Chhattisgarh: यहां एक दिन में तीन बार स्वरुप बदलती हैं माँ दंतेश्वरी, 400 साल पहले राजा के स्वप्न में आकर प्रगट हुई थीं माता
– नितिन भांडेकर
Chhattisgarh News: दुःखों को हरने वाली, हम सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाली माँ जगत जननी इस सृष्टि में अनेकों रूप में विराजमान हैं. वही नवगठित खैरागढ़ जिला है, जहाँ पर लगभग 400 साल पहले माँ दंतेश्वरी एक पीपल पेड़ के निचे ज़मीन से राजा को स्वप्न देकर स्वंयभू प्रगट हुई हैं.
खैरागढ़ रियासत की अधिष्ठात्री और ऐतिहासिक दंतेश्वरी मंदिर में आज मनोकामना ज्योति कलश का प्रज्जवलन होगा. मंदिर के नाम के संदर्भ में किवदंती है कि दंतेवाड़ा के दंतेवाड़ेश्वरी से दंतेश्वरी नाम प्रसिद्ध हुआ है,किंतु शहर विराजित देवी का शास्त्रोक्त नाम रक्तदंतिका है. माँ दंतेश्वरी एक दिन में तीन बार स्वरुप बदलती हैं. सुबह सत्वगुण ,दोपहर रजोगुण ,रात्र में तमोगुण में माँ को त्रिगुनात्म स्वरुप में देखा जा सकता है.
400 साल पहले राजा को सपने में आकर प्रगट हुई थी माँ दंतेश्वरी
लगभग 90 सालों से पूजा अर्चना कर रहे परिवार के पुजारी डॉ मंगलानंद झा ने बताया कि दंतेश्वरी मंदिर लगभग पांच सौ साल पुराना है, ग्रंथों में उल्लेखित तथ्यों के अनुसार रियासत काल में राजा कमल नारायण सिंह दंतेश्वरी मंदिर परिसर में आरती पूजा के बाद जनदर्शन लगाते थे. जहाँ वो आम लोगों की समस्या सुनते और निराकरण करते थे.
दंतेवाड़ा से माँ दंतेवाड़ेश्वरी की डोली और माटी लेकर श्रद्धालु मंदिर आते थे और मनोकामना पूर्ति का आर्शीवाद लेकर वापस लौटते थे. पंडित झा ने बताया कि मंदिर में स्थित दंतेश्वरी की मूल प्रतिमा स्वयंभू है जो खैरागढ़ राजपरिवार को सपने के माध्यम से मंदिर से किंचित दूरी पर स्थित पीपल वृक्ष के नीचे मिला था.
ये भी पढ़ें- आज बीजापुर में करोड़ों के विकास कार्यों की सौगात देंगे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय
जिसे स्वप्रानुसार मंदिर के गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया है. रियासत काल मे यहा भैंस की बलि दी जाती थी, कालांतर में बकरे की बलि दी गई प्रतिपदा को एक, द्वितीया को दो के हिसाब से तिथि अनुसार बकरों की संख्या बढ़ती थी और नवमी को एक साथ नौ बकरों की बलि दी जाती थी. वर्तमान मे इस प्रथानुसार नारियल अथवा कद्दू की बलि दी जाती है. पंडित झा ने आगे बताया कि मंदिर मे शारदीय व वासंती दोनों नवरात्रि मे तीन सौ से ज्यादा ज्योति कलश प्रज्जवलित होती है, जिसके देश के अलग अलग हिस्सों के अलावा विदेशों से भी भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योति प्रज्जवलित कराते हैं.
मंदिर के गर्भ गृह में मा दंतेश्वरी के अलावा महाकाली, भद्रकाली, बटुक भैरव और काल भैरव की मूर्तियाँ स्थापित है. वहीं गर्भगृह के ठीक सामने बजरंग बली और माँ दुर्गा की प्रतिमा है. आंगन में देवी का वाहन सिंह और शीतला माता स्थित है। पंडित झा ने बताया कि माँ दंतेश्वरी के दर पर आने वाले श्रद्धालाओं पर माता रानी का विशेष स्नेह बना रहता है.