प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, Chhattisgarh का ‘मदकू द्वीप’, जहां मंडूक ऋषि ने की थी मंडूकोपनिषद की रचना

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के पर्यटकों में मुंगेली जिले का भी एक पर्यटक स्थल शामिल है जिसे मदकुद्वीप के नाम से जाना जाता है. शिवनाथ नदी के धाराएं 2 भागो में विभाजित हो कर इस द्वीप का निर्माण करते है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में सैलानी आते है.
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मदकू द्वीप

मोहम्मद अलीम (मुंगेली)

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के पर्यटकों में मुंगेली जिले का भी एक पर्यटक स्थल शामिल है जिसे मदकुद्वीप के नाम से जाना जाता है. शिवनाथ नदी के धाराएं 2 भागो में विभाजित हो कर इस द्वीप का निर्माण करते है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में सैलानी आते है.

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, ‘मदकू द्वीप’

मुंगेली से महज 45 किमी की दूरी पर मदकुदिप नमक एक गांव बसा है, जो शिवनाथ नदी के तट पर बना हुआ द्वीप है. जहां हर साल लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं. शिवनाथ नदी की धराए दो भागों में विभाजित होकर इस टापू का निर्माण करती है जिसे मदकुद्वीप कहा जाता है. इस द्वीप के रूप मे प्रकृतिक सौन्दर्य परिपूर्ण अत्यंत प्राचीन रमणीय स्थान भी है. इस द्वीप पर प्राचीन शिव मंदिर एवं कई स्थापत्य खंड हैं जो लगभग 10वीं 11वीं सदी के माने जाते है. दो अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर इस द्वीप पर स्थित है. इनमे से एक धूमनाथेश्वर तथा इसके दाहिने ओर उत्तर दिशा में एक प्राचीन जलहरी स्थित है जिससे पानी का निकास होता है. इसी स्थान पर दो प्राचीन शिलालेख मिले हैं. पहला शिलालेख लगभग तीसरी सदी का ब्राम्ही शिलालेख है. इसमें अक्षय निधि एवं दूसरा शिलालेख शंखलिपि के अक्षरों से सुसज्जित है.

इस द्वीप में प्रागैतिहासिक काल के लघु पाषाण शिल्प भी उपलब्ध हैं. सिर विहीन पुरुष की राजप्रतिमा की प्रतिमा स्थापत्य एवं कला की दृष्टि से 10वीं 11वीं सदी की प्रतीत होती है. पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई में गुप्तकालीन एवं कल्चुरी कालीन प्राचीन मूर्तियाँ भी मिली हैं. कल्चुरी कालीन चतुर्भुजी नृत्य गणेश की प्रतिमा बकुल पेड़ के नीचे मिली है. 11वीं शताब्दी की यह एकमात्र सुंदर प्रतिमा है. इसी जगह पर प्राचीन अष्टभुजी श्री गणेश का भी मंदिर विराजमान है जिसे देखने के लिए आसपास के अलावा बाहर से भी काफी संख्या में पर्यटक यहां पर आते हैं.

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मंडूक ऋषि ने की थी मंडूकोपनिषद की रचना

मदकू द्वीप काफी प्राचीनतम जगह मानी जाती है, मदकू द्वीप ट्रस्ट के रामरूप दास महात्यागी ने बताया कि इस द्वीप का नाम मंडूक ऋषि के नाम पर पड़ा है इस द्वीप पर मंडूक ऋषि के द्वारा तपस्या की जाती थी जिसके कारण इस द्वीप का नाम मंडूक द्वीप था परंतु वर्तमान में बोलचाल की भाषा में इसे मदकुद्वीप कहा जाता है. मांडू ऋषि के द्वारा एक उपनिषद मंडूक उपनिषद की भी रचना की है जिसमें भारत के मुहर के नीचे लगी हुई चार शेर वाला अशोक स्तंभ के नीचे लिखी सत्यमेव जयते वाक्य इसी मंडूक उपनिषद से लिया गया है. सत्यमेव जयते को यहां से लिया जाने की वजह से इसे सत्यमेव जयते वाक्य की जन्मभूमि भी कहा जाता है. साथ ही इसे मुंगेली जिले का सबसे प्राचीनतम पुरातात्विक स्थल भी बताया है, उन्होंने यह भी बताया है कि इस उत्खनन से निकले हुए मंदिर मुंगेली जिले के चिन्ह में भी इस्तेमाल किया गया है. इसी जगह से उत्खनन के दौरान ईस्मारात लिंग मंदिर की भी प्राप्ति की गई है, जिसे वर्तमान में गुरु घासीदास संग्रहालय रायपुर में संरक्षित रखा गया है.

मिशनरी समाज का लगता है मेला

प्राकृतिक सौंदरीकरण के साथ द्वीप जैसे दिखने वाले मदकू द्वीप में हर वर्ष लाखों की संख्या में सैलानी सैर पर आते हैं. इसी कारण यहां के स्थानीय लोगों को भी इस जगह का लाभ मिलता है वह मंदिर के समीप अपनी छोटी-छोटी दुकान लगाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. दिसंबर माह में यहां मिशनरी समाज का मेला लगता है तो वही छेरछेरा पर्व के अवसर पर यहां हिंदू समाज का भी भव्य मेला लगाया जाता है.

मदकू द्वीप को पर्यटक स्थल तो घोषित कर दिया गया है, परंतु विकास के कार्यों की बात की जाए तो यहां विकास के कार्यों में अभी बहुत कुछ कार्य होना बंकी है. संस्था के लोगों ने लगातार शासन और प्रशासन से निवेदन किया है, कि मदकुद्वीप को अन्य पर्यटन स्थलों की तरह विकास कार्य का सौगात दिया जाए अब देखने वाली बात यह भी होगी कि इतने पर्यटक आने के बाद इस पर शासन प्रशासन किस तरीके से ध्यान देती है और कितना विकास कार्य करा पाती है.

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