MBBS के एग्जाम में अब ग्रेस मार्क नहीं, डॉक्टर बनने के लिए करनी होगी और कड़ी मेहनत

Education News: इस साल MBBS के छात्रों के लिए 40 साल से चली आ रही ग्रेस मार्क की परंपरा को खत्म कर दिया गया है.
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प्रतीकात्मक तस्वीर

Education News: देशभर में NEET की पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर बनने की चाह रखने वाले MBBS के छात्रों को इस बार एग्जाम में पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. नेशनल मेडिकल काउंसिल ने इस साल एमबीबीएस के छात्रों के लिए 40 साल से चली आ रही ग्रेस मार्कस की परंपरा को खत्म कर दिया गया है. इस आधार पर कई बार मेडिकल स्टूडेंटस को पास होने में सहयोग मिल रहा था. सीबीएमई की गाइडलाइन में स्पष्ट तौर पर नो ग्रेस मार्क के निर्देश जारी हो चुके हैं. इसके अलावा भी मेडिकल की पढ़ाई के पैटर्न में कई तरह के बदलाव किए गए हैं.

अब छात्रों को ग्रेस नंबर नहीं मिलेगा

दरअसल मेडिकल की पढ़ाई में मुख्य परीक्षा के अलावा प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों के अंक काफी महत्व रखते हैं.  प्रोफेसर छात्रों से अलग अलग तरह का प्रैक्टिकल भी करवाते हैं. प्रैक्टिकल के आधार पर मुख्य परीक्षाओं की दिशा भी तय होती है. इसके अलावा मुख्य परीक्षाएं भावी डॉक्टरों का भविष्य तय करती है. पहले इन सारी परीक्षाओं में पांच नंबर तक ग्रेस देने की परंपरा चली आ रही थी.

कभी-कभी प्राध्यापक भी सहानुभूति के आधार पर भी मेडिकल के बच्चों को मार्क्स देते आ रहे थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. मेडिकल के छात्रों को पास होने के लिए खुद से कड़ी मेहनत करनी होगी. नई गाइडलाइन के अनुसार उन्हें मुख्य परीक्षा और पूरक परीक्षा का ऑप्शन मिलेगा. उनके पास इसके अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं होगा.

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फाउंडेशन कोर्स में आयुर्वेद और होम्योपैथी की पढ़ाई भी शामिल

मेडिकल के छात्रों के लिए फाउंडेशन काेर्स के तौर पर आयुर्वेद और होम्योपैथी की पढ़ाई को शामिल किया गया है. इसके पीछे लॉजिक है कि छात्रों को इसका भी ज्ञान होना चाहिए. साथ ही बता दें  तीसरे साल यानी फाइनल एमबीकिबीएस में सर्जरी और मेडिसिन, गायनिक के सब्जेक्ट 18 महीने का होगा.

नेशनल मेडिकल काउंसिल की गाइडलाइन में ये

एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार मेडिकल की पढ़ाई करने वाले यानी फर्स्ट एमबीबीएस स्टूडेंट को 1521 घंटे यानी 39 हफ्ते की पढ़ाई करनी पड़ेगी. एनएमसी ने साथ ही कहा है कि पहले की तरह प्रत्येक स्टूडेंट को तीन परिवार को तीन साल के लिए गोद लेकर उनके खान-पान से लेकर उनकी बीमारी, पोषण आहार और उनकी गितविधियों पर नजर रखनी होगी. इलेक्टिव एग्जाम यानी शोध, रिसर्च के विषय के लिए छात्रों को एक महीने का अलग वक्त मिलेगा.

खेलकूद, योगा, दूसरी चिकित्सा पद्धति भी जोड़ी गई

बता दें कि एमबीबीएस के छात्रों की पढ़ाई के दौरान उन्हें घूमने फिरने और खेल, कूद योगा समेत कई और गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास किया गया है. उन्हें दूसरी चिकित्सा पद्धति भी समझाई जाएगी. फाउंडेशन कोर्स में डॉक्टर को मरीजों से संवाद का कोर्स भी जोड़ा गया है. चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि नई गाइडलाइन से एमबीबीएस के बच्चे बेहतर पढ़ाई करने की तरफ ध्यान देंगे, इसका उन्हें बेहतर लाभ मिलेगा.

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