Raigarh: बचपन में बुढ़ापा लाने वाली बीमारियों से कैसे बचेंगे गांव वाले? टूट जाते हैं दांत और बॉडी हो जाती है कूबड़
Raigarh News: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूर एक गांव के लोग भयानक बीमारी से त्रस्त हैं. आलम यह है कि इस गांव से लोग कोई नाता नहीं रखना चाह रहे हैं. ये ऐसा गांव हैं जहां बचपन से ही लोग बूढ़े होने का दर्द झेल रहे हैं. आज भी यहां बुनियादी सुविधाओं में से एक साफ पानी लोगों की पहुंच से दूर है.
दरअसल, मुड़ागांव नाम के इस गांव के पानी में फ्लोरीन की मात्रा इतनी अधिक है कि बचपन से यहां का पानी पीने की वजह से छोटे बच्चों के दांत काले-पीले होकर टूट रहे हैं. उम्र बढ़ने के साथ लोगों के हड्डी का लचीलापन खत्म होते जा रहा है और शरीर अकड़ कर झुकने लग रहा है. यही कारण है कि गांव के ज्यादातर लोग जिनकी उम्र 40 साल से अधिक है उनके शरीर कुबड़े दिखाई दे रहे हैं. जब तक लाठी डंडे के सहारे ना रहें तो इनका चलना भी मुश्किल होता है.
जनप्रतिनिधि कर रहे नजरअंदाज
आपको बता दें कि रायगढ़ औद्योगिक हब के रूप में भले ही विकसित हो गया है, मगर आज भी बुनियादी सुविधा के लिए यहां के लोग तिल तिल तड़प रहे हैं.ऐसा नहीं है कि इस दर्द के बारे में जवाबदार नहीं जानते,ग्रामीणों के लिए सामाजिक संगठनों ने भी काम किया लेकिन कुछ बदलाव नहीं हो सका. वहीं ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक दल इससे बेखबर है.जब नेता सत्ता में होते हैं तब इस ओर कोई ध्यान नहीं देता.जब नेता विपक्ष में हो गए तो आज उनकी याद आने लगती है. क्षेत्र के पूर्व भाजपा विधायक अब इनके दुखों पर अपना दर्द व्यक्त कर रहे हैं विपक्ष में आते ही उनको ग्रामीणों की चिंता सताने लगी है.
ये है बीमारी की वजह
एक अस्थि रोग (orthopedic) विशेषज्ञ ने इस विषय पर बात करते हुए कहा कि फ्लोराइड की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं- दांत और हड्डियां. इसका शुरुआती लक्षण दांत का पीलापन, दांत का काला हो जाना और बुरादे की तरह टूटना होता है.लगातार फ्लोराइड वाला पानी पीने से यह समस्या और गंभीर हो जाती है. फिर धीरे-धीरे शरीर का लचीलापन खत्म हो जाता है. इस वजह से शरीर में गांठ होने लगती है और कूबड़ निकल आता है. दुर्भाग्य की बात यह है कि इसका कोई इलाज नहीं है. शुरुआती लक्षण के बाद कुछ परहेज करके इससे निजात पाया जा सकता है.
प्रशासन के लगाए फिल्टर प्लांट का क्या हाल है?
ग्रामीणों की समस्या को देखकर जिला प्रशासन ने दो फ्लोराइड रिमूवल प्लांट भी लगाए हैं. लेकिन रख-रखाव के अभाव और सही तरीके से संचालन ना हो पाने की वजह से दोनों प्लांट पूरी तरह से जर्जर होकर कबाड़ में बदल गए हैं. ऐसे में लोगों के लिए फ्लोरिन वाला पानी पीना मजबूरी जैसा हो गया है.