Chhattisgarh: यहां अंग्रेज का गुरूर हुआ था चकनाचूर, माता के प्रकोप से हो गई थी मौत, जानिए पूरी कहानी
– डिलेश्वर देवांगन
Chhattisgarh News: आज नवरात्र का पहला दिन है. नवरात्र के पहले दिन हम आपको बालोद जिले के झलमला स्थित गंगा मैया के धाम लिए चलते हैं. जहां सैकड़ो साल पहले का इतिहास मां गंगा मैया की नगरी में छिपा हुआ है. जहां माता के प्रकोप ने एक अंग्रेज का गुरूर चकनाचूर कर दिया.
माता के प्रकोप ने अंग्रेज का गुरूर किया था चकनाचूर
लगभग सवा सौ साल पहले झलमला गांव में हर सोमवार के दिन क्षेत्र का सबसे बड़ा बाजार लगता था. जहां बड़ी संख्या में लोग, पशु और बंजारे भी पहुंचते थे. बाजार लगने के दौरान लोगों को पानी की काफी कमी होती थी जिसे देखते हुए गांव में बांध तालाब नामक एक सरोवर की खुदाई की गई और वहीं से मां गंगा मैया की कहानी शुरू होती है.
तालाब खुदाई के बाद सिवनी गांव के एक मछुआरे ने मछली पकड़ने के लिए तालाब में जाल डाला, लेकिन उसके जाल में मछली के बजाय एक पत्थर फंसा. मछुआरे ने पत्थर को तालाब में फेंक दिया और फिर जाल डाला तो उसके जाल में फिर से वही पत्थर आया. ऐसा कई बार हुआ. आखिर में केवट उदास होकर घर लौटा और रात में सोने के दौरान उसे सपना आया. जिसमें मां गंगा मैया ने कहा मैं जल के अंदर हूं मेरा तिरस्कार करने के बजे मेरी प्राण प्रतिष्ठा करवाओ. इसके बाद तत्काल गांव के प्रमुखों से चर्चा कर उसे पत्थर को जल से बाहर निकाल कर एक बरगद के पेड़ के नीचे प्राण प्रतिष्ठा करवाई. पानी से निकले होने के कारण उसे प्रतीक मां का नाम गंगा मैया रखा गया.
ये भी पढ़ें- नवरात्रि में बस्तर की अराध्य देवी मां दंतेश्वरी का पहला दर्शन पाता है किन्नर समाज, जानिए क्या है मान्यता
जानिए पूरी कहानी
अंग्रेजों की शासन काल के दौरान वर्ष 1905 में तांदुला जलाशय और मुख्य नहर की खुदाई सिंचाई विभाग यंत्री एडम स्मिथ के नेतृत्व में की जा रही थी. एडम स्मिथ का मानना था कि नहर निर्माण में मां गंगा की प्रतिमा बाधा बन रही है और उसे हटाना चाहा. उसी रात आदम के सपने में मां गंगा मैया आई और प्रतिमा को न हटाने के लिए कहा. बावजूद इसके सपने को नजर अंदाज कर प्रतिमा को बलपूर्वक हटा दिया. इसके कुछ दिन बाद अचानक बेसुध हो गए और 1 साल के भीतर उसकी मौत हो गई.
पहले माता का मंदिर एक झोपड़ी नुमा हुआ करता था लेकिनवर्ष 1977 में गांव के ही मधुसूदन ठाकुर ने 35 दिनों के भीतर माता का मंदिर बनाया जिसके बाद बालोद निवासी सोहनलाल टावर के पिता ने अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. देखते ही देखते मां गंगा की खेती बढ़ती चली गई और आज पूरे छत्तीसगढ़ सहित भारत देश में झलमला गांव मां गंगा की नगरी के नाम से जाना जाने लगा है नवरात्र में मां गंगा की नगरी में भव्य मेला लगता है जहां हजारों किलोमीटर दूर से मां गंगा की नगरी में माता देखने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं. जो भक्त माता के दरबार में सच्ची मनोकामना लेकर पहुंचता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और मनोकामना पूरी होने के बाद भक्ति आस्था के दीपक भी जलाते हैं.