द्रोणाचार्य पुरस्कार कोचों को दिया जाता है जो खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने और उन्हें शीर्ष स्तर पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस साल द्रोणाचार्य पुरस्कार सुभाष राणा (पैरा-शूटिंग), दीपाली देशपांडे (शूटिंग) और संदीप सांगवान (हॉकी) को सम्मानित किया गया.
क्या आपने कभी सरकारी दफ्तरों में कैमरे की क्वालिटी पर ध्यान दिया है? 'सुपर HD' की उम्मीद तो छोड़िए, ये कैमरे तो बमुश्किल साफ तस्वीर खींच पाते हैं! यही वजह है कि आपकी आधार या वोटर कार्ड की फोटो में वो क्लियरनेस नहीं दिखती, जो आपको अपनी सेल्फी में होती है.
फिलहाल, बिहार की राजनीति में जो कलह और विरोधाभास नजर आ रहे हैं, वे राज्य की राजनीति में आने वाले समय में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकते हैं.
बाहुबली कौन? बिहार में राजनीतिक परिदृश्य हमेशा से ही दिलचस्प और जटिल रहा है. नीतीश कुमार ने हाल ही में अपने दल जेडीयू के एक नारे से अपनी राजनीतिक ताकत का इशारा किया है. इस नारे के तहत उन्हें बिहार का 'बाहुबली' यानी सबसे ताकतवर नेता के रूप में पेश किया जा रहा है
भुंडा महायज्ञ की शुरुआत भगवान परशुराम ने की थी, और इसे नरमेघ यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है. यज्ञ के दौरान, परशुराम ने नरमुंडों की बलि दी थी, जिससे इसे नरमेघ यज्ञ कहा जाता है.
इस हनीट्रैप गिरोह ने केवल आम जनता को ही नहीं, बल्कि समाज के प्रतिष्ठित लोगों को भी अपना शिकार बनाया. दावा किया जा रहा है कि एक डॉक्टर ने इस गिरोह से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी. पुलिस की जांच में यह सामने आया कि डॉक्टर को ब्लैकमेल किया गया था और उसे पैसों की भारी डिमांड की गई थी.
डूरंड लाइन लंबे समय से दोनों देशों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बनी हुई है. अफगानिस्तान कभी भी इस रेखा को अपनी राष्ट्रीय सीमा के रूप में स्वीकार नहीं करता, और यही कारण है कि दोनों देशों के रिश्तों में हमेशा तनाव रहा है.
राम मंदिर के निर्माण के बाद, अब मथुरा और काशी जैसे अन्य धार्मिक स्थलों का मुद्दा भी उभर सकता है. RSS और VHP के नेतृत्व में महाकुंभ में इस मुद्दे पर चर्चा हो सकती है कि कैसे अन्य विवादित धार्मिक स्थलों पर भी न्याय मिल सकता है और इन स्थानों को धर्म की रक्षा के रूप में पुनर्निर्मित किया जा सकता है.
बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है, और वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं. 50 वर्षीय हरिश्चंद्र बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित थे, लेकिन परिवार के डर के कारण वे अपनी बातों को खुलकर नहीं कह पाते थे. 16 साल की उम्र में उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और घर छोड़ दिया.
पुलिस और बाल कल्याण समिति (CWC) की एक संयुक्त टीम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गुप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई की और शनिवार को बच्चे को बचा लिया. हालांकि, बच्चे को लेने वाले दंपति ने आरोपों का खंडन किया और कहा कि उन्होंने किसी भी प्रकार का भुगतान नहीं किया.