CG News: रायगढ़ में जिंदल कोयला खदान के खिलाफ जारी आंदोलन हुआ उग्र, प्रदर्शनकारियों ने गाड़ियों को लगाई आग, DSP घायल
रायगढ़ में जिंदल कोयला खदान का विरोध
CG News: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में बीते 8 दिसंबर को जिंदल कोयला खदान को लेकर नियमविरुद्ध हुई जनसुनवाई के विरोध का सिलसिला लगातार जारी है. लोगों के भीतर गुस्सा और आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है. ग्रामीण जिंदल कोयला खदान के खिलाफ पिछले 16 दिनों से तमनार के मनार सीएचपी चौक पर आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन को खत्म कराने के लिए पुलिस बल का प्रयोग किया जा रहा है और सड़क से आंदोलनकारियों को हटाया जा रहा है.
पुलिस और ग्रामीणों में तनाव का माहौल
आज पुलिस ने आंदोलन कर रहे ग्रामीणों को तमनार थाने में बैठा लिया है और सीएचपी चौक पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है. इस कार्रवाई के दौरान ग्रामीणों और पुलिस के बीच तनाव का माहौल बन गया. स्थिति उस समय और बिगड़ गई, जब प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर जानलेवा हमला किए जाने की खबरें सामने आईं.
इस दौरान कई गाड़ियों में आग लगाए जाने की भी सूचना मिल रही है. हिंसक झड़प में डीएसपी और थाना प्रभारी के घायल होने की भी खबर है. इलाके में तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है और हालात पर नजर रखी जा रही है.

क्या है पूरा मामला
रायगढ़ जिले की तमनार तहसील के धौराभाठा गांव में जिंदल कंपनी की गारे पेलमा सेक्टर-1 कोयला खनन परियोजना को लेकर प्रस्तावित जनसुनवाई ने पूरे क्षेत्र में तीखा विरोध खड़ा कर दिया है. यह परियोजना 14 गांवों की ज़मीन, जंगल और आजीविका को सीधे प्रभावित करती है, जिसके चलते स्थानीय ग्रामीण लंबे समय से एकजुट होकर इसका विरोध कर रहे हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि बीते छह महीनों से चल रहा सतत संघर्ष है. उनके मुताबिक वे अपनी ज़मीन और जीवन-यापन को बचाने के लिए लगातार आवाज़ उठाते रहे हैं, लेकिन उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया. 5 दिसंबर को जब जनसुनवाई की शुरुआत होनी थी, तब ग्रामीणों ने पंडाल और टेंट लगाने से रोक दिया, जिसके कारण पहले ही दिन पूरी प्रक्रिया ठप हो गई.
ग्रामीणों ने लगाया जनसुनवाई को जनता से छुपाने का आरोप
इसके बाद ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कंपनी और प्रशासन ने मिलकर जनसुनवाई को जनता की इच्छा के विरुद्ध आगे बढ़ाने की कोशिश की. उनका कहना है कि 8 दिसंबर को जनसुनवाई को चुपचाप किसी अन्य स्थान पर आयोजित कर दिया गया और ग्रामीणों की अनुपस्थिति में इसे पूरा घोषित कर दिया गया. जिस स्थान की जानकारी आम जनता को दी गई थी, वहां कोई जनसुनवाई नहीं हुई.
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