नए साल के पहले ही Chhattisgarh के ‘खजुराहो’ में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, भोरमदेव के आशीर्वाद के साथ ले रहे प्रकृति का आनंद

Chhattisgarh: 11वीं सदी में बने इस ऐतिहासिक मंदिर को नागवंशी राजा गोपालदेव ने बनाया था. जिसे 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' कहा जाता है. वहीं इस बार नए साल के पहले ही यहां भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी है.
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भोरमदेव मंदिर

वेदान्त शर्मा (कवर्धा)

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ अपने प्राचीन मंदिरों, अनोखी इमारतों और खूबसूरत प्रकृति के लिए पर्यटकों और भक्तों के बीच मशहूर है. ऐसा ही एक मंदिर कबीरधाम में है. 11वीं सदी में बने इस ऐतिहासिक मंदिर को नागवंशी राजा गोपालदेव ने बनाया था. जिसे ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है. वहीं इस बार नए साल के पहले ही यहां भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी है.

नए साल के पहले ‘खजुराहो’ में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

साल के अंतिम दिसंबर के महीने में कवर्धा जिले के भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. यहां के प्राचीन ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. रोजाना सुबह से ही हजारों लोग दूर-दूर से मंदिर में दर्शन के लिए परिवार के साथ पहुंच रहे हैं.

प्रकृतिक सुंदरता लोगों को करती है आकर्षित

11वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन मंदिर आज भी मजबूती के साथ खड़ा है. इसकी बनावट दूसरे मंदिरों से अलग है. इसकी कलाकृति और प्राकृतिक सुंदरता लोगों को आकर्षित कर लेती है.

यह मंदिर 7 वी से 11वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था. यहां मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ भी कहा जाता है. इस मंदिर का मुख पूर्व की ओर है. मंदिर नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है. मंदिर में 3 ओर से प्रवेश किया जा सकता है. मंदिर एक 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है.

भोरमदेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां के नागवंशी राजा गोपाल देव ने इस मंदिर को एक रात में बनवाने का आदेश दिया था. ऐसा कहा जाता है, उस समय रात 6 महीने और दिन भी 6 महीने का होता था.

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