छत्तीसगढ़ में यहां कीचड़ से होता है बारातियों का स्वागत, खेली जाती है अनोखी होली

Holi 2025: छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में विशेष माझी जनजाति के द्वारा शादी के अवसर पर कीचड़ की होली खेली जाती है और यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है इस जनजाति के लोग बारात का स्वागत के लिए कीचड़ में लेटना शुरू कर देते हैं और एक दूसरे पर कीचड़ डालते हैं.
Holi 2025

कीचड़ में लोटते लोग

Holi 2025: छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में विशेष माझी जनजाति के द्वारा शादी के अवसर पर कीचड़ की होली खेली जाती है और यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है इस जनजाति के लोग बारात का स्वागत के लिए कीचड़ में लेटना शुरू कर देते हैं और एक दूसरे पर कीचड़ डालते हैं.

कीचड़ से होता है बारातियों का स्वागत

ये परंपरा सरगुजा के मैनपाट क्षेत्र में निभाई जाती है. मांझी जनजाति के लोग बारातियों का स्वागत कीचड़ में लोटकर करते हैं, लड़की के भाई बारात का स्वागत करने के बाद कीचड़ में नहाकर नाचते गाते घर पहुंचते हैं इसके बाद दूल्हे को हल्दी तेल लगाकर विवाह के मंडप में आने का आमंत्रण देते हैं. इसकी तैयारी काफी पहले से शुरू हो जाती है इतना ही नहीं यहां दूल्हा और दुल्हन से जानवरों की आवाज भी निकलवाई जाती है, मांझी-मझवार जनजाति के लोग अपने गोत्र का नाम पशु, पक्षियों के नाम पर रखते हैं. इसमें भैंस, मछली, नाग और अन्य प्रचलित जानवर होते हैं ये अपने तीज त्यौहारों और उत्सवों में उन्हीं का प्रतिरूप बनते हैं और आयोजन का आनंद उठाते हैं इससे इनका उद्देश्य अपने गोत्र के नाम को आगे लेकर जाना है.

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गोत्र के नाम जैसे करते है हरकत

मांझी जनजाति में लड़की वाले जिस गोत्र से आते हैं, उसी गोत्र के अनुसार अपने बारातियों का स्वागत करते हैं जैसे जो नाग गोत्र से आता है वो नाग की तरह प्रतिक्रिया करता है मतलब जिसका गोत्र जिस भी जानवर या पक्षी के नाम पर होती है वो अपने बारातियों का स्वागत उसी तरह करता है सरगुजा से सामने आए इस वीडियो में भैंस गोत्र के परिवार में लड़की बारात आई है, जहां लड़के के भाई कीचड़ में लोटकर बरातियों का स्वागत कर रहे हैं. लड़की वाले बरात के स्वागत के लिए बकायदा एक ट्राली मिट्टी मंगाते हैं. उसे बरात के रास्ते में पलटकर कीचड़ में तब्दील करते हैं उसके बाद लड़की के परिवार में जितने भी भाई होते हैं वो भैंस के समान जैसे पूंछ बनाकर कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं उसके बाद जनमासे में रुके बारात के पास जाते हैं गाजे-बाजे के साथ बारातियों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन कर दूल्हे को तेल हल्दी लगाते हुए मंडप कि ओर ले जाते हैं.

महाभारत काल से चल रही परंपरा

मान्यता महाभारत काल से चली आ रही परंपरा दुल्हे और बरातियों का स्वागत किचड़ में नाचते हुए किया जाता है. ये अपने तीज त्यौहारों और उत्सवों में उन्हीं का प्रतिरूप बनते हैं. होली नही है शादी की परंपरा है.

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