Durg News: 80 साल की बुजुर्ग मां ने अपने बेटे को जंजीरों से बांधा, जानिए क्या रही मजबूरी….

Durg News: दुर्ग जिले के गनियारी गांव के रहने वाली 80 साल की कुंजवती की है, जिनकी दो बेटियां और एक बेटा है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. कुंजवंती के पति का कुछ साल पहले निधन हो गया है. बेटियां अपने ससुराल चली गई है लेकिन अब पति की मौत के बाद उनकी जिम्मेदारी उनके मानसिक रूप से विकलांग बेटे की बन गई है.
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बुजुर्ग मां और बेटे

Durg News: आज हम आपको एक ऐसी स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. आप सोचेंगे कि यह मां की लाचारी है, या फिर मजबूरी! जो अपने ही बेटे को पिछले कई सालों से जंजीरों में बांधकर रखी है.

बुजुर्ग मां ने अपने बेटे को जंजीरों से बांधा

ये कहानी दुर्ग जिले के गनियारी गांव के रहने वाली 80 साल की कुंजवती की है, जिनकी दो बेटियां और एक बेटा है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. कुंजवंती के पति का कुछ साल पहले निधन हो गया है. बेटियां अपने ससुराल चली गई है लेकिन अब पति की मौत के बाद उनकी जिम्मेदारी उनके मानसिक रूप से विकलांग बेटे की बन गई है. बेटा आंखों से देखा नहीं सकता और मानसिक रूप से विकलांग है मां की मजबूरी है कि बेटा इधर-उधर कहीं चला ना जाए. कही खो न जाए कहीं गिर ना जाए इस वजह से उसे पिछले कई सालों से जंजीरों में बांधकर रखती है मां चाहती है कि बेटा का इलाज हो जाए लेकिन क्या करें आर्थिक तंगी की वजह से वह बेटे को इस हालत में रखने के लिए मजबूर है.

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बेटा मानसिक रूप से है विकलांग

80 साल की कुंजवंती बताती है कि मेरा बेटा मोहन लाल बचपन से ही अंधा है पहले उसकी मानसिक स्थिति ठीक थी लेकिन धीरे-धीरे वह मानसिक रूप से विकलांग हो गया. पति की मौत के बाद बेटे की देखरेख करने वाला कोई नहीं है बेटियों की शादी हो गई है वह अपने ससुराल चली गई है, बेटा देख नहीं सकता, इस वजह से क्या करूं मजबूरीवस उसे जंजीरों में बांधकर रखना पड़ता है दो वक्त के खाने के लिए सरकार के द्वारा 35 किलो चावल मिलता है उसी से गुजारा चलता है. कुछ चावल बेच देती है और जो चावल बचता है उसे खाना बनाकर बेटे को खिलाती हूँ और खुद खाती है. बेटा को अकेला छोड़कर कहीं जा नहीं सकती क्योंकि बेटा को अगर अकेले घर पर छोड़ती हूँ तो बच्चे उसे पत्थर मारते हैं परेशान करते हैं.

सरकारी योजनाओं के तहत कुंजवंती को महज डेढ़ सौ रुपए महीना मिलता है. कुंजवंती कहती है कि मेरी मजबूरी ऐसी है कि मैं बूढी हो चुकी हूं और बेटे का भी देखरेख करना है किसी तरह 35 किलो चावल मिलता है उसी से गुजर बसर करती हूं. सब्जी कभी खाती नहीं है बस चावल खाकर जिंदा है. कुंजवंती का कहना है कि अब मेरा जीवन बेटे की देखरेख मुझे गुजरेगा. भगवान से यही कामना करती हूँ कि पहले उसकी मौत आ जाए फिर मेरी मौत हो. क्योंकि अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मेरे बेटे को देखने वाला कोई नहीं है. अगर सरकार हमारी कुछ मदद करें तो शायद मेरे बेटे को देखरेख का सहारा मिल सके और मेरी इस बूढ़े शरीर को कुछ आर्थिक मदद मिल सके…

बुजुर्ग ने सरकार से लगाई मदद की गुहार

वैसे तो सरकार मानसिक रूप से विकलांग और वृद्धाजनों के लिए कई सारे योजनाएं चला रही है लेकिन कुजवंती और उसके बेटे को देखकर लगता नहीं की अंदरूनी इलाकों में इस योजना का लाभ उन लोगों को मिल पा रहा है जिनको सरकार की योजना की जरूरत है… इस मां बेटे की कहानी सुनकर ऐसा लगता है कि सरकार के जो सिस्टम है वह अंदरूनी इलाकों में नहीं पहुंच पा रहे हैं यही वजह है कि सरकार की अच्छी योजनाओं का लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पाता… जिनको सबसे ज्यादा जरूरत है. कुंजवंती चाहती है कि सरकार उनकी कुछ मदद कर दें.

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