रतन टाटा को उनकी विनम्रता और मानवीय मूल्यों के लिए याद किया जाएगा. वे हमेशा समाज के कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशील रहे. उनकी विचारधारा यह थी कि व्यापार केवल मुनाफा कमाने का साधन नहीं, बल्कि समाज के उत्थान का एक माध्यम होना चाहिए.
पवन खेड़ा ने बताया कि मतगणना के दिन कुछ मशीनें 99% पर थीं, जबकि अन्य मशीनें सामान्यत: 60-70% पर थीं. हमने मांग की है कि इन मशीनों को जांच पूरी होने तक सील कर दिया जाए. हम अगले 48 घंटों में और शिकायतें पेश करेंगे.”
सचदेवा ने आरोप लगाया कि शीशमहल बंगले की चाबी सौंपने और वापस लेने में आम आदमी पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री के विशेष सचिव प्रवेश रंजन झा के बीच मिलीभगत थी.
नतीजों के बाद, कांग्रेस नेता जयराम रमेश और पवन खेड़ा ने चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए इसे "तंत्र की जीत और लोकतंत्र की हार" करार दिया.
लखीमपुर खीरी में इस चुनाव के लिए कुल 12,000 शेयरहोल्डर्स अपने मत का प्रयोग करेंगे. नामांकन की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हो चुकी है, जिसमें नामांकन वापसी 10 अक्टूबर को और अंतिम मतदाता सूची 11 अक्टूबर को जारी की जाएगी.
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आरएसएस की सलाह पर ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश की. सैनी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र लाडवा में व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया और खाप और पंचायत नेताओं से मिलकर उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयास किया.
2019 में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद उमर अब्दुल्ला सरकार के खिलाफ एक सशक्त आवाज़ बने. वे लंबे समय तक नजरबंद भी रहे, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा. अब, जब वे दोबारा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, तो उनके सामने नई चुनौतियां होंगी.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हरियाणा के पांच विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए जोरदार प्रचार किया. उनके प्रभावशाली प्रचार का ही नतीजा है कि पांच में से चार सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की.
कांग्रेस ने 'किसान, जवान और पहलवान' जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की, लेकिन वे इस विरोध को व्यापक जनता तक पहुंचाने में नाकाम रहे. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना को मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने मोर्चा संभाला, लेकिन बीजेपी ने पीएम पेंशन योजना और अनाजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी योजनाओं से किसानों का विश्वास जीत लिया.
बीजेपी का चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने और नए चेहरे को सामने लाने का यह फॉर्मूला कोई नया नहीं है. इससे पहले भी पार्टी इस रणनीति को कई राज्यों में अपना चुकी है और वहां भी उसे सफलता मिली.