जगतसुख पीक पर चढ़ाई करने वाले पांचों पर्वतारोहियों को देश देखा क्लाइम्बिंग एरिया में प्रशिक्षण दिया गया था. बिलासपुर के पर्वतारोही स्वप्निल राचेलवार, न्यूयॉर्क (USA) के रॉक क्लाइम्बिंग कोच डेव गेट्स और रनर्स XP के निदेशक सागर दुबे ने इन्हें मानसिक, शारीरिक और तकनीकी प्रशिक्षण दिया था. इन युवाओं ने मात्र दो माह की तैयारी और 12 दिन के अभ्यास से ही ये मुकाम हासिल कर दिखाया.
इतना ही नहीं इन युवाओं ने ‘विष्णु देव रूट’ के अलावा सात नए क्लाइंबिंग रूट भी खोले हैं. इनमें वे रास्ते भी शामिल हैं, जो पहले कभी किसी पर्वतारोही ने नहीं खोले. इस चोटी की सफल चढ़ाई के बाद टीम ने इसे ‘छुपा रुस्तम पीक’ नाम दिया है तो वहीं चढ़ाई के इस मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma)’ नाम दिया गया है.
गांवों में भी विश्वस्तरीय पर्वतारोही
अभियान का नेतृत्व करने वाले पर्वतारोही स्वप्निल राचेलवार ने बताया कि तमाम मौसमी चुनौतियों को मात देकर इस तरह से चढ़ाई करना ही असली अल्पाइन शैली है. यह कामयाबी इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि यदि सही मार्गदर्शन, अवसर और संसाधन मिले तो भारत के सुदूर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों से भी विश्वस्तरीय पर्वतारोही तैयार हो सकते हैं. वहीं, अभियान की सफलता पर सीएम विष्णु देव साय ने लिखा- ‘भारत का भविष्य गांवों से निकलकर दुनिया की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है.’