Holi 2025: छत्तीसगढ़ के इन गांवों में अनोखी परंपरा, एक हफ्ते पहले मनाई जाती है होली
होली मना रहे लोग
Holi 2025: देशभर में 14 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा. वहीं छत्तीसगढ़ में कई गांव ऐसे है, जहां होली के एक हफ्ते पहले ही होली का त्योहार मनाया जाता है. प्रदेश के अमरपुर और सेमरा गांव में ये परंपरा कई सालों से चली या रही है.
यहां होली के पहले मनाया जाता है त्योहार
कोरिया जिले के अमरपुर गांव में होली के पहले ये त्योहार मनाया जाता है. गांव के बुजुर्ग बताते है कि हमारे पूर्वजों ने हमें बताया कि अगर गांव में सही दिन होली खेली गई तो बीमारियां फैलेंगी, गांव में विपत्ति आएगी. इसलिए बरसों से हम पहले होली मनाते हैं, ताकि गांव सुरक्षित रहे. ये हमारे दादा-परदादा के जमाने से चली आ रही है. हमने भी अपने पूर्वजों से यही सुना और देखा, इसलिए हम आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं.
सेमरा गांव में भी वर्षों से चली या रही परंपरा
वहीं धमतरी जिले के सेमरा गांव में 7 दिन पहले ही होली खेली जाती है. सालों से यहां के लोग इस परम्परा को निभाते आ रहे हैं. अनहोनी का ऐसा खौफ इन गांववालों के मन में है कि यहां के लोग होली वाले दिन न तो रंग खेलते हैं, ना ही गुलाल. इतना ही नहीं यहां ढ़ोल-नगाड़े भी होली के दिन नहीं बजाए जाते. ना ही लोग इस दिन कोई खास पकवान बनाते हैं. ये सारी चीजें लोग 7 दिन पहले ही कर लेते हैं.
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धूमधाम से मनाई गई होली
रविवार 9 मार्च को ही लोगों ने सेमरा गांव में होली मनाई. गांव में अलग-अलग जगह पर डीजे की धुन पर तो कहीं नगाड़े की ताप पर लोग होली की रंग में रंगे नजर आए. हर चेहरे पर रंग गुलाल लगे हुए थे. लोगों का ऐसा विश्वास है कि अगर कोई नियमो को तोड़ता है, तो गांव में कुछ न कुछ अनहोनी जरूर होती है. लिहाजा, जब भी कुछ त्योहार आता है, तो गांव के लोग गांव में बने सिरदार देव के मंदिर में पूजा अर्चना करके एक सप्ताह पूर्व ही त्योहार मनाते हैं. खास बात ये है कि इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. केवल पुरुष वर्ग ही इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना कर सकते हैं.
गांव के लोगों की माने तो गांव के देवता सिरदार देव हैं. सालों पहले जब गांव में विपदा आई थी, तब गांव के मुखिया को ग्राम देवता सिरदार देव सपने में आए और आदेश दिया कि हर त्यौहार और पर्व सात दिन पहले मना लें. अगर ऐसा नहीं किया तो गांव में फिर से कोई न कोई विपदा जरूर आएगी. शुरू में सभी लोगों ने इस बात को नहीं माना और परंपरागत रूप से त्यौहार मनाने लगे, लेकिन कुछ दिनों बाद गांव में संकट आने लगा. कभी बीमारी, तो कभी अकाल पड़ने लगा. तब ग्रामीणों ने सपने वाली बात का पालन करने का फैसला किया. तब से ही ये परंपरा चली आ रही है. गांव के बुजुर्गो के कहने पर युवा भी इस परम्परा का पालन करते आ रहे हैं. आज भी ये परम्परा निभाई जा रही है.