गांव-गांव और नक्सल क्षेत्र में पहुंचाना था इंटरनेट, लेकिन ठप निकला ‘टाटा’ का काम, छत्तीसगढ़ में 1600 करोड़ का भारतनेट घोटाला!

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में भारतमाला परियोजना में घोटाले की जांच अभी चल रही है. इस बीच भारतनेट योजना में 1600 करोड़ के घोटाले के आरोप सामने आए हैं. जानें पूरा मामला-
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इंटरनेट कनेक्टिविटी

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के गांव-गांव और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्राइवेट इंटरनेट पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार की भारतनेट परियोजना के तहत टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (TPL) को ठेका दिया गया था. इस ठेके के तहत एक साल में प्रदेश के 5,987 पंचायतों में फाइबर बिछाना था, जिससे गांव-गांव तक प्राइवेट इंटरनेट पहुंच सके. इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार ने 2155 करोड़ और राज्य ने 112 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान रखा. वहीं, चिप्स को सरकार ने नोडल एजेंसी बनाया. अब भारतनेट प्रोजेक्ट के फेज-2 में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. यह गड़बड़ी 1600 करोड़ रुपए की होने का दावा किया जा रहा है.

जानें पूरा मामला

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतनेट प्रोजेक्ट के लिए टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (TPL) को ठेका दिया गया है. इस ठेके तहत प्रदेश के 5,987 पंचायतों में फाइबर लगाना था. इस कॉन्ट्रेक्ट के तहत चिप्स ने टाटा को सितंबर 2023 तक करीब 1600 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया. यह भुगतान तब किया गया जब टाटा ने दावा किया था कि 5540 पंचायतों तक फाइबर पहुंचा दिया गया है. इसके बाद साल 2024 में जब चिप्स ने इसकी जांच की तो करीब 200 से भी कम पंचायतों में इंटरनेट चालू पाया गया.

कई बार भेजा गया नोटिस

जांच के बाद कई बार TPL को पंचायतों में इंटरनेट चालू करने के संबंध में नोटिस भेजा गया, लेकिन हालात वैसे ही रहे. इसके बाद साल 2025 में चिप्स ने टाटा का ठेका रद्द कर दिया और उसकी 167 करोड़ रुपए की जमानत राशि जब्त कर ली.

TPL को मिले 4 काम

TPL कंपनी को भारतनेट प्रोजेक्ट के तहत चार काम मिले थे, जिनमें- 5,987 पंचायतों तक फाइबर लाइन बिछाने, हर पंचायत में राउटर लगाने, रायपुर में नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर बनाना और सात साल तक इसकी मरम्मत का कार्य देखना शामिल है.

जमीन में दबे रह गए 1600 करोड़

भारतनेट परियोजना के तहत 1600 करोड़ जमीन में दबे रह जाने के आरोप हैं. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक 10 दिन में बस्तर से लेकर सरगुजा तक करीब 50 पंचायतों में इंटरनेट की व्यवस्था हर जगह ठप मिली. वहां राउटर बंद थे. भारतनेट परियोजना के तहत लगाए गए फाइबर की जगह वहां प्राइवेट कंपनियों से इंटरनेट लिया जाना पाया गया.

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कहीं तार की चोरी तो कहीं राउटर खराब

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस परियोजना के तहत जमीन के नीचे लाइन तो बिछाई लेकिन बाद में देखभाल नहीं हुई. वहीं, कुछ जगहों पर कई मीटर फाइबर की तार चोरी हो गई. कहीं जानवरों ने भी तार काट दिए. इतना ही नहीं कहीं राउटर खराब हो गए तो कहीं जल जीवन मिशन के काम के समय तार काट दिए गए.

नक्सली इलाकों में तो टावर तक नहीं लगे

वहीं, बस्तर में तो इस परियोजना में और बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. यहां फाइबल लाइन के माध्यम से 100 से ज्यादा BSNL के टावर लगाने जाने थे, लेकिन नहीं लगाए गए.

क्या है भारतनेट प्रोजेक्ट?

केंद्र सरकार ने देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए भारतनेट प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. इस योजना का उद्देश्य गांव में प्राइवेट इंटरनेट नहीं पहुंचाना है. इस योजना के तहत ग्राम पंचायतों को नोडल सेंटर बनाया गया है और हर पंचायत तक फाइबर से कनेक्शन पहुंचाए गए है. इसके जरिए मोबाइल ऑपरेटरों, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी), केबल टीवी ऑपरेटरों, सामग्री प्रदाताओं जैसे एक्सेस प्रदाताओं को ग्रामीण और दूरस्थ भारत में ई-स्वास्थ्य, ई-शिक्षा और ई-गवर्नेंस जैसी विभिन्न सेवाओं को लॉन्च करने में सक्षम बनाया जा रहा है.

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