Chhattisgarh: प्रकृति और आस्था के बीच के संगम पर बसा किल्लेवाली माता का धाम, जानिए माता की अनोखी कहानी
Chhattisgarh News: बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर राजहरा माइंस इलाके को पार कर जंगलों के बीचो-बीच बने रास्ते से हम आज एक ऐसे स्थान पर जा रहे हैं जो 12 गांव की आस्था का केंद्र है. जिसे किल्लेवाली माता के धाम के नाम से जाना जाता है. जिस तरह छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश भर में डोंगरगढ़ स्थित मां बमलेश्वरी का मंदिर प्रसिद्ध है इस तरह बालोद जिले में भी कोटगांव में किल्लेवाली माता का मंदिर है.
मंदिर में लगता है भक्तों का तांता
यहां सैकड़ो की संख्या में भक्तों की भीड़ लगती है, जमीन से 3000 फीट ऊंचाई पर चढ़कर प्रकृति का नजारा बेहद आकर्षक नजर आता है. जहां मौजूद थे उसके ठीक बाजू में बोईरडीह जलाशय मौजूद है जो की प्रकृति के नजारे को और खूबसूरत बनाता है. ऊपर एक मंदिर बना है. जहां मां दुर्गा की एक प्रतिमा थी जिसे ग्रामीणों ने किल्लेवाली माता का नाम दिया. मंदिर के बगल में एक झूला था और उसी से लगा हुआ काली माता की भव्य प्रतिमा भी थी.
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पुजारी ने बताया की कई सौ साल पहले जब छह माह दिन और छह माह का रात हुआ करता था उस दौर में मां दुर्गा पाठ, महामाया और दुर्गा मोती नाम की तीन बहने उस स्थान पर आए. उनके साथ पाठ बाबा भी थे..चारो पहाड़ पर रास्ता बनाकर ऊपर चोटी में चढ़े. उस समय सात दरवाजा बनाया जाना था लेकिन सुबह हो जाने के कारण नहीं बन पाया तो वहां से गुभीयागढ़ चले गए, लेकिन पाठ बाबा ने वहीं पर अपना स्थान बना लिया।
पहले महिलाओं का जाता था वर्जित
पहले उस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित था लेकिन ग्रामीणों ने माता को मनाया उसके बाद महिलाओं ने भी जाना शुरू किया. पुजारी बताते हैं कि पहले केवल माता का आसान उसे स्थान पर था दल्ली राजहरा के नारायण नाम के व्यक्ति ने किल्लेवाली माता के पास नौकरी के लिए मन्नत मांगी और जैसे ही उसकी मनोकामना पूरी हुई तो मंदिर का निर्माण ग्रामीणों की सहयोग से वर्ष 2007 कराया. मंदिर की ऊंचाई काफी ऊपर होने के कारण जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए जाते थे वह मंदिर निर्माण के लिए गिट्टी रेत थैले में भरकर ऊपर ले जाते थे. खास बात तो यह है की मंदिर के लिए किसी तरह से नीव तैयार नहीं किया गया बल्कि चट्टान के ऊपर ही मंदिर बना दिया गया बावजूद इसके मंदिर बड़ी मजबूती से टीका हुआ है.