7 साल की उम्र में चिपकाए पर्चे, कई राज्यों में आतंक फैलाने वाले गजरला रवि का अंत कैसे हुआ?

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Chhattisgarh: 7 साल का बच्चा जो नक्सलियों के लिए पर्चे चिपकाता था. किसे पता था कि वो आगे जाकर नक्सल के टॉप कमांडर की लिस्ट में शामिल होगा और इतना खूंखार कि सरकार उस पर 40 लाख का इनाम घोषित करेगी. गजरला रवि का पूरा परिवार कैसे नक्सलियों से जुड़ा था, और धीरे-धीरे कैसे पूरे परिवार का नक्सल संगठन से अंत हो गया? रेड कॉरिडोर के कहानियां सीरीज के दूसरे पार्ट में पढ़िए कैसे खूंखार नक्सली गजरला रवि का अंत कैसे हुआ.
18 जून 2025 को छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर मारेडपल्ली में नक्सली मुठभेड़ की खबर सामने आई, इस मुठभेड़ में ग्रेहाउंड्स के जवानों ने 3 नक्सलियों को ढेर कर दिया. इन्हीं 3 मारे गए नक्सलियों में शामिल था नक्सल संगठन का सेंट्रल कमेटी मेंबर गजरला रवि. एनकाउंटर के बाद जवानों ने गजरला रवि का शव उसके परिजनों को सौंप दिया. गजरला रवि के शव यात्रा की कुछ तस्वीरें भी सामने आई, जिसमें पूरा गांव उमड़ पड़ा था. गाजे-बाजे के साथ गजरला रवि की शव यात्रा निकाली गई और इसी के साथ अंत हुआ, नक्सल संगठन से गजरला के परिवार का.
गजरला रवि का नक्सलियों से जुड़ाव
गजरला रवि ऊर्फ उदय सिर्फ 7 साल की उम्र से ही माओवादियों के लिए पर्चे चिपकाता था. धीरे-धीरे नक्सल संगठन की तरफ उसका झुकाव बढ़ता चला गया. गजरला रवि का बड़ा भाई गजरला समैया ये बिल्कुल नहीं चाहता था कि रवि नक्सल संगठन से जुड़े, इसलिए उसे करीमनगर भेज दिया. लेकिन वहां जाकर भी रवि का नक्सलियों के प्रति झुकाव बना रहा. करीमनगर जाकर साल 1986 से 1988 के बीच गजरला रवि ने ITI में एडमिशन ले लिया और कॉलेज में पढ़ते हुए ही रैडिकल स्टूडेंट यूनियन (RSU) का हिस्सा बन गया. 22 अप्रैल 1980 को भारत के दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में कोंडापल्ली सीतारमैया ने (PWG) यानी पीपुल्स वार ग्रुप की स्थापना की थी. RSU उसी का एक विंग था. RSU में रहते हुए गजरला रवि का PWG से लगाव और बढ़ने लगा. एक साल बाद उसे फ्रंटल माओवादी संगठन, रेडिकल यूथ लीग (RUL) का सचिव बना दिया गया.
90 के दशक में बढ़ा गजरला का कद
90 के दशक में गजरला रवि PWG के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल हुआ. इसके बाद 1993 में उसे दलम कमेटी और 1994 में महादेवपुरा डिविजनल कमेटी का सदस्य बनाया गया. साल 2001 में गजरला रवि को करीमनगर डिवीजनल कमेटी का सचिव बना दिया गया, जो कि उत्तरी तेलंगाना का हिस्सा है और छत्तीसगढ़ के दक्षिणी हिस्से से काफी करीब है. इसके अलावा गजरला रवि मलकानगिरि और दंडकारण्य इलाके में सक्रिय था और इन इलाकों में नक्सलियों का कमांडर था. गजरला रवि सीसी मेंबर और आंध्रप्रदेश-ओडिशा बॉर्डर स्पेशल जोनल कमेटी का सेक्रेटरी था. उसे खासतौर पर गोरिल्ला वॉर और IED प्लांट करने के लिए जाना जाता था. 2025 की शुरुआत में गजरला एओबीएसजेडसी (AOBSZC) में शीर्ष रैंकिंग वाला नक्सल नेता माना जाता था.
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गजरला रवि उस कमेटी में भी शामिल था, जो 2004-05 में आंध्र प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी से शांति वार्ता करने गई थी. लेकिन उस समय गजरला पीपुल्स वार ग्रुप का हिस्सा हुआ करता था. पहले के दिनों में वो ज्यादातर आंध्र प्रदेश और ओडिशा में सक्रिय था, लेकिन 2020 के बाद उसने छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी हलचल बढ़ा दी थी. इसके पीछे की वजह नक्सल संगठन को और मजबूत करना था.
कई नक्सली वारदातों में शामिल रहा गजरला
गजरला रवि कई बड़े नक्सली वारदातों में शामिल रहा था. साल 2002 में गजरला रवि का नाम उभरा जब तेलंगाना के वारंगल जिले के चिंतागुडेम में आंध्र प्रदेश की राज्य परिवहन निगम की बस पर हमला हुआ. नक्सलियों को लगा कि बस में जवान हैं लेकिन बस में आम नागरिक सवार थे. इस घटना में 20 लोगों की मौत हुई और 16 नागरिक घायल हुए. इस घटना के बाद गजरला रवि का डिमोशन कर दिया गया, उसे डिवीजनल कमेटी सचिव रैंक से हटाकर DVC मेंबर बना दिया गया.
हालांकि 2004 तक उसे फिर से प्रमोट कर स्टेट कमेटी मेंबर बनाया गया. इसी बीच साल 2003 में उस पर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम एन. चंद्रबाबू नायडू की हत्या की साजिश का आरोप लगा. इसके अलावा गजरला रवि 10 फरवरी 2012 को BSF जवानों पर हुए नक्सली हमले में भी शामिल रहा. नक्सलियों के इस हमले में 1 कमांडेंट सहित 3 जवान शहीद हो गए और उनसे हथियार लूट लिए गए. साल 2014 में फरार नक्सलियों की लिस्ट में गजरला रवि का नाम शामिल किया गया. आखिरकार सुरक्षाबलों ने उसे घेरकर उसका एनकाउंटर कर दिया. मारे गए गजरला रवि की उम्र 62 वर्ष थी. नक्सल संगठन से उसका जुड़वा लगभग 4 दशक का था.
नक्सल संगठन से गजरला रवि के परिवार का खात्मा
गजरला रवि तेलंगाना के भूपालपल्ली जिले के वेलिशला गांव का रहने वाला था. जो छत्तीसगढ़ से लगा हुआ हिस्सा है. रवि का पूरा परिवार नक्सल संगठन से जुड़ा था. गजरला रवि के पिता का नाम गजरला मलैया था. गजरला रवि के चार भाई थे. इनमें से सबसे बड़ा भाई गजरला समैया नक्सलवाद से दूर रहा. वो कोयला खदान में काम करता था. समैया ने लंबी बीमारी के बाद दम तोड़ दिया था. वहीं गजरला रवि समेत बाकी चार भाई नक्सल संगठन में शामिल हो गए. उनमें से एक था, गजरला सरैया उर्फ आजाद जो साल 2008 में एक एनकाउंटर में मारा गया. लेकिन वो उस वक्त ही सेंट्रल कमेटी मेंबर था. इसके साथ ही सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का सदस्य भी था.
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वारंगल में जब वो मारा गया तो आजाद की पत्नी राधा भी उसके साथ ही थी. एक भाई का नाम गजरला रजैया था, जो नक्सल कमांडर था लेकिन बीमारी की वजह से मर गया. एक भाई था गजरला अशोक, जो काफी दिनों तक बस्तर में रहा. दक्षिण बस्तर में डिवीजनल कमेटी सेक्रेटरी बना, लेकिन 2015 में उसने अपनी पत्नी के साथ आत्मसमर्पण कर दिया और 2023 में उसने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली. गजरला रवि की पत्नी प्रमिला भी डिविजनल कमिटी सेक्रेटरी थी, जो साल 2018 में एक एनकाउंटर में मारी गई. जबकि गजरला रवि का साला रमेश भी जुलाई 2020 में एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया और इस तरह गजरला परिवार का नक्सल संगठन से खात्मा हो गया.