कश्मीर में उग्रवाद और आतंक की शुरुआत कोई अचानक नहीं हुई. इसके पीछे सालों पुरानी साजिशें, राजनैतिक चालें और धार्मिक कट्टरता का जहर छिपा है. 1947 में भारत के बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर थी. सबसे पहले उसने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' के तहत कबायली लड़ाकों को भेजा, जो कश्मीर पर हमला कर सके.
दिसंबर 2024 में उन्हें फिर से परिवहन विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. यही विभाग लगभग 10 साल पहले भी उनके पास था, जब मनोहर लाल खट्टर सरकार ने उन्हें वहां से हटा दिया था.
अब सवाल ये कि पाकिस्तानी नागरिकों के पास ये दस्तावेज आए कहां से? राशन कार्ड और वोटर ID के लिए आधार कार्ड, स्थानीय पता और पहचान पत्र चाहिए. कई बार जो लोग लंबे वक्त से भारत में रहते हैं, वो स्थानीय ऑफिसों से ये दस्तावेज बनवा लेते हैं. लेकिन सिस्टम में ढील और चेकिंग में लापरवाही की वजह से ऐसा हो पाता है.
24 अप्रैल को पीएम मोदी ने कहा था, "आतंकियों की बची-खुची जमीन को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है." उनकी इस बात से साफ है कि भारत अब नरमी नहीं बरतेगा. पहलगाम हमले के बाद 23 अप्रैल को भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक हमला भी किया था. अब बुधवार की इन बैठकों में कोई बड़ा ऐलान होने की संभावना है.
सूत्रों के हवाले से पता चला है कि इस हमले की पूरी साजिश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने रची थी. ISI के बड़े अधिकारियों और पाकिस्तानी सेना के कुछ आला अफसरों के नाम भी इस साजिश से जुड़े हैं.
पाकिस्तान में असल सत्ता चुनी हुई सरकार के पास नहीं, बल्कि वहां की फौज और ISI के पास है. ये दोनों मिलकर आतंकी संगठनों को पैसा, हथियार और पनाह देते हैं. PoK में आतंकी कैंप चलाने से लेकर आतंकियों को भारत में घुसपैठ कराने तक, सब ISI की देखरेख में होता है.
Supreme Court On Pegasus Spyware: क्या जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आतंकियों को पकड़ने के लिए गलत हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पेगासस जासूसी मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल पूछा. कोर्ट ने साफ कहा कि देश की सुरक्षा सबसे पहले है, और इसके लिए जरूरी कदम उठाना कोई अपराध नहीं. लेकिन […]
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सब कुछ बदल दिया. इस हमले में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय की जान चली गई. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का दिल टूट गया. उन्होंने कहा, "मैंने पर्यटकों को बुलाया था, लेकिन उनकी सुरक्षा नहीं कर पाया. क्या अब मैं राज्य का दर्जा मांगूं?"
कांग्रेस की बातों में दो चेहरे दिख रहे हैं. राहुल और खड़गे ने बैठक में कहा कि वो आतंकवाद के खिलाफ सरकार का साथ देंगे. कांग्रेस की बड़ी मीटिंग में भी यही बात हुई कि देश को एकजुट रखना है. इससे वो दिखाना चाहते हैं कि वो देश के साथ हैं. लेकिन कुछ कांग्रेस नेताओं ने उल्टा रास्ता पकड़ा.
कनाडा के प्रधानमंत्री रह चुके जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी भी इस बार हार गई. ट्रूडो का शासन कई सालों तक रहा, लेकिन इस बार जनता का मूड कुछ और था. इसके पीछे एक बड़ा कारण था अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणियां.