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Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा एक ऐसा मंदिर, जहां माता पार्वती ने ली थी भगवान राम की परीक्षा, जानिए इसकी पूरी कहानी……

Chhattisgarh News: आपने आस्था के केंद्र तो बहुत देखें होंगे जहां की अपनी अलग मान्यता होती है और इतिहास या फिर देवी देवताओं से जुड़े किस्से भी आस्था के केंद्र से जुड़े होते हैं. कुछ इसी तरह बालोद जिले के घनघोर जंगल मे बसे धार्मिक स्थल सियादेवी की भी कहानी है. जहाँ वनवास के दौरान भगवान राम की परीक्षा माता पार्वती ने एक अनोखे अंदाज ली थी. इतना ही नहीं इस मंदिर में लोहे के जंजीरों से जकड़ा हुआ शेर का मूर्ति भी है. और गुड़, बेल के गुदे और ईंट के सहारे तैयार हुआ मन्दिर भी.

घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा मंदिर

छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर नारागांव के जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित सियादेवी मन्दिर है. और मंदिर परिषर में पत्थर की मूरत में शेर स्थापित है इस शेर के गले मे लोहे के जंजीर लगे हुए है जिसे आज तक किसी ने खोलने का प्रयास भी नहीं किया. ऐसी मान्यता है कि जब राम को वनवास हुआ था तो माता पार्वती राम की परीक्षा लेने के लिए इसी जंगल मे पहुंची थी. उस दौरान माता पार्वती ने माता सीता का रूप धारण किया और भगवान राम के पास परीक्षा लेने पहुँची थी. लेकिन माता सीता के रूप में होने के बावजुद भगवान राम ने उन्हें पहचान लिया. तब वह असली रूप में आई और अपनी सवारी शेर को वहीं लोहे की जंजीर से बांधकर लुप्त हो गई. उसी समय से वह शेर वहां पर बंधा हुआ है. खास बात तो यह है कि सैकड़ों साल पहले लोहे की जंजीर से बंधे शेर जिस जंजीर से बंधे हैं वह आज तक जंग नहीं लगा है.

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पहले तो केवल उस जगह जंजीरों से बंधी माता की सवारी शेर और एक पत्थर में माता का स्वरूप ही था, लेकिन साल 1963 में स्थानीय लोगों ने माता के मंदिर बनाने की योजना बनाई. और जंगल मे ही ईंट का भट्ठा तैयार किया. भट्ठे में आग लगाकर लोग वहां से चले गए. उसी दिन रात में अचानक तेज बारिश हुई तब लोगों ने सोंचा की भट्ठा तबाह हो गया होगा और भट्ठे में रखा ईंट घुल गया होगा लेकिन जब लोगों ने सुबह आकर देखा तो भट्ठे के आसपास पानी भरा हुआ था लेकिन ईंट को कुछ नहीं हुआ और पककर तैयार भी हो चुका था. फिर बेल के गुदे और गुड़ से ईंट की जोड़ाई की और माता का आशियाना तैयार हुआ.

प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है, सियादेवी मंदिर

सियादेवी माता का मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि पर्यटन की दृष्टिकोण से भी एक अच्छा केंद्र है. जहां खासकर बारिश के दिनों में जंगल मे हरे भरे पेड़ और मन्दिर परिसर के भीतर मौजूद झरने लोगों को आकर्षित करते हैं. वैसे तो साल के 12 महीने यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन खासकर साल के दोनों पक्ष के नवरात्र में और नए वर्ष में बालोद जिले सहित प्रदेश के कोने कोने से बड़ी संख्या में लोग माथा टेकने और प्राकृतिक सुंदरता को निहारने यहां पहुंचते हैं.