Chhattisgarh: हाथियों ने 305 करोड़ के हाईवे का काम रोका, अब ‘गजराज’ के लिए बनेगी अलग सड़क!
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ और झारखंड को जोड़ने वाली नेशनल हाईवे 343 का निर्माण 305 करोड़ की लागत से होना है. लेकिन इस मार्ग में अभयारण्य और जंगल का क्षेत्र होने के कारण टेंडर निरस्त करना पड़ा है. यहां हाथियों के साथ अन्य जानवर रहते हैं और हाईवे बनने पर वे सड़क को पार नहीं कर पाएंगे. इसलिए एक बड़ा प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है.
हाथियों के जंगल में बीच कैसे बनेगा हाईवे?
दरअसल, राष्ट्रीय राजमार्ग के सड़क निर्माण के लिए दो चरणों में 195 करोड़ और 110 करोड़ रूपए का टेंडर वर्ष 2022 में विभाग द्वारा जारी किया गया था. इसमें रजपुरीखुर्द से सेमरसोत अभयारण्य के पहले तक 49 किमी और बलरामपुर से झारखंड राज्य की सीमा तक 29.5 किमी के सड़क का निर्माण होना है. साल 2022 में जारी किया गया टेंडर वन विभाग की भूमि का क्लियरेंस केन्द्र से न मिल पाने के चलते निरस्त करना पड़ा था. अब दूसरी बार जारी टेंडर में भारत सरकार जलवायु पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाथियों के आवाजाही के लिए प्लान नहीं होने पर उस पर रोक लगा दिया.
हाथियों के गुजरने के लिए 5 बड़े पुल बनाए जाएंगे
ऐसे में वन विभाग के वाइल्ड लाइफ के गाइड लाइन के अनुसार, विभाग ने हाईवे के अफसरों को कहा है कि वे हाथियों के आवाजाही के लिए क्या काम करेंगे, पहले इसे बताएं और फिर उसके बाद हाईवे का निर्माण होगा. इस पर हाईवे के अफसर अब फॉरेस्ट के अफसरों का कहना है कि जंगल और अभयारण्य क्षेत्र में उनके द्वारा चार जगहों पर हाईवे के नीचे से हाथियों के पार होने के लिए पांच बड़े पुल बनाये जाएंगे, जिससे हाथी आसानी से इस पार से उस पार जा सकेंगे. वहीं इसी रास्ते से दूसरे जानवरों की भी आवाजाही हो सकेगी. इससे फायदा होगा कि जंगली जानवर सड़क पर नहीं आएंगे और वे सड़क हादसों से भी बचेंगे.
सरगुजा संभाग है हाथियों का गढ़
आपको बता दें कि सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले और राजपुर क्षेत्र में पूरे साल हाथियों का अलग-अलग दल विचरण करता रहता है. हाथी कई बार सड़क को पार करते हैं, तब सड़क के दोनों तरफ जाम लग जाता है. इसे देखते हुए हाईवे के नव निर्माण के साथ हाथियों के लिए भी मार्ग बनाया जा रहा है. वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग के कार्यपालन अभियंता नितेश तिवारी ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर वाइल्ड लाइफ के आवाजाही के लिए प्लान तैयार किया जा रहा है, उसके बाद उसे पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जायेगा और वहां से उसे स्वीकृति मिलने के बाद निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.