Chhattisgarh: यहां हैं महिषासुर के ‘वंशज’… नहीं करते मां दुर्गा की पूजा, किंवदंती कि देवी ने छल से किया था वध

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां महिषासुर के वंशज हैं. वह महिषासुर को राक्षस नहीं, बल्कि अपना पूर्वज मानते हैं और पूजा करते हैं. जानें पूरी कहानी-
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यहां रहते हैं महिषासुर के पूर्वज

Chhattisgarh News (कुंदन सिंह राजपूत, जशपुर): पूरे देश में इस समय शारदीय नवरात्रि का पर्व मना रहा है. हर को मां दुर्गा की भक्ति में डूबा है. लेकिन छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक अलग परंपरा देखने को मिलती है. यहां राक्षसराज महिषासुर की पूजा की जाती है. यह समुदाय जशपुर के पहाड़ों में रहता है. इस समुदाय के लिए महिषासुर कोई असुर नहीं, बल्कि उनके पूजनीय पूर्वज हैं. यह अनूठी परंपरा न केवल छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत में हर समुदाय की अपनी मान्यताएं और विश्वास हैं, जो उनकी पहचान को और भी खास बनाता हैं.

महिषासुर के वंशज

छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड में एक अलग परंपरा देखने को मिलती है. यहां जनजातियों का एक समुदाय है, जो खुद को राक्षसराज महिषासुर का वंशज बताते हैं. समुदाय के लोग महिषासुर की पूजा करते हैं. इस समुदाय के लोगों की जनजाति जशपुर के जरहापाठ, बुर्जुपाठ, हाडिकोन और दौनापठा जैसे स्थानों पर निवास करती है. जशपुर जिले में इनकी आबादी महज 150 से 200 ही है. इस समुदाय के लोगों का मानना है कि महिषासुर का वध केवल एक छल था, जिसमें मां दुर्गा ने देवताओं के साथ मिलकर छल पूर्वक उनके पूर्वज की हत्या कर दी थी.

महिषासुर ही इनके राजा

इस जनजाति समुदाय के लोग नवरात्रि में दुर्गा पूजा उत्सव में शामिल नहीं होते हैं. उनके अनुसार देवी के प्रकोप से उनकी मृत्यु का डर रहता है. वह न केवल देवी की पूजा से दूरी बनाए हुए हैं, बल्कि अपने खेत, खलिहान में महिषासुर को अपना आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं. उनके लिए महिषासुर राजा है और उसकी मृत्यु पर खुशी मनाना उनके लिए असंभव है.

जाति प्रमाण पत्र में भी इनकी जाति ‘असुर’

इस जनजाति के लोगों के जाति प्रमाण पत्र में भी इनकी जाति असुर ही लिखी हुई है.

दिवाली पर भैंसासुर की पूजा

इस समुदाय के लोग दिवाली के दिन भैंसासुर की भी पूजा करते हैं. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस जनजाति के लोग नवरात्रि के दौरान किसी भी प्रकार के रीति-रिवाज या परंपरा का पालन नहीं करते हैं. वे अपने पूर्वजों की स्मृति में गहरे शोक में डूबे रहते हैं, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण भावना है. इन लोगों को अपने पूर्वज महिषासुर को लेकर काफी गर्व है और वह उसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मानते हैं.

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असुर समाज के लोग पत्थर से लोहा बनाने का काम करते थे. उनके पूर्वज भी पत्थर से लोहा बनाते थे. आज वो मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है ये वर्ग जहां रहता है वहां आज भी सड़क नहीं है. पगडंडियों से होकर ये अपने गांव तक पहुंचते हैं. वहीं, कोई बीमार हो जाए तो उसे कांवर में ढो कर मुख्य मार्ग तक लाते हैं.

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