Chhattisgarh: सरगुजा में जमीन के पट्टे के बदले बीट गार्ड ने राष्टपति के दत्तक पुत्रों से ली बकरा, मुर्गा और दारू के साथ हजारों रूपये की रिश्वत

Chhattisgarh News: सरगुजा जिले के मैनपाट में वन विभाग के एक वन रक्षक ने वन भूमि का पट्टा दिलाने के बदले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा परिवारों से रिश्वत के रूप में रुपए तो लिए ही, साथ ही साथ इन राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों से रिश्वत में बकरा मुर्गा और खूब शराब लिया.
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पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग

Chhattisgarh News: सरगुजा जिले के मैनपाट में वन विभाग के एक वन रक्षक ने वन भूमि का पट्टा दिलाने के बदले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा परिवारों से रिश्वत के रूप में रुपए तो लिए ही, साथ ही साथ इन राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों से रिश्वत में बकरा मुर्गा और खूब शराब लिया. वहीं दूसरी तरफ रिश्वत लेने वाले वन विभाग के कर्मचारी का यहां से तबादला हो गया और जमीन का पट्टा नहीं मिला तो रिश्वतखोरी का मामला सामने आया है.

जमीन के पट्टे के बदले बीट गार्ड ने राष्टपति के दत्तक पुत्रों से ली बकरा, मुर्गे की रिश्वत

सरगुजा के मैनपाट के ग्राम असकला के जंगल में पहाड़ी कोरवा जनजाति के कई परिवार कई दशक से मकान बनाकर रह रहे हैं और खेती कर जीविकोपार्जन करते हैं. यहां कई राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों ने अपना मकान बना लिया है और हुए इस जमीन का वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टा पाने के लिए आवेदन जमा किया लेकिन इसके बाद भी उन्हें जमीन का पट्टा नहीं दिया गया। यही वजह है कि यहां पिछले 15 सालों से पदस्थ वनरक्षक के द्वारा पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोगों से रिश्वत के रूप में बकरा मुर्गा और शराब के साथ हजारों रुपए लिए गए। जबकि सरकार के द्वारा सालों से जंगलों में रहकर जीविकोपार्जन कर रहे लोगों के लिए ही सरकार के द्वारा वन अधिकार अधिनियम लागू किया गया था ताकि उन्हें जमीन का हक मिल सके लेकिन रिश्वतखोर ऐसे कर्मचारियों के द्वारा पहाड़ी कोरवा सहित दूसरे विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों को परेशान किया जाता रहा है. इतना ही नहीं इन पहाड़ी कोरवा परिवारों को अब यहां से दूसरे लोग भी भगाने के लिए लगे हुए हैं ऐसे में यहां के पहाड़ी कोरवा दहशत में है और कह रहे हैं कि आखिर कई दशक तक यहां रहने के बाद आखिर उन्हें हटा दिया जाएगा तो वे खेती किसानी कैसे कर पाएंगे.

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राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों ने यहां पर इन दिनों अपने कब्जे की जमीन पर धान सहित मक्के की खेती की हुई है और उनके कई मकान बने हुए हैं हालांकि यहां पहुंचने का रास्ता काफी कठिन है क्योंकि पहाड़ी रास्ते से होकर यहां पहुंचना पड़ता है। पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोगों का कहना है कि वे यहां पर खेती कर किसी तरीके से अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं.  यहां रह रहे पहाड़ी कोरवा सुखन कोरवा, मायाराम, रामनाथ, दयाराम, नहर साय, नानसाय, मना राम, लांजा राम, रति राम ने बताया कि उन्होंने वन विभाग के कर्मी को अब तक 10 से अधिक बकरा और 20 से अधिक मुर्गियां साथ ही तीन-तीन हजार रुपए रिश्वत भी दिए थे. पटवारी ने उन्हें कहा था कि वह जंगल की जमीन पर अतिक्रमण करने वाला दस्तावेज तैयार कर देगा और इससे उन्हें आसानी से वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टा मिल जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

रिश्वत लेने वाले वन विभाग के कर्मचारी का हुआ तबादला

वहीं दूसरी तरफ इस मामले में प्रभारी रेंजर भारद्वाज ने इससे संबंधित कुछ भी जानकारी नहीं होने की बात कही तो वन रक्षक राम कृपाल ने फोन रिसीव नहीं किया. यहां पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग कई दशक से खेती किसानी कर रहे हैं लेकिन यहां दूसरे लोग भी धीरे-धीरे जंगल की जमीन प्रऱ अतिक्रमण कर खेती कर रहे हैं लेकिन उस पर भी कड़ी कार्रवाई नहीं की जा रही है ऐसे में यहां का जंगल भी अब खतरे में दिखाई दे रहा है. वही जिस बीट गार्ड पर पहाड़ी कोरवा रिश्वत लेने का आरोप लगा रहे हैं उसका नाम रामकृपाल सिंह बताया जा रहा है. जिसे विभाग के अधिकारियों का भी संरक्षण प्राप्त था, वरना कोई बीट गार्ड एक ही जगह पर 10 साल से अधिक समय तक कैसे पदस्थ रह सकता था. वहीं वन विभाग का रिश्वतखोर कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की की मंशा नहीं है और यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में जंगल में अतिक्रमण करने वाले लोगों और वन कर्मचारी के बीच एक तरफ जहां विवाद की स्थिति बनती है तो दूसरी तरफ रिश्वतखोरी के भी गंभीर आरोप लगते हैं. इस पूरे मामले में तो वन विभाग के रिश्वतखोर कर्मचारियों के खिलाफ जहां वन विभाग को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. वहीं राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों को जमीन में हक दिलाने के लिए काम करने की जरूरत है.

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