Gadh Kalewa: छत्तीसगढ़ में देसी भोजन का ठिकाना ‘गढ़ कलेवा’, जानें क्यों खास होता है यहां का व्यंजन
Gadh Kalewa: यदि आप खाने के शौक़ीन हैं और पारंपरिक व्यंजन का स्वाद लेने में दिलचस्पी रखते हैं, तो हम आपको बताने जा रहें है एक ऐसी जगह के बारें में, जहां छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खानों का भरपूर स्वाद मिलता है. इस जगह का नाम गढ़ कलेवा है. यह राजधानी रायपुर के बिचोबीच घड़ी चौक के पास स्थित है. गढ़ कलेवा अपने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन को परोसने के लिए प्रसिद्ध है. यहां रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग छत्तीसगढ़िया खाना खाने आते हैं. गढ़ कलेवा में क्या-क्या व्यंजन मिलते हैं और इसे कौन बनाता है ये सब विस्तार से आज हम आपको बताएंगे.
छत्तीसगढ़ की देश में अलग पहचान दिलाने वाला गढ़ कलेवा
आसान भाषा में यदि कहें तो गढ़ कलेवा छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का संग्रह है. इसकी स्थापना 26 जनवरी 2016 में हुई थी. रायपुर के गढ़ कलेवा की पहचान ही अलग है. ये जगह आपको शहर में रहने के बावजूद गांव जैसा माहौल देती है. यहां केवल पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन ही परोसे जाते हैं. अगर छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की बात करें तो यहां पर चिला, फरा, बड़ा, बोरे-बासी, अंगाकर रोटी, चावल की रोटी, भाजी, मिर्च की चटनी जैसे अनेक व्यंजन मिलते हैं. इसके अलावा यहां पर देहरौरी, पपची, खुर्मी, पीडिया बनाए जाते हैं. साथ ही अदौरी बरी, रखिया बरी, कोंहड़ा बरी, मुरई बरी,साबूदाना पापड़ और बिजौरी बरी जैसे सूखे आइटम भी लोगों के लिए उपलब्ध हैं.
गढ़ कलेवा की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के हाथ
गढ़ कलेवा की ख़ास बात यह है कि इसका संचालन महिला स्व सहायता समूह द्वारा किया जाता है. यहां करीब 50 महिलाएं काम करती हैं. यहां खाना परोसने के लिए भी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाले कांसे और पीतल के बर्तन की व्यवस्था है. गढ़ कलेवा में लोग परिवार के साथ ग्रामीण परिवेश के जैसे पेड़ के निचे बैठकर व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं.
सजावट देखने लायक
गढ़ कलेवा में छत्तीसगढ़ी खानपान के अलावा इस जगह की सजावट भी देखते ही बनती है. यहां बैठने के लिए खपरैल का इस्तेमाल कर ग्रामीण परिवेश जैसे शेड बनाए गए हैं. यहां सारे कुर्सी-टेबल लकड़ी के हैं. गढ़ कलेवा में बड़े-बड़े पेड़ लगाए गए है जिससे कैंपस में हरियाली बनी रहती है. साथ ही पेड़ों पर मचान भी बनाया गया है.
छत्तीसगढ़ में मिठाई और पकवान चावल आंठा से बनाने की परंपरा
आपको बता दें कि बस्तर के मुरिया जनजाति के कलाकारों ने लकड़ी पर कारीगरी कर इस स्थान को और आकर्षक बनाया है. इसके साथ ही सरगुजा के कारीगरों ने भी मिट्टी के रिलीफ वर्क, जाली और पारंपरिक लिपाई-पुताई के नमूने दीवार पर अंकित किए है. गढ़ कलेवा में काम करने महिलाएं बताती हैं कि रोजाना सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक ये खुलता है. यहां प्रमुख रूप से चावल से बने व्यंजन बनाए जाते हैं.यहां मिठाई भी चावल और गुड़ से बनाई जाती है.गढ़कलेवा में बड़े-बड़े होटल और रेस्टोरेंट के समान ही पार्सल सुविधा भी उपलब्ध है. लोग घर बैठे भी छत्तीसगढ़ी व्यंजन का लुत्फ़ उठा सकते हैं.
हर जिले में खुला गढ़ कलेवा
देश के अलग-अलग राज्यों का अपना ट्रेडिशनल खान-पान है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी अलग-अलग तरह के भोजन का लोग स्वाद लेते हैं. खासकर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक खाना बनाने का प्रचलन काफ़ी ज्यादा है. ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहर में लोग पारंपरिक खाने से कम परिचित हैं. इसी कारण छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग के द्वारा प्रदेश के हर जिले में गढ़ कलेवा के नाम से पारंपरिक व्यंजन का केंद्र बनाने की पहल शुरू की गई थी, ताकि शहर आने-जाने वाले लोगों को पारंपरिक व्यंजन का स्वाद मिल सके, जिससे प्रदेश का खानपान राष्ट्रीय स्तर पर जाना जा सके.