CG News: नहीं मिला मुक्तांजलि शव वाहन, 2 साल की बेटी की डेड बॉडी को सीने से लगाकर बस में सफर तय किया
2 साल की बच्ची के अंतिम संस्कार के लिए जाते हुए.
Input- नितिन भांडेकर
CG News: छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले स एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है. ग्राम मोगरा निवासी गौतम डोंगरे हैदराबाद में मजदूरी करता है. बेटी बीमार हुई तो उसे पत्नी संग तुरंत घर लौट पड़ा, लेकिन किस्मत इतनी बेरहम निकली कि हैदराबाद से घर लौटती ट्रेन में ही नन्हीं परी ने पिता की गोद में दम तोड़ दिया.
राजनांदगांव स्टेशन पर उतरे टूटे-बिखरे पिता ने सरकार की मुक्तांजलि शव वाहन सेवा से मदद मांगी. लेकिन जवाब मिला सुविधा तभी मिलेगी, जब मौत सरकारी अस्पताल में दर्ज हो.
यानी, इंसान की मौत भी अब सरकारी मुहर की मोहताज हो चुकी है.
बेहरहम सिस्टम ने इंसानियत को किया निराश!
बेरहम सिस्टम से निराश पिता ने अपनी मासूम की नन्हीं लाश को सीने से चिपकाया और साधारण बस से खैरागढ़ तक सफर किया. यह सफर सिर्फ किलोमीटर का नहीं था, यह सफर था टूटे सपनों, बुझी उम्मीदों और सरकारी बेरुखी का.
बस से उतरने पर पिता-पत्नी बिल्कुल अकेले खड़े थे. न गांव का सहारा, न कोई रिश्तेदार.
प्रेम विवाह के कारण गांव ने पहले ही उनका सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. बेटी की मौत के बाद भी गांव वालों के दिल नहीं पसीजे.
एक समाजसेवी ने बढ़ाया मदद का हाथ
इसी बीच एक समाजसेवी हरजीत सिंह ने इंसानियत का हाथ बढ़ाया. बिना दिखावे, बिना स्वार्थ के परिवार के साथ खड़े हुए, न सिर्फ घर तक पहुंचाया, बल्कि अंतिम संस्कार तक हर जिम्मेदारी निभाई.
हरजीत सिंह का कहना, ‘उस पल मैंने सिर्फ इतना सोचा कि यह बच्ची मेरी भी बेटी हो सकती थी. इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.
प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल
एक बार फिर प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल है, जो बड़े-बड़े वादे करती है लेकिन एक पिता को अपनी बेटी की लाश बस में ढोने पर मजबूर कर देती है. ये सवाल है उस समाज पर, जो जात-पात और रिवाजों के नाम पर इतना पत्थर दिल हो चुका है कि दर्द में भी सहारा नहीं देता है. लेकिन यही अंधेरा दिखाता है कि उम्मीद की एक लौ अभी बाकी है, और वह लौ है इंसानियत की, जो हरजीत जैसे लोगों के दिलों में अभी भी जलती है.