Bihar Politics: हाजीपुर लोकसभा सीट पर चाचा-भतीजा में रार बरकरार! आखिर कौन होगा इस सीट से उम्मीदवार?
Bihar Politics: आमतौर पर राजनीति में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि जनता अपने नेता के लिए रोने लग जाए. ताजा मामला बिहार का है. कार्यकर्ता और क्षेत्र की जनता अपने राजनेता को देख रो रहे थे और नेता भी भावुक थे. मौका था जमुई के झाझा में केंद्रीय विद्यालय भवन के उद्घाटन का, जहां कार्यक्रम में पीएम मोदी वर्चुअल रूप से जुड़े थे. कार्यक्रम में जमुई से सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी शिरकत की. आयोजन के बाद जैसे ही चिराग पासवान पटना रवाना होने के लिए निकले, समर्थकों ने उन्हें घेर लिया. समर्थक रोते हुए ये कह रहे थे ‘भैया जमुई छोड़कर मत जाइए’. बाद में सांसद चिराग पासवान ने उन्हें समझाया.
आगे मीडिया से बातचीत करते हुए चिराग पासवान ने कहा, “जिस तरीके से समर्थकों के आंखों में आंसू थे, आज जिस तरीके से सब लोग रास्ता रोक रहे थे, कह रहे थे जमुई छोड़ कर मत जाइएगा, उनका प्यार और विश्वास मैंने कमाया है. 2014 में मैं जरूर सांसद बन कर आया लेकिन 2019 से 2024 का मेरा रिश्ता उनके साथ एक बेटे का रहा है. मैंने पहले भी कहा था, युवावस्था में मैं आया हूं, बुजुर्ग बन कर जाऊंगा. मुझे नहीं पता आगे क्या होगा, लेकिन एक बेटा बन कर जरूर रहूंगा, ये मेरा वादा है.”
जमुई से है गहरा नाता: चिराग
अपने समर्थकों के आंखों में आंसू देख चिराग भी भावुक हो गए. चिराग ने कहा, “मैंने 10 सालों में अपने किए हुए हर वादे को धरातल पर उतारने की कोशिश की. बदले में जमुई की जनता का प्यार मिलना यकीनन मेरे लिए भावुक करने वाला क्षण है. चिराग ने आगे कहा कि इन 10 वर्षों में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.” उन्होंने आगे कहा, “एक समय जब मेरे पिताजी दुनिया को अलविदा कह गए, मेरा परिवार बिखर गया. तब जमुई की जनता ने मुझे एक बेटे का प्यार दिया और सहयोग किया.” जमुई से चुनाव लड़ने पर चिराग पासवान ने कहा कि चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी लेती है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नेताओं का निर्णय ही शाश्वत होगा. पार्टी जहां से भी कहेगी, वहां से चुनाव लड़ूंगा.
जमुई और हाजीपुर सीट का समीकरण
2014 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जमुई लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी. चिराग को कुल 2 लाख 85 हज़ार वोट मिले थे जो कि कुल वोट का 36.79 फीसदी था. इसके बाद साल 2019 में उन्हें कुल 5 लाख 28 हज़ार वोट मिले थे, जो कि कुल वोट का 55.76 % था. वोट प्रतिशत में इजाफा ये साफ बताता है कि जमुई की जनता ने चिराग पासवान को कितना प्यार और समर्थन दिया है. ऐसे में क्या जमुई की सीट को छोड़ना सही होगा? और अगर नहीं तो फिर उनके पिता जी की सीट हाजीपुर से कौन लड़ेगा ? ये सवाल भी पार्टी के लिए चिंता का सबब बना हुआ है.
हाजीपुर सीट से साल 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर राम विलास पासवान ने पहली बार चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड वोट से जीत हासिल की. राम विलास पासवान को कुल 4 लाख 69 हज़ार वोट मिले जबकि विपक्ष में खड़े बालेश्वर राम को महज 44 हज़ार 462 वोट ही मिले थे. साल 1989 में उन्होंने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और कुल 6 लाख 15 हज़ार वोट के साथ जीत हासिल की. साल 2009 में उन्हें राम सुंदर दास ने इसी सीट पर चुनाव में मात दे दी. साल 2014 में एक बार फिर राम विलास पासवान ने हाजीपुर सीट पर रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की और उन्हें कुल 4 लाख 55 हज़ार वोट मिले.
जमुई से चिराग, तो हाजीपुर से कौन?
साल 2019 में राम विलास पासवान के भाई और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के हाथ ये सीट जाती है. पशुपति पारस ने 5 लाख 41 हजार वोट प्राप्त करते हुए इस सीट पर जीत हासिल की. लेकिन रामविलास पासवान की 2020 में मृत्यु होने के बाद पार्टी में राजनीतिक समीकरण बदलने लगता है. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में टूट हो जाती है और पार्टी दो गुटों में बंट जाती है. चाचा पशुपति पारस NDA के साथ बने रहते हैं लेकिन चिराग ने गठबंधन से नाता तोड़ दिया. अब एक बार फिर चिराग NDA का हिस्सा हैं तो ऐसे में सवाल यही है कि क्या चिराग अपने पैतृक सीट हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे या गठबंधन से समझौता करते हुए अपने चाचा को इस सीट से चुनाव लड़ने का समर्थन करते हुए खुद जमुई से चुनाव लड़ेंगे?
हाजीपुर सीट पर चाचा-भतीजे की लड़ाई?
साल 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी चाचा-भतीजे को एक साथ ले कर तो आई है. लेकिन सीटों को लेकर दोनों में समझौता एक बड़ी चुनौती है. चिराग पासवान चाहते हैं कि वो अपने पिता जी की सीट से चुनाव लड़े लेकिन इन सब के बीच चाचा पशुपति पारस ने खुद को राम विलास पासवान का असली उत्तराधिकारी बताया है, साथ ही उनका कहना है कि वो हाजीपुर सीट नहीं छोड़ेंगे. मामला तब और गर्म हो गया जब कुछ महीने पहले पशुपति पारस ने बड़ा बयान देते हुए ये कह डाला कि उनका गठबंधन बीजेपी से है ना कि चिराग पासवान से. अब सवाल ये है की क्या चिराग पासवान चाचा पशुपति पारस को साइडलाइन करना चाहते हैं ? चाचा-भतीजे की लड़ाई के बीच बीजेपी कैसे दोनों को एक साथ ले कर आगामी लोकसभा चुनाव में उतरेगी, ये देखना दिलचस्प होगा.